2017-09-28 17:40:00

कोलंबिया के जेस्विट पुरोहितों से संत पापा की मुलाकात


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 28 सितम्बर 2017 (रेई): ‘चिविलता कथोलिका’ नामक काथलिक पत्रिका ने 10 सितम्बर को कोलंबिया की प्रेरितिक यात्रा के दौरान कार्ताखेना में संत पापा फ्राँसिस की जेस्विट पुरोहितों से मुलाकात की घटना को प्रकाशित किया है। इस पारिवारिक मुलाकात में पुरोहितों ने संत पापा से कई सवाल किये गये थे।

पहले सवाल के जवाब में संत पापा ने ″ईश्वर की प्रजा″ की विचारधारा पर प्रकाश डाला। संत पापा ने कहा था कि दुर्भाग्य से कभी-कभी हमें लोगों के लिए किन्तु ईश प्रजा के बिना सुसमाचार प्रचार करने का प्रलोभन होता है। सब कुछ प्रजा के लिए, फिर भी उनके लिए कुछ भी नहीं होता। यह मनोभाव अंततः सुसमाचार प्रचार के उदार और ज्ञानप्रद विचार की ओर जाता है। संत पापा कहा था कि कलीसिया ईश्वर की पवित्र प्रजा है यही कारण है कि जब हम कलीसिया को सुनना चाहें, हमें ईश प्रजा को महसूस करना होगा।    

उन्होंने कहा कि जब प्रजा की बात आती है हमें सावधान होना चाहिए क्योंकि हम लोकलुभावन में पड़ सकते हैं किन्तु हमें समझना चाहिए कि प्रजा कोई तार्किक श्रेणी नहीं है। यदि हम प्रजा के बारे में तार्किक योजनाओं पर बात करना चाहें तो हम उदारवादी या उदार प्रकृति की विचारधारा पर पड़ सकते हैं, इस प्रकार हम लोगों को वैचारिक ढांचे में बंद कर रख सकते हैं। जबकि प्रजा पौराणिक श्रेणी है और उसे समझने के लिए हमें उनमें प्रवेश करना होगा तथा उन्हें अंदर से साथ देना होगा।

संत पापा ने आगे कहा कि एक कलीसिया के रूप में, ईश्वर की पवित्र प्रजा को आगे ले जाने के लिए चरवाहे की जरूरत है जिसे उन लोगों की वास्तविकता के बीच से आना चाहिए न कि विचार धारा से। लोगों के जीवन में ईश्वर की जो कृपा प्रकट होती है वह कोई विचारधारा नहीं है। निश्चय ही अनेक ईशशास्त्री हैं को कई महत्वपूर्ण बातों की व्याख्या सुन्दर ढेंग से दे सकते हैं किन्तु संत पापा ने कहा कि कृपा को विचारधारा बिलकुल नहीं कहा जा सकता, यह विचारधारा से बढ़कर है। उन्होंने कहा कि जब मैंने कार्ताखेना में लोगों से मुलाकात की और उन्होंने अपने को व्यक्त किया तो मैंने एहसास किया कि वे ईश्वर की प्रजा हैं।

संत पापा ने अंधविश्वासी एवं सच्चे ईश प्रजा के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि धर्म अंधविश्वास के लिए खुला हो सकता है किन्तु यदि वह अच्छी तरह से उन्मुख है तो वह मूल्यों की समृद्धि एवं ईश्वर के प्रति प्यास को प्रकट करेगा, जिसको केवल दीन एवं गरीब व्यक्ति ही समझ सकता है। संत पापा ने एक चरवाहे का कर्तव्य बतलाते हुए कहा कि वह भेड़ की गंध पहचानता है। उन्होंने चरवाहे के तीन मनोभाव बतलाये – वह आगे चलता है ताकि रास्ता दिखलाये, वह बीच में रहता है ताकि उन्हें पहचान सके और उनके पीछे रहता है ताकि किसी को छूटने न दे। उन्होंने कहा कि एक चरवाहे के रूप में हमें लगातार इन्हीं मनोभावों के साथ रहना चाहिए।  








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