2017-12-02 15:02:00

संत पापा ने बांग्लादेशी युवाओं को संबोधित किया


ढाका, शनिवार, 2 दिसम्बर 2017 (रेई) :  संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 2 दिसम्बर को ढाका के नोट्र डेम कॉलेज में बांग्लादेश के युवाओं से मुलाकात की। संत पापा ने कहा,

 प्रिय युवा मित्रो,

इस संध्या समय हम सब यहाँ एकत्रित हुए हैं। मैं आपके स्वागत के लिए, धर्माध्यक्ष गेरवास के सुन्दर वचनों एवं उपासना और अंतोनी के साक्ष्य के लिए धन्यवाद देता हूँ। युवाओं में एक बात बहुत अनोखी है। आप हमेशा उत्साह से भरे हुए रहते हैं। जब मैं आप युवाओं से मिलता हूँ तो मैं भी फिर से युवा सा महसूस करता हूँ। उपासना ने अपने साक्ष्य में कहा कि आप सभी बहुत उत्साही हैं, यह तो मैं देख रहा हूँ और अनुभव भी कर रहा हूँ। यह युवा उत्साह साहस की भावना से जुड़ा हुआ है आपके राष्ट्रीय कवियों में से एक, काजी नज़रुल इस्लाम ने देश के युवाओं को "निडर" के रूप में संदर्भित करके इस प्रकार व्यक्त किया, ‘जो अंधेरे के गर्भ से प्रकाश छीन सके’। युवा लोग हमेशा आगे बढ़ते हैं और जोखिम लेने के लिए तैयार रहते हैं। मैं आप लोगों को उत्साह के साथ चाहे अच्छा समय हो या बुरा, सभी समय आगे बढ़ते रहने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ। विशेष रूप से उन क्षणों में भी चलते रहें, जब आपको ऐसा लगेगा कि समस्याएं और उदासी आप पर हावी हो रही हैं। आप दूर क्षितिज पर अपनी नजरें टिकाते हैं और ऐसा लगता है कि ईश्वर भी आपसे बहुत दूर हैं।

 

पर जैसा आप आगे बढ़ते हैं आपको यह निश्चित करना है कि आप सही मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं।

अर्थात जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ना बिना उद्देश्य के इधर उधर भटकना नहीं। हमारा जीवन अर्थहीन नहीं है। ईश्वर ने हम सभी के लिए एक विशेष योजना बनाई है। वे अपनी कृपा द्वारा हमारा मार्ग दर्शन करते और हमारी अगुवाई करते हैं। ऐसा लगता है जैसे उन्होने हमारे भीतर एक कंप्यूटर सॉफ्टवेयर रखा है, जो हमें अपने दिव्य कार्यक्रम पर विचार करने और स्वतंत्रता पूर्वक जवाब देने में मदद करता है। सभी सॉफ़्टवेयर की तरह, इसे भी लगातार अपडेट की आवश्यकता होती है। अपने कार्यक्रम को भी आपडेट करते रहें, ईश्वर की पुकार सुनकर और उसकी इच्छा पूरी करने की चुनौती को स्वीकार करें।

संत पापा ने कहा कि अंतोनी आपने साक्ष्य में कहा कि आप युवा ऐसी कमजोर दुनिया में बढ़ रहे हैं जो ज्ञान की खोज में है।" जीवन यात्रा में आप एक लक्ष्य लेकर आगे नहीं बढ़ेंगे तो सभी ज्ञान बेकार हो जाएगा। विश्वास से उत्पन्न ज्ञान हमें सही मार्ग में आगे बढ़ने के लिए दिशा निर्देश देगा। इस ज्ञान को हम अपने माता-पिता और दादा-दादियों में देख सकते हैं जो अपना विश्वास ईश्वर में रखते हैं।

ख्रीस्तीयों के रूप में, हम उनकी आंखों में ईश्वर की उपस्थिति के प्रकाश को देख सकते हैं, जिसे उन्होंने येसु मसीह में पाया हैं, जो स्वंय ईश्वर का ज्ञान है।(1 कुरिंथ 1:24) इस ज्ञान को पाने के लिए हमें इस दुनिया को, हमारी परिस्थिति को, हमारी कठिनाईयों को ईश्वर की नजरों से देखना होगा, ईश्वर के कानों से सुनना होगा, ईश्वर के दिल से प्यार करना और ईश्वर के मूल्यों के द्वारा चीजों को आंकना होगा।

यह ज्ञान हमें झूठी खुशी को पहचानने और उससे दूर रहने में हमारी मदद करता है। ऐसी संस्कृति जो झूठे वादे, झूठी आशा दिलाता है यह केवल आत्म-केंद्रितता की ओर ले जाता है जो दिल को अंधेरे और कड़वाहट से भर देता है। ईश्वर का ज्ञान हमें उन लोगों का स्वागत करने और स्वीकार करने में मदद करता है जो हमसे अलग सोचते और अलग कार्य करते हैं। यह दुख की बात है जब हम अपने आप में बंद हो जाते हैं और दूसरों से बेखबर अपनी ही दुनिया में व्यस्त रहते हैं। जब लोग या एक धर्म या एक समाज अपनी छोटी दुनिया में ही रहती है तो वे आत्मनिष्ठ मानसिकता के शिकार होते हैं ″मैं ठीक हूँ और तुम गलत हो।″ इस तरह की मानसिकता में हम सही मार्ग से भटक जाते हैं और जीवन अर्थहीन हो जाता है। ईश्वर का ज्ञान हमें दूसरों की ओर अभिमुख कराता है यह हमें हमारे व्यक्तिगत सुख और झूठी सुरक्षा से परे, उन भव्य आदर्शों को देखने में मदद करता है जो जीवन को अधिक सुंदर और सार्थक बनाते हैं।

संत पापा ने ख्रीस्तीय युवाओं के साथ अन्य धर्मों के युवाओं की उपस्थिति में अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा,″ मैं बहुत खुश हूँ कि ख्रीस्तीय युवाओं के साथ मुस्लिम और अन्य धर्मों के युवा भी यहाँ उपस्थित हैं। आप अपने धार्मिक मतभेदों की परवाह किए बिना, आज यहां एकत्र होकर दूसरों तक पहुंचने और सामंजस्य के वातावरण को बढ़ावा देने के अपने दृढ़ संकल्प को दिखाते हैं।

यह मुझे बोनस आइरस की एक नई पल्ली की याद दिलाता है जो बहुत ही गरीब इलाका में स्थित है। वहाँ कुछ छात्र पल्ली के लिए घर बना रहे थे और पल्ली पुरोहित ने उनसे मिलने के लिए मुझे बुलाया। मैं वहां गया और पल्ली पुरोहित ने मेरा परिचय उनसे कराया। इसके बाद उनमें से एक ने अपने दल का परिचय इस प्रकार दिया। ″"यह वास्तुकार है, वह यहूदी है, यह एक कम्युनिस्ट है, यह एक काथलिक है"(सीएफः छात्रों को संबोधन, हवाना, 20 सितंबर 2015) वे छात्र अलग थे लेकिन सभी एक ही उद्देश्य के लिए काम कर रहे थे। वे एक दूसरे के लिए खुले हुए थे और वे कुछ भी नहीं कहना चाहते थे जो एक साथ आने और एक-दूसरे की मदद करने की अपनी क्षमता से वंचित करे।

ईश्वर का ज्ञान अपने आप से उपर उठकर हमारी सांस्कृतिक विरासत में अच्छाई देखने के लिए भी मदद करती है। आपकी संस्कृति आपको अपने बुजुर्गों का आदर करना सिखाती है। जैसा कि मैंने पहले कहा था, बुजुर्ग हमें पीढ़ियों की निरंतरता की सराहना करने में मदद करते हैं। वे उनके साथ स्मृति और अनुभव के ज्ञान ले आते हैं, जो हमें पिछली गलतियों की पुनरावृत्ति से बचने में मदद करता है। बुजुर्गों के पास अंतराल को पाटने का करिस्मा है इसतरह वे महत्वपूर्ण मूल्यों को अपने बच्चों और नाती-पोतियों तक पहुंचाते हैं। उनकी बातें, प्रेम, स्नेह और उपस्थिति से हम महसूस करते हैं कि इतिहास हमारे साथ शुरू नहीं हुई, लेकिन हम एक पुरानी "यात्रा" के हिस्से हैं और यह वास्तविकता हमसे बहुत ही बड़ी है। इसलिए आप अपने माता-पिता और दादा-दादियों से बात करें। पूरा दिन अपने फोन के साथ न खेलें और अपने आस-पास की दुनिया को अनदेखा न करें!

उपासना और अंतोनी आप दोनों ने अपना साक्ष्य आशा के अनुभव से समाप्त किया। ईश्वर का ज्ञान हमारे लिए आशा को मजबूत करता है और हमें साहस के साथ भविष्य का सामना करने में मदद करता है। हम ख्रीस्तीय ईश्वर के ज्ञान को येसु के साथ व्यक्तिगत प्रार्थना और संस्कारों में पाते हैं और ठोस रुप से हम उन्हें गरीबों, बीमारियों, पीड़ितों में पाते हैं।

अंत में संत पापा ने ज्ञान के खान ईश्वर से युवाओं, उनके परिवारों, कलीसिया और पूरे देश के लिए ईश्वरीय ज्ञान, आनंद, खुशी और भाई चारे की कामना करते हुए उन्हें अपना आशीर्वीद दिया।

 








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