वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 7 जुलाई 2017 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने जर्मनी के हैम्बर्ग में होने वाले जी 20 सम्मेलन के प्रतिभागियों के नाम अपने संदेश प्रेषित किया।
उन्होंने अपने विश्व प्रेरितिक संबोधन “एभेंजेलुम गौदियुम” की चार बातें जो कि भ्रातृत्व पूर्ण शांतिमय समाज की स्थापना हेतु मुख्य आधार शिला है, जोर देते हुए कहा कि समय स्थान की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है, युद्ध से बेहतर शांति, वास्तविकताएं विचारों से अधिक महत्वपूर्ण हैं; और पूर्णतः आंशिक से बड़ा है। हमारे कार्य करने हेतु ये नियमावलियां मानवता के प्राचीनतम ज्ञान और विवेक के अंग हैं। संत पापा ने कहा कि मैं आशा करता हूँ कि यह हैम्बर्ग में होने वाले जी 20 सम्मेलन की संगोष्ठी के दौरान विचार मंथन हेतु सहायक होगा।
समय स्थान से बड़ा हैः संत पापा ने कहा कि गंभीर, जटिल और वैश्विक एकीकरण की समास्याओं का निदान तुरंत और पूर्णरूपेण संतोषजनक करना संभव नहीं है। दुःख की बात है कि प्रवास की समस्या युद्ध से प्रभावित है। सरकार और शक्तिशाली बौद्धिक विचारों से इन समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है। इसके लिए हमें जाति, धर्म, रंग-रूप, देश और संस्कृति का भेद-भाव से ऊपर उठ कर गरीबों, प्रवासियों और पीड़ितों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
इस संदर्भ में जी20 के देशों, सरकारों से और पूरे विश्व समुदाय से अनुरोध करता हूँ कि आप युद्ध ग्रस्त देशों जैसे दक्षिणी सुडान, झील चाड बेसिन, हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका और यमन की ओर अपनी नजरों उठायें जहां तीस लाख लोग बुनियादी जरूरत की वस्तुओं का दंश झेल रहे हैं। उनके लिए जीविका की चीज़ें मुहैया करना मानवता की ओर हमारी निष्ठा और गंभीर की बात बंया करेंगी।
युद्ध से बेहतर शांतिः युद्ध समस्या का समाधान नहीं है। मैं आग्रह करता हूँ कि “नरसंहार” का अंत हो। जी20 सम्मेलन का उद्देश्य अर्थिक विषमताओं का शांति पूर्ण समाधान निकाले जिससे हम 2030 तक सतत विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। यह हमारे बीच तब संभव होगा जब हम आपसी प्रतिस्पर्धा, हथियारों के होड़ और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप में आपसी युद्दों की रोकथाम हेतु प्रयास करते हुए एक-दूसरे के प्रति खुला रहेंगे।
वास्तविकताएं विचारों से अधिक महत्वपूर्णः हमारे प्रथम सदी के विचारों का स्थानतरण आज नये विचारों से हो गया है जो बाजार स्वायत्तता और वित्तीय अटकलें पर जोर देता है। हमारे प्रचीन विचार-धारा और आदर्श मानव जीवन के केन्द्र-विन्दु थे जहाँ विभिन्नताओं के बावजूद हर नागरिक को सम्मान मिलता था। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि हैम्बर्ग सम्मेलन यूरोपीय देशों से नेताओं को आलोकित करें जिससे वे अहम के दायरे से बाहर निकलते हुए आपसी वार्ता के माध्यम समस्याओं का निदान निकाल सकें।
पूर्णतः आंशिक से बड़ाः हमें आज समस्याओं का हल ठोस और उनकी विशिष्टता पर ध्यान देते हुए करने की जरूरत है, लेकिन ऐसे समाधान जो स्थायी हैं हमारे व्यापक दृष्टिकोण को संकीर्ण न करें। हमें इसके प्रभाव को सभी देशों और नागरिकों में देखने की जरूरत है। मैं आशा करता हूँ हैम्बर्ग संगोष्ठी अन्तराष्ट्रीय समुदाय को विकास हेतु एक नया रुप प्रदान करेगा जो सृजनात्मक, पारस्परिक, चिरस्थायी, पर्यावरणीय रूप से सम्मानजनक और सभी लोगों को अपने में शामिल करेगा।
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