2017-10-28 17:11:00

हर परिस्थिति में मानव प्रतिष्ठा की रक्षा करना एक नैतिक कर्तव्य


वाटिकन सिटी, शनिवार, 28 अक्टूबर 2017 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 28 अक्टूबर को तीसरी अंतरराष्ट्रीय मानवीय अधिकार सम्मेलन में भाग ले रहे 250 प्रतिभागियों से वाटिकन स्थित क्लेमेंटीन सभागार में मुलाकात की तथा कहा कि हर परिस्थिति में मानव प्रतिष्ठा की रक्षा करना एक नैतिक कर्तव्य है।

रोम में 27 से 28 अक्तूबर तक आयोजित सम्मेलन की विषय वस्तु थी ″युद्ध में नागरिकों की रक्षा, मानवीय तथा नागरिक समाज के संगठनों की भूमिका″ जो अंतरराष्ट्रीय नियम के यूरोपीय समाज के तत्वधान में आयोजित किया गया था। 

संत पापा ने कहा कि यह विषयवस्तु खासकर, सशस्त्र संघर्ष के शिकार लोगों की सुरक्षा पर जेनेवा सम्मेलन द्वारा दो अतिरिक्त संलेख अपनाये जाने की 40वीं वर्षगाँठ के लिए अति महत्वपूर्ण है।

संत पापा ने कहा कि अत्याचार और विनाश जो युद्ध का परिणाम है, इसका दुष्प्रभाव नागरिकों, बुनियादी ढांचा एवं पूजा स्थलों पर पड़ता है, जो सुरक्षा के अंतरराष्ट्रीय संलेख – हृदय परिवर्तन एवं नैतिक अंतःकरण में जागरूकता लाने के बावजूद अब भी काफी मात्रा में जारी है।  

रोम में चल रहे इस सम्मेलन में विश्व भर के सरकारी एवं राजनीतिक अधिकारी भाग ले रहे हैं।

संत पापा फ्राँसिस ने यह कहते हुए, हर परिस्थिति, खासकर, सशस्त्र संघर्ष में, मानव प्रतिष्ठा की रक्षा करने पर जोर दिया कि हमारे जीवन के अंत में युद्ध के शिकार लोगों के प्रति हमारे दया एवं एकात्मता के कामों के आधार पर हमारा न्याय किया जाएगा। 

युद्ध के दौरान क्रूरता एवं अत्याचार

संत पाप ने इस बात को रेखांकित किया कि परमधर्मपीठ, युद्ध की नकारात्मक प्रकृति एवं मानव द्वारा उसे समाप्त किये जाने की लालसा से सहमत है, 1949 में जेनेवा सम्मेलनों के 1977 में अतिरिक्त प्रोटोकॉल की पुष्टि हुई है, ताकि "सशस्त्र संघर्ष के प्रभाव के मानवीकरण" को प्रोत्साहित दिया जा सके।

संत पापा ने नागरिक आबादी पर युद्ध के दौरान क्रूरता एवं अत्याचार पर ध्यान आकृष्ट किया जहाँ विकृत एवं विभिन्न दलों द्वारा हमारे भाई-बहनों को अत्याचार, क्रूस एवं जिंदा जला दिये जाने की क्रूरता का सामना करना पड़ रहा है जो उनके मानव प्रतिष्ठा का घोर हनन है। उनकी सांस्कृतिक धरोहर, अस्पताल, स्कूल आदि नष्ट किये जा रहे हैं तथा पूरी पीढ़ी को पूजा स्थलों, उनके जीवन, स्वास्थ्य, शिक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित किया जा रहा है।

उदासीनता

संत पापा ने चेतावनी दी कि इस तरह के समाचार हमें ″परिपूर्णता″ की ओर अग्रसर कर सकता है जो हमें आचेतन स्थिति में ला सकता है और समस्या की गंभीरता को समझने तथा एक-दूसरे के प्रति दया एवं एकात्मता की भावना से प्रेरित होने में बाधक बन सकता है। संत पापा ने मन परिवर्तन तथा ईश्वर एवं पड़ोसी के प्रति खुला होने की अपील की। लोगों को उदासीनता के घेरे से बाहर आने एवं एकात्मता को नैतिक गुण एवं सामाजिक मनोभाव के रूप में धारण करने का परामर्श दिया।

उन्होंने युद्ध के दौरान खतरों एवं परेशानियों के बावजूद कलीसिया अथवा गैरख्रीस्तीय लोगों, उदार संगठनों एवं गैर-सरकारी संगठनों के द्वारा एकात्मता के कार्यों के प्रति संतोष व्यक्त किया जो घायलों, बीमारों, भूखों, कैदियों एवं मृत लोगों के पास पहुँचते हैं। उन्होंने कहा, ″निश्चय ही संघर्ष के शिकार लोगों की सहायता कई तरह से दया के कामों की मांग करता है जिसके आधार पर जीवन के अंत में हमारा न्याय किया जाएगा।″

मानव प्रतिष्ठा की रक्षा एवं सम्मान नैतिक कर्तव्य

संत पापा की उम्मीद है कि युद्ध करने वाले, साथ ही साथ मानवीय संगठन तथा कार्यकर्ता, मानवता, निष्पक्षता, तटस्थता और स्वतंत्रता के मौलिक सिद्धांतों का अभ्यास कर सकेंगे जो मानव के हृदयों में अंकित है। 








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