2017-12-18 15:49:00

आगमन के तीसरे रविवार पर संत पापा का संदेश


वाटिकन सिटी, सोमवार, 18 दिसम्बर 2017 (रेई): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में आगमन काल के तीसरे रविवार, 17 दिसम्बर को, संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

विगत रविवारों में धर्मविधि ने रेखांकित किया कि जागते रहने के मनोभाव का अर्थ क्या है तथा दृढ़ता से प्रभु का मार्ग तैयार करने के लिए क्या करना चाहिए।

आगमन के इस तीसरे रविवार को जिसे "आनन्द का रविवार" भी कहा जाता है, धर्मविधि हमें उस भावना को समझने का निमंत्रण देता है जिसके लिए यह घटना घटी, खासकर, आनन्द। संत पौलुस हमें तीन मनोभावों को धारण करते हुए प्रभु के आगमन की तैयारी करने का निमंत्रण देते हैं- सतत आनन्द, दृढ़ प्रार्थना और निरंतर धन्यवाद।

संत पापा ने कहा, "प्रथम मनोभाव है सतत् आनन्द। प्रेरितों का अह्वान करते हुए संत पौलुस कहते हैं, सदा खुश रहें।" (1थेस. 5:16) ऐसे समय भी जब चीजें हमारी इच्छा अनुसार पूर्ण नहीं होतीं। हम उस परिस्थिति में भी अपार हर्ष का अनुभव कर सकते है। यह एक प्रकार की शांति है आंतरिक आनन्द। धरातलीय स्तर पर शांति एक आनन्द है। चिंता, परेशानी और दुःख हरेक के जीवन में आता है, हम सभी इससे परिचित हैं और कई बार हमारी चारों ओर की वास्तविकताएँ अजीब और बंजर लगती हैं उसी मरूभूमि की तरह जहाँ योहन बपतिस्ता की आवाज सुनाई पड़ी। जैसा कि आज का सुसमाचार हमें याद दिलाता है। (यो. 1:23) किन्तु योहन बपतिस्ता के शब्द हमें प्रकट करते हैं कि आनन्द निश्चितता में निहित है जिसे इस मरुस्थल ने ले लिया है। वे कहते हैं, तुम्हारे बीच एक हैं जिन्हें तुम नहीं पहचानते। (पद. 26)

संत पापा ने कहा कि वे येसु हैं पिता के अग्रदूत जो मसीह के रूप में आये। वे दरिद्रों को सुसमाचार सुनाने, टूटे दिलों के घांवों में मरहम पट्टी लगाने, दासों को मुक्ति का और बंदियों को रिहाई का संदेश देने तथा अनुग्रह का वर्ष घोषित करने आये।"(इसा. 61,1-2)ये  वे शब्द हैं जिन्हें येसु नाजरेथ के सभागृह के प्रवचन में अपने आप पर लागू करेंगे। (लूक. 4: 16-19) स्पष्ट करता है कि उनका मिशन इस दुनिया में व्यक्तिगत एवं सामाजिक पापों से लोगों को मुक्त करना था तथा उन दासताओं से छुटकारा देना जो मानव निर्मित हैं। वे इस धरा पर आये ताकि मानव को उनकी प्रतिष्ठा तथा ईश्वर के संतान की गरिमा दिला सकें जिसको मात्र वे ही प्रदान कर सकते हैं। वे ही हमें आनन्द का संदेश सुना सकते हैं।

यह खुशी जो मसीहा की उम्मीदों को चिह्नित करता है, दृढ़ प्रार्थना पर आधारित है और यही दूसरा मनोभाव है।

संत पौलुस कहते हैं, "निरंतर प्रार्थना करते रहें। (1 थेस. 5:17) प्रार्थना के द्वारा हम ईश्वर के साथ एक स्थायी संबंध में बंध सकते हैं। जो सच्चे आनन्द के स्रोत हैं। एक ख्रीस्तीय आनन्द का आनन्द खरीदा नहीं जा सकता बल्कि यह विश्वास एवं येसु ख्रीस्त के साथ मुलाकात प्राप्त होता है। हम जितना अधिक ख्रीस्त से जुड़े होते हैं उतना ही अधिक आंतरिक शांति का अनुभव करते हैं। यहाँ तक कि दैनिक जीवन के विरोधाभासों के बीच भी। यही कारण है कि एक ख्रीस्तीय जो येसु से मुलाकात कर लेता है वह दुर्भाग्य प्रकट करने वाला नहीं हो सकता किन्तु आनन्द का साक्षी एवं संदेश वाहक बनता है। आनन्द जिसे दूसरों के बीच बांटा जाता और जो जीवन यात्रा को कम थकाऊ बनाता है।

संत पौलुस द्वारा प्रस्तुत तीसरा मनोभाव है निरंतर धन्यवाद, ईश्वर के प्रति कृतज्ञता भरा प्रेम। वे हमारे प्रति सचमुच अत्यन्त उदार हैं और हम उनके वरदानों, उनके करुणावान प्रेम, उनके धीरज एवं अच्छाईयों को पहचानने के लिए बुलाये जाते हैं अतः हम निरंतर धन्यवाद को जीते हैं।

आनन्द, प्रार्थना और कृतज्ञता ये तीन मनोभाव हैं जो हमें ख्रीस्त जयन्ती को सच्चे रूप में मनाने हेतु तैयार करता है।

संत पापा ने माता मरियम से प्रार्थना करने का निमंत्रण देते हुए कहा, "आगमन काल के इस अंतिम भाग में हम अपने आपको धन्य कुँवारी मरियम के मातृतुल्य मध्यस्थता में सिपुर्द करें। वे ही हमारे आनन्द की वजह हैं न केवल इस लिए कि उन्होंने येसु को जन्म दिया है बल्कि इस लिए भी कि वे लगातार उनके पास हमारी मध्यस्थता करती हैं।"

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

देवदूत प्रार्थना के उपरांत जन्म दिवस की शुभकामनाएँ देने वालों को सम्बोधित कर संत पापा कहा, बहुत-बहुत शुक्रिया। तत्पश्चात् उन्होंने रोम, इटली एवं विश्व के विभिन्न हिस्सों से आये परिवारों, पल्लियों एवं संगठनों के सदस्यों का अभिवादन किया।

संत पापा ने बालक येसु की प्रतिमा पर आशीष देते हुए कहा, "अब मैं उन बच्चों का सस्नेह अभिवादन करता हूँ जो बालक येसु की प्रतिमा पर आशीष दिलाने आये हैं।" प्यारे बच्चो, आपके आनन्दमय उपस्थिति के लिए धन्यवाद। मैं आप को क्रिसमस की शुभकामनाएँ देता हूँ। जब आप अपने घर में चरनी के सामने पूरे परिवार के साथ विन्ती करेंगे, बालक येसु की कोमलता से प्रेरणा प्राप्त करें जो गरीब और दुर्बल रूप में हमारे पास आये ताकि हमें अपना प्रेम दे सकें। यही सच्चा क्रिसमस है। यदि हम येसु को अलग कर देते हैं तो क्रिसमस में और क्या रह जाता है? अतः संत पापा ने आग्रह किया कि येसु को क्रिसमस से अलग न किया जाए क्योंकि येसु ही क्रिसमस के केंद्र हैं वही सच्चे क्रिसमस हैं।

अंत में संत पापा ने प्रार्थना का आग्रह करते हुए सभी को शुभ रविवार एवं येसु की जयन्ती की ओर यात्रा हेतु शुभकामनाएँ अर्पित की। 








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