2017-10-21 15:38:00

सच्ची, ठोस एवं सम्मानपूर्ण भावनाएँ ही लोगों को बढ़ने में मदद दे सकती हैं


वाटिकन सिटी, शनिवार, 21 अक्टूबर 2017 (रेई): संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार, 21 अक्टूबर को नवीन सुसमाचार प्रचार हेतु बनी परमधर्मपीठीय समिति के तत्वधान में आयोजित सम्मेलन के 450 प्रतिभागियों से वाटिकन स्थित क्लेमेंटीन सभागार में मुलाकात की, जो धर्मशिक्षा खासकर, शारीरिक रूप से अक्षम लोगों की धर्मशिक्षा हेतु समर्पित हैं।

संत पापा ने विगत दशकों में शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के आध्यात्मिक विकास पर गौर करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिष्ठा के प्रति जागरूकता, विशेषकर, दुर्बलों के प्रति ध्यान ने उन लोगों को शामिल किये जाने की सकारात्मक स्थिति की ओर प्रेरित किया है जो विभिन्न तरह की शारीरिक दुर्बलताओं से ग्रसित हैं ताकि अपने आप में कोई भी अजनबी महसूस न करे।

उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक स्तर पर अब भी कुछ ऐसे विचार रह गये हैं जो जीवन के बारे गलत धारणाओं के कारण उन लोगों को विचलित कर देते हैं। आत्मबल तथा उपयोगी दृष्टिकोण बहुधा शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को बहुमुखी मानव एवं आध्यात्मिक समृद्धि के लिए अनुपयुक्त मानते हुए उन्हें हाशिये पर जीवन यापन करने वालों के रूप में देखता है। आम मानसिकता में इस तरह के लोगों के प्रति उपेक्षा की भावना अब भी काफी मजबूत है। संत पापा ने कहा कि हम कई ऐसे लोगों को जानते हैं जिन्होंने अपनी दुर्बलताओं के बावजूद सुन्दर जीवन का निर्माण किया है और अपने जीवन को सार्थक बनाया है जबकि दूसरी ओर हम ऐसे लोगों से भी अवगत हैं जो अभेद्य होने की खतरनाक धारणा पालते हैं।

संत पापा ने कहा कि इसका उत्तर है प्रेम, न कि गलत और झूठी धारणाएँ। सच्ची, ठोस एवं सम्मानपूर्ण भावनाएँ ही उन्हें बढ़ने में मदद दे सकती हैं जिसको स्वागत एवं उनके प्रति प्रेम की भावना द्वारा प्रकट किया जा सकता है। उन्हें समुदाय में शामिल करते हुए भविष्य की आशा हेतु उनका साथ दिया जा सकता है, उन्हें जीवन के सच्चे मार्ग में बढ़ने एवं स्थायी आनन्द का अनुभव करने में मदद दिया जा सकता है। यह सभी के लिए लागू होता है किन्तु कमजोर लोगों के लिए अधिक आवश्यक है।

संत पापा ने कहा कि विश्वास, जीवन का महान हमराह है जो उस पिता की उपस्थिति के साथ हमारा स्पर्श करता, जो हमारी किसी भी परिस्थिति में हमें कभी नहीं छोड़ते। शारीरिक रूप से दुर्बल लोगों की रक्षा एवं प्रोत्साहन में कलीसिया पत्थर की तरह कठोर नहीं हो सकती। वह परिवारों की सहायता द्वारा उन्हें अपनी एकाकी पन से बाहर आने में मदद देती है जो बहुधा ध्यान दिये जाने और समर्थन की कमी महसूस करते हैं।

ख्रीस्तीय जीवन में यह जिम्मेदारी अधिक बड़ी है। ख्रीस्तीय समुदाय शारीरिक रूप से अक्षम लोगों से बात करने, खासकर, मुलाकात एवं स्वागत के अवसरों से नहीं चूक सकती। विशेषकर, रविवार की धर्मविधि में वह उन्हें सम्मिलित करना सीखे क्योंकि यह पुनर्जीवित प्रभु के साथ मुलाकात का अवसर है और यही समुदाय उनकी जीवन यात्रा में उनके लिए आशा एवं साहस का स्रोत बन सकता है।  

संत पापा ने कहा कि धर्मशिक्षा सुसंगत रूप से खोजने और अनुभव करने का निमंत्रण देता है क्योंकि हरेक व्यक्ति अपने गुणों, सीमाओं एवं गंभीर असमर्थताओं के साथ येसु से मुलाकात कर एवं अपने को उनके विश्वास में समर्पित कर सकता है। ऐसा कोई नहीं है जिसकी शारीरिक एवं मानसिक दुर्बलता उसे येसु से मुलाकात करने में बाधक बन जाए क्योंकि ख्रीस्त का चेहरा सभी के अंतरतम को आलोकित करता है।

संत पापा ने उन्हें परामर्श दिया कि वे शारीरिक रूप से दुर्बल व्यक्तियों के प्रति असहज एवं भय की भावना से बाहर आयें तथा उनके लिए प्रभु की कृपा प्राप्त करने हेतु सच्चे माध्यम बनें ताकि कोई भी ईश्वर की कृपा से वंचित न हो।

संत पापा ने प्रचारकों से आशा व्यक्त की कि वे उनके लिए विश्वास को अधिक प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने हेतु अपना साक्ष्य दे सकें।








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