2017-11-28 13:49:00

रोहिंग्या शरणार्थियों की मदद हेतु बांग्लादेश की कलीसिया


ढाका, मंगलवार 28 नवम्बर 2017 (वीआर,रेई) : संत पापा फ्राँसिस वर्तमान में म्यांमार और बांग्लादेश की प्रेरितिक यात्रा पर हैं। संत पापा 27-30 नवंबर तक म्यांमार की यात्रा के बाद, 30 नवंबर, 2 दिसंबर तक बांग्लादेश का दौरा करेंगे। म्यांमार में मुख्य रूप से बौद्ध धर्मावलम्बी हैं तो बांग्लादेश में ज्यादातर मुस्लिम हैं। करीब 271 किलोमीटर की एक आम सीमा साझा करने के अलावा, दोनों पड़ोसियों के बीच एक कठिन मुद्दा है – रोहिंग्या शरणार्थी

रोहिंग्या एक बहुत बड़ा मुस्लिम जातीय समूह है, जो बांग्लादेश की सीमा के पास स्थित पश्चिमी म्यांमार के राखीन राज्य में रहते हैं। वे इस क्षेत्र के मूल निवासी होने का दावा करते हैं, लेकिन म्यांमार सरकार का कहना है कि वे बांग्लादेश के अवैध आप्रावासी हैं। 1982 में सरकार के सैन्य शासन द्वारा पारित किए गए राष्ट्रीयता कानून के तहत उनकी नागरिकता को अस्वीकार कर दिया गया और अब वे किसी भी देश के नागरिक नहीं हैं।

25 अगस्त को रोहिंग्या उग्रवादियों द्वारा एक सैन्य चौकी पर हमला किए जाने के जवाब में म्यांमार के सुरक्षा बलों की ओर से कड़ी जवाबी कार्रवाई होने के बाद माना जा रहा है कि अबतक में 600,000 से भी ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी म्यांमार छोड़कर बांग्लादेश पहुंच गए हैं।

इस स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने हिंसा को खत्म करने, स्थिति को काबू में करने और कानून व्यवस्था को पुन:स्थापित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग की है। एक बयान में सुरक्षा परिषद ने, रखाइन प्रांत में स्थिति पर ‘‘गहरी चिंता व्यक्त’’ की है। बांग्लादेश और म्यांमार ने 23 नवंबर को रोहंग्या लोगों की वापसी पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, पर इसे किस प्रकार कार्यन्वित किया जायेगा कुछ कहा नहीं जा सकता।

वाटिकन संवावदाता ने बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति को देखते हुए काथलिक समुदाय की प्रतिक्रिया को जानने के लिए बांग्लादेश के कार्डिनल पैट्रिक डी'रोजारियो से संपर्क किया, विशेषकर जब संत पापा बहुत जल्द बांग्लादेश पधारने वाले हैं।   

ढाका के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल डी'रोजारियो ने कहा कि जब उन्होंने संत पापा को बांग्लादेश आने के लए आमंत्रित किया था तो रोहिंग्या का मुद्दा देश में नहीं था। उन्होंने कहा कि वे रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या को समझ सकते हैं। वे यह भी देखते हैं कि उनके मौलिक अधिकारों को हनन हुआ है। उन्हें भी इज्जत से अपनी जमीन में जीने का अधिकार है।

कार्डिनल डी'रोजारियो ने कहा कि उन्होंने और अन्य धर्माध्यक्षों ने शरणार्थियों के शिविरों को दौरा किया है। बांग्लादेश एक गरीबदेश होते हुए भी न केवल अपनी सीमा को खोल दिया है पर अपने दिल के दरवाजे भी खोल दिया है। "बांग्लादेश की गरिमा उन जरूरतमंद लोगों का मेहमान नवाजी में है।"

  "हालांकि, उन्होंने कहा कि शरणार्थियों को बांग्लादेश में बहुत लम्बे समय के लिए नहीं रखा जा सकता क्योंकि यह देश के वातावरण, पर्यावरण और लोगों के बीच सामंजस्य को प्रभावित करेगा और देश के पास संसाधनों की कमी है।

कार्डिनल ने बताया कि बांग्लादेश की काथलिक उदारता संस्था कारितास शरणार्थियों की हर तरह से मदद में जुटी हुई है। म्यांमार की सीमा में स्थित चितागोंग धर्मप्रांत ही नहीं लेकिन पूरा काथलिक समुदाय उनकी सेवा में संलग्न हैं। बांग्लादेश की सरकार, संयुक्त राष्ट्रसंघ और अन्य अंतरराष्ट्रीय समुदायों ने भी उनके कामों की सराहना की है। वास्तव में बांग्लादेश की कलीसिया रोहिंग्या शरणार्थियों के बीच प्यार और करुणा के साथ सक्रिय रूप से मौजूद है।








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