2017-11-27 11:25:00

म्यानमार और बंगलादेश में सन्त पापा फ्राँसिस की प्रेरितिक यात्रा शुरु


याँगून, सोमवार, 27 नवम्बर 2017 (रेई,वाटिकन रेडियो): सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु, सन्त पापा फ्राँसिस ने सोमवार, 27 नवम्बर को म्यानमार एवं बंगलादेश की छः दिवसीय प्रेरितिक यात्रा शुरु की। सन्त पापा की यह यात्रा एशिया के सर्वाधिक दूरस्थ परिसरों में निवास करनेवाले निर्धनों के लिये और साथ ही इन दोनों देशों के लघु काथलिक समुदायों के लिये अत्यन्त अर्थगर्भित है। इस यात्रा पर इसलिये भी विश्व अपनी दृष्टि लगाये हुए है क्योंकि म्यानमार और बंगलादेश दोनों राष्ट्र रोहिंगिया मुसलमानों के अहं सवाल पर जूँझ रहे हैं।

म्यानमार के स्थानीय काथलिकों ने सन्त पापा फ्राँसिस से सार्वजनिक रूप से निवेदन किया है कि अपनी यात्रा के दौरान वे "रोहिंगिया" शब्द का उच्चार न करें इसलिये कि राष्ट्र में इस जाति को मान्यता नहीं दी गई है। हालांकि, कई मौकों पर सन्त पापा रोहिंगिया मुसलमानों के लिये प्रार्थना का अनुरोध कर चुके हैं।

म्यानमार प्रेरितिक यात्रा पर पत्रकारों से रुबरू होते हुए वाटिकन के प्रवक्ता ने कहा कि जहाँ तक वाटिकन का सवाल है "रोहिंगिया" शब्द कोई निषिद्ध शब्द नहीं है जबकि वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पियेत्रो पारोलीन ने प्रेरितिक यात्रा की पूर्वसन्ध्या मीडिया से हुई बातचीत में अत्यन्त सावधानी बरतते हुए इस शब्द का प्रयोग नहीं किया।  

आलइतालिया के चार्टर विमान से सोमवार, 27 नवम्बर को सन्त पापा फ्राँसिस याँगून पहुँचे तथा 02 दिसम्बर को बंगलादेश की राजधानी ढाका में एक युवा रैली को सम्बोधित करने के उपरान्त अपनी छः दिवसीय यात्रा समाप्त करेंगे। इटली से बाहर सन्त पापा फ्राँसिस की यह 21 वीं विदेश यात्रा है।  

म्यानमार में निर्धारित कार्यक्रमों के अनुसार सन्त पापा फ्राँसिस म्यानमार की नागर नेता आऊन सान सूकी, देश के शक्तिशाली सेना कमाण्ड तथा बौद्ध भिक्षुओं से अलग-अलग मुलाकातें करेंगे। साथ ही रोहिंगिया मुसलमानों के एक प्रतिनिधिमण्डल का साक्षात्कार करेंगे। बंगलादेश की राजधानी ढाका में वे राजनैतिक एवं धार्मिक वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकातें करेंगे। इसके अतिरिक्त, दोनों ही राष्ट्रों में कलीसियाई नेताओं से मुलाकातें, काथलिक विश्वासियों के लिये ख्रीस्तयाग अर्पण तथा युवाओं को सम्बोधन आदि इस छः दिवसीय यात्रा सम्बन्धी कार्यक्रम के अभिन्न अंग हैं।

म्यानमार दक्षिण पूर्वी एशिया का सर्वाधिक विशाल देश है, जिसका कुल क्षेत्रफ़ल ६,७८,५०० वर्ग किलोमीटर है। इसकी उत्तर पश्चिमी सीमाएं भारत के मिज़ोरम, नागालैण्ड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और बांग्लादेश के चिटगाँव प्रांत से संलग्न हैं। उत्तर में इसकी सीमा तिब्ब्त और चीन से संलग्न है तथा लाओस एवं थाईलैंड इसके दक्षिण-पूर्व में हैं। देश की कुल आबादी पाँच करोड़ तीस लाख है जिनमें 87 प्रतिशत लोग बौद्ध धर्मानुयायी हैं। लगभग छः प्रतिशत ख्रीस्तीय तथा चार प्रतिशत इस्लाम धर्मानुयायी हैं। काथलिकों की संख्या लगभग 6,60,000 है जो कुल आबादी का 1.27 प्रतिशत है।

म्यानमार में काथलिक धर्म का सूत्रपात लगभग पाँच शताब्दियों पूर्व हुआ था। पीढ़ी दर पीढ़ी  काथलिक धर्मानुयायी म्यानमार के उन दूरस्थ गाँवों में सामाजिक सेवाएँ अर्पित करते रहे हैं जहाँ म्यानमार के अधिकारियों का पहुँचना दूभर जान पड़ता था। दुर्भाग्यवश, सन् 1965 ई. में जब समाजवादी सरकार ने सत्ता सम्भाली तब से अधिकांश ख्रीस्तीय स्कूलों, छात्रावासों तथा काथलिकों की अन्य चल-अचल सम्पत्ति, बन्दूक की नोक पर, सेना द्वारा जब्त कर ली गई थी। हाल के दशक में ही काथलिक धर्मानुयायी पुनर्निर्माण कार्य को शुरु करने में सफल हुए हैं।  

वाटिकन रेडियो की संवाददाता फिलिप्पा हिचेन्स ने याँगून से प्रेषित रिपोर्ट में बताया कि सन्त पापा फ्राँसिस की म्यानमार यात्रा उनकी यात्राओं से भिन्न प्रतीत होती है। यात्रा की पूर्व सन्ध्या याँगून की सड़कों पर सन्त पापा के आगमन का कोई संकेत नज़र नहीं आ रहा था। केवल याँगून के मरियम महागिरजाघर तथा महाधर्माध्यक्षीय निवास के बाहर लगे पोस्टरों से पता चलता था कि सन्त पापा फ्राँसिस म्यानमार आने वाले थे।  

म्यानमार के काथलिक नेताओं का कहना है कि देश के सर्वाधिक लघु समुदाय होने के कारण कई बार काथलिकों को भेद-भावों का सामना करना पड़ता है। म्यानमार काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के प्रवक्ता फादर मरियानो सोए नैंग ने कहा, "काथलिक होने के नाते हमें अनवरत चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ग़ौरतलब है कि लगभग 100 वर्षों के ब्रिटिश राज्य के बाद सन् 1948 में म्यानमार को स्वतंत्रता मिली थी इसलिये अनेक लोग ख्रीस्तीय धर्म को उपनिवेशवाद का धर्म मानते हैं। फादर मरियानो ने बताया कि ख्रीस्तीयों को समाज में किसी प्रकार की प्रमुख भूमिका नहीं दी जाती है। उन्होंने कहा, "सच तो यह है कि यदि म्यानमार में आप ख्रीस्तीय धर्मानुयायी हैं तो आपको प्रमोशन कतई नहीं मिलेगा।" 

सन् 2015 में जब सन्त पापा फ्राँसिस ने म्यानमार के प्रथम कार्डिनल रूप में महाधर्माध्यक्ष चार्ल्स माओंग बो की नियुक्ति की थी तब म्यानमार के काथलिकों में नवीन आशा का संचार हुआ था।  इस वर्ष मई माह में म्यानमार एवं परमधर्मपीठ के बीच स्थापित कूटनैतिक सम्बन्धों से यह आशा मज़बूत हुई थी और अब, विश्वव्यापी कलीसिया के परमधर्मगुरु की देश में आधिकारिक यात्रा से, कलीसियाई नेताओं को उम्मीद है कि सन्त पापा की देश में उपस्थिति म्यानमार के लघु काथलिक समुदाय के लिये नया वसन्त लेकर आयेगी। फादर मरियानो ने पत्रकारों से कहा, "सन्त पापा की यात्रा काथलिकों को दर्शनीय बनायेगी तथा म्यानमार में काथलिक समुदाय की उपस्थिति के प्रति चेतना जागृत करेगी।" 








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