2017-10-18 17:19:00

येसु हमें मृत्यु से बचाते हैं


वाटिकन सिटी, बुधवार 18 अक्टूबर 2017, (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को आशा पर अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,

आज मैं ख्रीस्तीय आशा को मृत्यु की सच्चाई से तुलना करना चाहता हूँ, उस वास्तविकता को जिसे वर्तमान सभ्यता अपने बीच से दूर करने की सोचती है। मृत्यु के आने पर हम इसका सामना करने हेतु अपने को तैयार नहीं पाते हैं और इसे अपने से दूर करने की हर कोशिश करते हैं लेकिन हमारे अथक प्रयास के बावजूद इसका रहस्य हमारे लिए बना रहता है। अतः हम कह सकते हैं कि इस धरती पर जिसका जन्म हुआ है उसे एक दिन मौत को गले लगाना ही है।

पहले की सभ्यता ने मृत्यु की ओर साहसिक नजरों से देखते हुए अपनी पीढ़ी को इस बात से अवगत कराया कि यह एक अपरिहार्य सच्चाई है अतः जीवन को एक अविनाशी सत्य हेतु जीने की जरूरत है। संत पापा ने कहा कि स्तोत्र 90 का पद 12 हमें कहता है, “हमें जीवन की क्षणभंगुरता सीखा, जिससे हम में सद्बुद्धि आये।” जबकि स्तोत्र 88 का पद 48 हमें कहता है, “याद कर कि कितना अल्प है मेरा जीवन काल, कितने नश्वर हैं तेरे बनाये हुए मनुष्य।” ये पद हमें अपने जीवन की हकीकत को देखने में मदद करते हैं जहाँ हम मानव जीवन की नश्वरता को पाते हैं। हमारे दिन तेजी के बीत रहे हैं हम सौ सालों तक जीवित रहें लेकिन अंततः यह मात्र एक पल के समान होता है।

संत पापा ने कहा कि मृत्यु हमारे जीवन का नामोनिशान मिटा देती है। यह हमारे लिए एक कटु सत्य को पेश करती है कि हमारे जीवन के घमंड में किये गये कार्य, क्रोध और एक दूसरे के प्रति घृणा सब व्यर्थ होती है। मौत के आने पर हमें इस बात का पश्चाताप होता है कि हमने प्रेम पूर्ण जीवन नहीं जिया और उन बातों पर ध्यान नहीं दिया जो हमारे लिए जरूरी था। इसके विपरीत जिस प्रेम में हमने अपना त्याग किया वे जीवन के अंतिम पड़ाव में हमारे हाथों को पकड़े रहते हैं।

संत पापा ने कहा कि येसु मृत्यु के रहस्य पर प्रकाश डालते हैं। वे अपने जीवन के द्वारा हमें इस बात की शिक्षा देते हैं कि हमें अपने प्रियजनों से विदा लेने पर घोर दुःख का अनुभव होता है। वे स्वयं अपने मित्र लाजरुस की मृत्यु पर उसकी कब्र के सामने विचलित हो गये और उनकी आंखों से आँसू की धारा बह निकली।( यो. 11.35) इस परिस्थिति में हम येसु के मनोभावों को देखते हैं कि एक भाई के रुप में वे कैसे हमारे निकट रहते हैं।

वे जीवन दाता पिता से प्रार्थना करते और लाजरुस को कब्र से निकलने की आज्ञा देते हैं। इस तरह उसे जीवन प्राप्त होता है। इस संदर्भ में हम येसु को मृत्यु के विरूद्ध पाते हैं वे हमें मृत्यु से बचने और जीवन देने आते हैं।

सुसमाचार में एक दूसरी जगह जहाँ एक पिता मृत्यु शाया में पड़ी अपनी बेटी हेतु विश्वास में येसु से विनय करता है कि वह उसे जीवन प्रदान करें। (मरकुस.5.21-24, 35-43) हमारे लिए बीमार संतान के माता-पिता से अधिक संवेदनशील और कोई नहीं हो सकता है। येसु जैरुस के साथ उसके घर की ओर चलते पड़ते हैं लेकिन रास्ते में उन्हें यह संदेश मिलता है कि उसकी बेटी मर चुकी है, येसु को कष्ट देना उचित नहीं है। इस पर येसु जैरुस से कहते हैं, “मत डरो, बस, ईश्वर पर विश्वास रखो।” (मकु. 5.36) येसु इस बात से वाकिफ है कि वह व्यक्ति अपने में क्रोधित, हताशी और निराशा में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाला है अतः वे उसे सलाह देते हैं कि वे अपने हृदय में जलती आशा को बुझने न दे। संत पापा ने कहा, “आप न डरे, केवल आशा के लौ को जलने दें।” इस तरह येसु उसके घर जा कर मृत बच्ची को जीवन देते हुए प्रियजनों के हाथों में सुपुर्द करते हैं।

संत पापा ने कहा कि येसु हमें विश्वास के “शिखर” पर ले जाते हैं। मार्था अपने भाई लाजरुस की मृत्यु से दुखित हो कर उस धर्म सिद्धांत की ज्योति के विरूद्ध विलाप करती है जो हमें कहता है,“पुनरुत्थान और जीवन मैं हूँ, जो मुझ में विश्वास करता है वह मरने पर जीवित रहेगा और जो मुझ पर विश्वास करते हुए जीता है वह कभी नहीं मरेगा। क्या तुम इस पर विश्वास करती होॽ” (यो.11.25-26) जब कभी मृत्यु हमारे बीच में आती और हमारे जीवन के स्नेहमय ताने-बाने को नष्ट कर देती है तो येसु ख्रीस्त हम से इसी बात को पूछते हैं। हम अपने जीवन में दो चीज़ों को हमेशा पाते हैं एक तरफ विश्वास और दूसरी ओर भय का आतंक। “मैं मृत्यु नहीं हूँ मैं पुनरुत्थान और जीवन हूँ क्या तुम इस पर विश्वास करते होॽ” संत पापा ने विश्वासी समुदाय से पूछा, “क्या आप इस बात पर विश्वास करते हैंॽ”

मृत्यु के रहस्य के सामने हम सभी छोटे और असहाय हैं। यद्यपि यह हमारे लिए एक बड़ी कृपा बनती है जब हम अपने हृदयों में विश्वास के लौ को प्रज्वलित रखते हैं। जिस तरह उन्होंने जैरुस की बेटी के हाथों को पकड़ कर यह कहते हुए उसे उठाया, “तालिथा कुम”, ओ, लड़की मैं तुम से कहता हूँ, उठो।” (मकु. 5.41) वे उसी भांति हम में से प्रत्येक जन को कहेंगे,“उठो और आगे बढ़ो।”  

मृत्यु के पूर्व यही हमारा विश्वास है। जो कोई विश्वास करते हैं उनके लिए द्वार पूरी तरह खुला है और वे जो संदेह करते हैं उनके लिए ज्योति एक तरह से टिमटिमा रही होती है जो द्वार को पूरी तरह बंद नहीं करती है। यह हम सभों के लिए एक कृपा होगी जब हम इस ज्योति द्वारा अपने को अलोकित होता हुआ पायेंगे।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया तथा विशेषकर वे जो अपने प्रियजनों की मृत्यु पर शोक करते हैं उनके लिए आशा की किरण बनने का आहृवान करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








All the contents on this site are copyrighted ©.