2017-11-09 16:50:00

संत पापा जॉन पौल प्रथम के वीरोचित सदगुणों को वाटिकन ने स्वीकारा


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 9 नवम्बर 2017 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने बुधवार 9 नवम्बर को कार्डिनल आन्जेलो आमातो के नेतृत्व में परमधर्मपीठीय सन्त प्रकरण परिषद द्वारा प्रस्तावित आज्ञप्ति को अनुमोदन देते हुए संत पापा जॉन पौल प्रथम के वीरोचित सदगुणों को मान्यता देकर, उन्हें प्रभु सेवक घोषित किये जाने की स्वीकृति दी।

संत पापा जॉन पौल प्रथम के साथ-साथ उन्होंने 7 अन्य लोगों, जिनमें 2 के शहादत एवं 5 के वीरोचित सदगुणों को भी मान्यता प्रदान की।

प्रभु सेवक संत पापा जॉन पौल प्रथम

संत पापा जॉन पौल प्रथम ने 33 दिनों तक ही कलीसिया का परमाध्यक्षीय कार्यभार सँभाला था किन्तु उन्होंने इसी थोड़े समय में काथलिक कलीसिया में अमिट छाप छोड़ दिया।

उस छोटी अवधि में ही लोगों ने उन्हें ″स्माईलिंग पोप″ (मुस्कुराने वाले संत पापा) की संज्ञा दी थी। उन्होंने नौ भाषण एवं तीन संदेश दिये, तीन प्रेरितिक पत्र लिखे, चार अन्य आधिकारिक पत्र प्रेषित किया, दो प्रवचन दिये, पाँच रविवारों को देवदूत प्रार्थना का नेतृत्व किया तथा चार बुधवारों को आमदर्शन समारोह में भाग लिया। दूसरों के साथ मुलाकात में वे विश्वासी, विनम्र एवं दीन व्यक्ति के रूप में पहचाने जा सकते थे किन्तु साथ ही साथ कलीसिया की शिक्षा में वे कड़ाई भी बरतते थे। ईश्वर के प्रेम और पड़ोसी के प्रेम पर उनका विशेष ध्यान था।

प्रभु सेवक संत पापा जॉन पौल प्रथम का जन्म 17 अक्तूबर 1912 में इटली के फोरनो दी कानाले में हुआ था। उनके बचपन का नाम अलबीनो लुचियानी था। 2 फरवरी 1935 को उनका उपयाजक अभिषेक तथा 7 जुलाई 1935 को पुरोहिताभिषेक हुआ था।

27 दिसम्बर 1958 को संत पेत्रुस महागिरजाघर में संत पापा जॉन 23वें के कर-कमलों से उनका धर्माध्यक्षीय अभिषेक सम्पन्न हुआ था।

सन् 1977 में उन्होंने रोम में आयोजित चौथी धर्माध्यक्षीय धर्मसभा में भाग लिया। उसके दूसरे साल संत पापा पौल षष्ठम के निधन पर 10 अगस्त को पुनः वाटिकन आये। कॉनक्लेव के दूसरे दिन 26 अगस्त को वे काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष चुन लिये गये। जहाँ उन्होंने अपने पूर्वाधिकारी की तरह सेवा करने के मनोभाव से अपना नाम संत पापा जॉन पौल प्रथम रखा। इतिहास में वे प्रथम संत पापा थे जिन्होंने दो संत पापाओं (संत पापा जोन और संत पापा पौल) के नाम को अपने लिए एक साथ रखा।

लुचियानी ने एक धर्माध्यक्ष के रूप में एक गुरु और एक सेवक की तरह सेवा देने का प्रण किया था जो संत पापा चुने जाने के बाद अधिक स्पष्ट दिखाई पड़ने लगा था। उन्होंने पोप पदग्रहण समारोही ख्रीस्तयाग का त्याग करते हुए, अपने कार्यकाल की शुरूआत करने हेतु सामान्य उद्घाटन को चुना। उन्होंने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में लोगों के बीच आरामकुर्सी पर बैठकर घूमने की प्रथा को भी अस्वीकार किया।

वे एक उत्साही, सज्जन एवं दयालु व्यक्ति थे और सबसे मित्र भाव रखते थे। उन्होंने अपने वाक-चातुर्य की क्षमता से लोगों को मोह लिया था। उनके विचारों में मानवता एवं अत्यधिक प्रेम की भावना परिलक्षित होती थी तथा ईश्वर एवं उनकी प्रजा के प्रति उत्साह झलकता था। 

उनकी छः योजनाएं प्रकट करती हैं कि उनका परमाध्यक्षीय काल किस तरह होता। उन्होंने वाटिकन द्वितीय महासभा की नीतियों के अनुसार कलीसिया के नवीनीकरण की योजना बनायी थी, जिसमें उन्होंने कलीसिया के कानून पर पुनः विचार, सुसमाचार प्रचार करने की कलीसिया के कर्तव्य की याद दिलाने, कलीसिया की एकता को बढ़ावा देने, वार्ता को प्रोत्साहन देने एवं विश्व शांति और सामाजिक न्याय को प्रोत्साहन देने की परिकल्पना की थी। 

उनके उतराधिकारी संत पापा जोन पौल द्वितीय ने उनके विश्वास, आशा और प्रेम के सदगुणों पर प्रकाश डाला था जबकि संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने कहा था कि अपने सद्गुणों के कारण वे 33 दिनों के परमाध्यक्षीय काल में ही लोगों का हृदय जीत लिया था।

संत पापा जॉन पौल प्रथम दया और विनम्रता के आदर्श उदाहरण हैं।

उनकी मध्यस्थता द्वारा दो चमत्कारों को माना जा रहा है एवं उनपर जाँच जारी है। उनमें से यदि एक भी सही प्रमाणित हो तो उन्हें धन्य घोषित किया जाएगा। 








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