2018-01-09 10:23:00

संत पापा फ्राँसिस ने राजनयिकों से मुलाकात की


वाटिकन सिटी, सोमवार 8 जनवरी 2018 (रेई) : संत पापा फ्राँसिस ने सोमवार 8 जनवरी को वाटिकन के रेजिया सभागार में अधिकृत राजनयिकों से मुलाकात की। इस स्वागत सम्मेलन के दौरान संत पापा ने अपने संबोधन में नव वर्ष की शुरुआत में डीन अरमिन्दो फेर्नांडीस को उनके स्वागत भाषण के लिए धन्यवाद दिया।

संत पापा ने वाटिकन के लिए विभिन्न देशों के सभी राजदूतों का स्वागत करते हुए उनकी उपस्थिति के लिए धन्यवाद दिया। संत पापा ने रोमन कूरिया के सभी अधिकारियों  को भी उनके सहयोग और सेवा के लिए धन्यवाद दिया।

संत पापा ने कोलंबिया के भूत पूर्व राजहूत गुईलेर्मो ओन को विशेष रुप से याद किया जसका निधन क्रिसमस से कुछ दिन पहले हुआ था।

संत पापा ने परमधर्मपीठ और सिविल अधिकारियों के साथ सभी लोगों के आध्यात्मिक और भौतिक भलाई को बढ़ावा देने हेतु संबंधों को बनाये रखने की इच्छा जाहिर की।

इस वर्ष प्रथम विश्व युद्ध के अंत की शताब्दी, एक संघर्ष है जो प्राचीन साम्राज्यों के स्थान पर नए राज्यों के उदय के साथ यूरोप और पूरी दुनिया के चेहरे को फिर से संगठित करता है। विश्व युद्ध की राख से, हम दो सबक सीख सकते हैं। जिसे मानवता तुरंत समझ नहीं पाई थी, बीस साल के भीतर एक नया और और भी अधिक विनाशकारी संघर्ष का सामना किया।

 पहला सबक यह कि जीत का अर्थ कभी भी एक पराजित दुश्मन का अपमान करना नहीं है। दूसरों को परास्त कर विजय की डींग मारने से कभी शांति को स्थापित नहीं किया जा सकता है। आपसी मतभेदों के सूझबूझ और वार्तालाप से सुलझाया जा सकता है।

दूसरा सबक है- शांति को मजबूत बनाया जा सकता है जब सभी राष्ट्र समान शर्तों पर मामलों पर चर्चा करते हैं। सौ साल पहले आज के ही दिन संयुक्त राष्ट्र के राष्ट्रपति वुडरु विलसन ने, बड़े और छोटे सभी राज्यों के समान, स्वतंत्रता की पारस्परिक गारंटी और क्षेत्रीय अखंडता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राष्ट्रों की एक सामान्य लीग की स्थापना को प्रस्तावित किया था । इसने बहुपक्षीय कूटनीति के लिए सैद्धांतिक आधार रखा।

राष्ट्रों के बीच संबंध, सभी मानव रिश्तों की तरह, "समान रूप से सत्य, न्याय, सहयोग और स्वतंत्रता के निर्देशों के अनुरूप होना चाहिए"। दरअसल, मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा इस बात की पुष्टि करता है, "मानव परिवार के सभी सदस्यों के स्वाभाविक सम्मान और समान अधिकारों की मान्यता ही दुनिया में स्वतंत्रता, न्याय और शांति की नींव है।"

संत पापा ने कहा,″संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर 1948 को इस महत्वपूर्ण दस्तावेज ‘मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा’ को अपनाने के सत्तर साल बाद, मैं आज हमारी बैठक को समर्पित करना चाहता हूँ।″  परमधर्मपीठ के लिए, मानव अधिकारों के बारे में बात करने का मतलब है कि मानव व्यक्ति की केन्द्रीयता को दोबारा बनाने की इच्छा जिसे ईश्वर ने अपने समान और अपने ही अनुरुप में बनाया है।

कलीसिया का प्रयास रहता है कि समाज में उपस्थित अन्याय, सामाजिक असमानता और भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए कार्य करे। देशों में संघर्ष को वार्तालाप के जरिये सुलझाया जा सकता है। ‘मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा’ के सत्तर साल बाद भी मानव अधिकारों का उलंघन देखने को मिलता है। संत पापा बीते सप्ताहों में  फिलिस्तीन और इस्राएल के बीच उभरे तनाव और संघर्ष की याद करते हैं जिसमें अनेक लोगों की जानें चली गई।

संत पापा परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि की भी याद करते हैं। संत पापा जोन तेईसवें ने ‘पाचिम इन तेरिस’ में अभिव्यक्त किया है कि "न्याय, सही कारण, और मनुष्य की गरिमा की मान्यता के लिए हथियारों के निर्माण के दौड़ को बंद करें।″

इस संबंध में, कोरियाई प्रायद्वीप पर वार्ता के हर प्रयास को समर्थन देने के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण है, कि वर्तमान विवादों पर काबू पाने के नए तरीकों को खोजने के लिए आपसी विश्वास में वृद्धि हो और कोरियाई लोगों और पूरी दुनिया के लिए शांतिपूर्ण भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।

संत पापा ने हमारे आमघर की देखभाल में प्रत्येक के उत्तरहायित्व पर भी प्रकाश डाला और अंत में संत पापा ने उपस्थित राजनायिकों के महत्वपूर्ण योगदान के लिए धन्यवाद और इस नये वर्ष की शुभकामना देते हुए उन्हें और परिवार के सभी सदस्यों पर ईश्वर की आशीष की कामना की।    








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