2017-11-28 14:53:00

म्यानमार के सरकारी अधिकारियों, राजनयिकों एवं प्रतिनिधियों को संत पापा का संदेश


म्यानमार, मंगलवार, 28 नवम्बर 2017 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने म्यानमार में अपनी प्रेरितिक यात्रा के दौरान 28 नवम्बर को, नाय पिई ताउ में म्यानमार के सरकारी अधिकारियों, राजनयिकों एवं नागरिक समाज के प्रतिनिधियों से मुलाकात की।

संत पापा ने उन्हें सम्बोधित कर कहा, ″मैं म्यानमार की यात्रा हेतु आपके निमंत्रण के लिए कृतज्ञ हूँ।″ मैं उन सभी के प्रति भी आभारी हूँ जिन्होंने कड़ी मेहनत से इस यात्रा को सम्भव बनाया है। मैं सबसे बढ़कर इसलिए यहाँ आया हूँ ताकि देश के सबसे छोटे किन्तु उत्साही काथलिक समुदाय के साथ प्रार्थना कर सकूँ, उन्हें विश्वास में दृढ़ता प्रदान कर सकूँ तथा देश की भलाई के लिए उनके योगदान के प्रयास को प्रोत्साहन दे सकूँ। मुझे सर्वाधिक खुशी इस बात की है कि मेरी यात्रा म्यानमार एवं वाटिकन के बीच औपचारिक संबंध स्थापित किये जाने के तुरन्त बाद हो रही है। मैं इस निर्णय को, अंतरराष्ट्रीय समुदाय में वार्ता एवं रचनात्मक सहयोग के लिए राष्ट्र के समर्पण के चिन्ह स्वरूप देख रहा हूँ, यद्यपि यह सिविल सोसाइटी की संरचना को नवीनीकृत करने के प्रयास के रूप में है।

संत पापा ने म्यानमार से सभी लोगों से मुलाकात करने की इच्छा व्यक्त करते हुए कहा कि मैं म्यानमार के सभी लोगों का आलिंगन करना एवं न्याय, मेल-मिलाप तथा समावेशी सामाजिक व्यवस्था के लिए काम करने वालों को प्रोत्साहन देना चाहता हूँ।

म्यानमार की प्राकृतिक समृद्धि की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए उन्होंने कहा, ″म्यानमार प्राकृतिक सौंदर्य एवं संसाधनों का धनी है फिर भी, इसका सबसे बड़ा खजाना है यहाँ की जनता, जिन्होंने घोर दुःख सहा है और आज भी नागरिक संघर्ष एवं विरोध के कारण पीड़ित है। यह संघर्ष काफी लम्बे समय से चल रहा है और जिसकी वजह से गहरा विभाजन उत्पन्न कर दिया है। ऐसी स्थिति में देश जब शांति स्थापना हेतु कार्य कर रही है, तब उन घावों की चिकित्सा एक सर्वोच्च राजनीतिक और आध्यात्मिक प्राथमिकता होनी चाहिए।

संत पापा ने शांति स्थापना हेतु सरकार के प्रयासों की सराहना की, खासकर, पांगलांग शांति सम्मेलन के द्वारा जिसने हिंसा को समाप्त करने, एक-दूसरे के प्रति विश्वास जगाने तथा इस भूमि के सभी लोगों के अधिकारों के प्रति सम्मान सुनिश्चित करने के लिए कई प्रतिनिधियों को एक साथ लाया था।

संत पापा ने शांति निर्माण और राष्ट्रीय सामंजस्य की कठिन प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए, न्याय और मानवाधिकारों के सम्मान के लिए प्रतिबद्धता को आवश्यक बतलाया। उन्होंने कहा कि पूर्वजों ने न्याय को ही सच्चे और स्थायी शांति के आधार के रूप में देखा था। इन अंतर्दृष्टियों द्वारा दो विश्व युद्दों के दुःखद अनुभवों का अंत हुआ, जिसने संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना हेतु प्रेरित किया तथा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के न्याय, शांति और मानव विकास को दुनिया भर में बढ़ावा देने के प्रयासों के आधार के रूप में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की एवं संघर्ष का समाधान ताक़तों से नहीं बल्कि वार्ता द्वारा करने की प्रेरणा दी। इस मायने में, हमारे बीच के राजनयिक ईकाई की उपस्थिति न केवल राष्ट्रों के एकभाव में म्यांमार की जगह को प्रस्तुत करता है बल्कि उन मूलभूत सिद्धांतों को आगे बढ़ाने के लिए देश की प्रतिबद्धता का स्मरण दिलाता है।

संत पापा ने आशा व्यक्त की कि म्यानमार का भविष्य शांतिमय होगा जो समाज के प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिष्ठा एवं अधिकार के प्रति सम्मान पर आधारित होगा। हर जाति के लोगों एवं उनकी अस्मिता के प्रति सम्मान, नियमों की कद्र तथा एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए श्रद्धा जो प्रत्येक व्यक्ति और हर समूह को समर्थ बनायेगा, जिसमें सार्वजनिक हित के लिए वैध योगदान देने से कोई वंचित नहीं रहेगा।

संत पापा ने म्यानमार के धार्मिक समुदायों की भूमिका की याद दिलाते हुए कहा, "देश में मेल-मिलाप एवं एकीकरण के महान कार्य के लिए म्यानमार के धार्मिक समुदायों की अहम भूमिका होनी चाहिए। धार्मिक विविधताएँ विभाजन एवं अविश्वास का कारण न बनें बल्कि एकता, क्षमाशीलता, सहिष्णुता तथा प्रज्ञापूर्ण राष्ट्र निर्माण की शक्ति बनें। वर्षों से जारी संघर्ष के कारण हुए भावनात्मक, आध्यात्मिक और मानसिक घावों को भरने हेतु धर्म की भूमिका महत्वपूर्ण होनी चाहिए। धर्मों में निहित मूल्यों द्वारा संघर्ष के कारणों को उखाड़ फेंकने, वार्ता हेतु सेतु के निर्माण, न्याय की खोज और पीड़ितों के लिए नबी की आवाज बनकर, वे लोगों की मदद कर सकते हैं। यह आशा का महान चिन्ह है कि इस देश के विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के नेता, सौहार्द और आपसी सम्मान के साथ शांति, ग़रीबों की मदद तथा सच्चा मानवीय एवं धार्मिक मूल्यों की शिक्षा देने के लिए एक साथ काम करने का प्रयास कर रहे हैं। सांस्कृतिक मुलाकात एवं एकात्मता की स्थापना करने में वे सार्वजनिक हित को योगदान दे रहे हैं तथा भावी आशा एवं आने वाली पीढ़ी के लिए समृद्धि की एक अपरिहार्य नैतिक नींव डाल रहे हैं।

संत पापा ने म्यानमार के युवाओं से आशा व्यक्त करते हुए कहा, "भविष्य अभी भी देश के युवाओं के हाथ में है।" उन्होंने कहा कि युवा एक उपहार हैं जिन्हें प्रेम और प्रोत्साहन दिया जाना और उनकी क्षमताओं के विकास पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यदि उन्हें नौकरी के अवसर एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले तो वे अवश्य ही अच्छे परिणाम ला सकेंगे। संत पापा ने कहा कि तेजी से बदलते और परस्पर एक-दूसरे से जुड़े विश्व में म्यांमार का भविष्य अपने युवाओं के प्रशिक्षण पर निर्भर करेगा किन्तु युवाओं को न केवल तकनीकी ज्ञान बल्कि ईमानदारी, अखंडता और मानव एकता आदि जैसे नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी दिया जाना आवश्यक है जो लोकतंत्र के एकत्रीकरण और समाज के हर स्तर पर एकता और शांति के विकास को सुनिश्चित कर सकेगा।

उन्होंने कहा कि अंतर-पीढ़ी न्याय भी यही मांग करता है कि भावी पीढ़ी प्राकृतिक पर्यावरण को मानव लोभ एवं विध्वंस से बचा हुआ प्राप्त करे। यह आवश्यक है कि हमारे युवाओं का भविष्य, उनके आदर्शवादी विचारों को व्यक्त करने के अवसर तथा अपने देश एवं विश्व को संवारने की उनकी क्षमता न छिन जाए।

संत पापा ने सभी काथलिक भाई बहनों को सम्बोधित कर कहा, "इन दिनों मैं अपने काथलिक भाई बहनों को उनके विश्वास में सुदृढ़ करने तथा उन्हें उदार एवं मानवीय कार्यों द्वारा मेल-मिलाप और भाईचारा के संदेश का साक्ष्य देने में सतत् बने रहने हेतु प्रोत्साहन देना चाहता हूँ ताकि पूरे समाज को इसका लाभ मिल सके।"

संत पापा ने आशा व्यक्त की कि अन्य धर्मावलम्बियों के साथ सम्मानपूर्ण सहयोग द्वारा, वे नये युग में प्यारे देश के सामंजस्य एवं उन्नति के द्वार खोलने में मदद कर पायेंगे। उन्होंने ध्यान पूर्वक सुनने के लिए सभी को धन्यवाद दिया तथा सार्वजनिक हित में उनकी सेवाओं के लिए शुभकामनाएं अर्पित की। संत पापा ने सभी पर प्रज्ञा, सामर्थ्य और शांति के दिव्य आशीष की कामना की।








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