2017-06-08 16:13:00

महासागरों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण हेतु कार्डिनल टर्कशन के वक्तव्य


न्यूयॉर्क, बृहस्पतिवार, 8 जून 2017 (वीआर सेदोक): समग्र मानव विकास को प्रोत्साहन देने हेतु गठित परमधर्मपीठीय परिषद के अध्यक्ष कार्डिनल पीटर टर्कशन ने महासागरों, समुद्र और समुद्री संसाधनों के संरक्षण और स्थिरतापूर्वक उपयोग के संबंध में 5 से 9 जून तक न्यूयॉर्क में चल रहे सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए इसके सहयोग और समन्वय हेतु किये गये पहल का स्वागत किया।

कार्डिनल ने अपने सम्बोधन में बतलाया कि संत पापा फ्राँसिस ने गत माह व्यावसायिक निर्णय लेने, व्यापार संबंधी योजना बनाने और कानून एवं नीति को प्रभावित करने में पर्यावरणीय चिंताओं के महत्व को उजागर करने हेतु ″लौदातो सी चैलेंज″ नामक एक पहल जारी किया है जिसमें संयुक्त राष्ट्र महासभा और दुनिया भर से प्रमुख व्यवसायिक और राजनीतिक नेता शामिल हैं। उन्होंने कहा कि वे इस पहल को आगे बढ़ाने एवं मजबूत करने हेतु कटिबद्ध हैं।

उन्होंने कहा कि सशक्त विकास लक्ष्य 14 हासिल करना हर किसी के हित में है, क्योंकि हमारे महासागरों के सामने आने वाले मुद्दों की गंभीरता मानव जाति के अस्तित्व से जुड़ा है। खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के साथ-साथ महासागर, वैश्विक कार्बन चक्र, जलवायु नियमन, अपशिष्ट प्रबंधन, खाद्य श्रृंखलाओं और निवासों के रखरखाव जैसे विभिन्न पर्यावरणीय आवश्यकताओं, जो पृथ्वी पर जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं, वायु एवं स्वच्छता हेतु कच्चे माल की आपूर्ति में अहम भूमिका निभाती है।

कार्डिनल टर्कशन ने संत पापा फ्राँसिस के प्रेरितिक विश्व पत्र ″लौदातो सी″ का हवाला देते हुए कहा कि इसके द्वारा संत पापा पर्यावरण के नुकसान की गति को धीमी करने और पर्यावरण के लिए हानिकारक जीवन शैली के पैटर्न बदलने की अपील प्रत्येक व्यक्ति से करते हैं। उन्होंने कहा कि संसाधनों के प्रयोग में स्वार्थ की भावना को दूर करने के लिए व्यक्तिगत, राष्ट्रीय एवं विभिन्न अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सभी स्तरों को सम्बोधित किया जाना चाहिए।   

उन्होंने समुद्री संसाधनों पर नकारात्मक प्रभाव को रोकने तथा समुद्रों के दीर्घकालिक संरक्षण और टिकाऊ उपयोग हेतु हमें नैतिक विचारों को एकीकृत करने की आवश्यकता बतायी, क्योंकि पर्यावरणीय गिरावट, मानव एवं नैतिक पतन करीबी से जुड़े हैं। पर्यावरण को अपने आप से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि हम इसके अंग हैं तथा निरंतर इसके संपर्क में रहते हैं। इसलिए पर्यावरण संकट हम सभी का संकट है। यही कारण है कि हम सभी को पर्यावरण की रक्षा, गरीबी एवं बहिष्कार का सामना करना चाहिए ताकि सार्वजनिक संसाधनों का लाभ सभी को मिल सके।

नैतिक दृष्ट्कोण का अर्थ है इन बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों की देखभाल की हमारी जिम्मेदारी को गंभीरता पूर्वक लेना तथा उन लोगों की रक्षा करना, खासकर, जो गरीब, कमजोर तथा जो अपने दैनिक आवश्यकताओं के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं। नैतिक दृष्टिकोण से न केवल अधिकारों पर ध्यान देना है बल्कि दायित्वों पर भी, व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय दायित्वों। नियमों को सही तरह से लागू नहीं करने पर अधिकारों एवं दायित्वों के बीच दूरी आ जाती है। अतः हमारे आम गृह की देखभाल को हमेशा एक नैतिक अनिवार्यता के रूप में लिया जाना चाहिए। 

कार्डिनल ने कहा कि इस दृष्टिकोण को अपनाने के द्वारा सभी को लाभ होगा किन्तु कई सालों से महासागरों एवं समुद्रों की स्थिति पर खास ध्यान नहीं दिया गया है। चूंकि ये विशाल हैं अंतः माना जाता था कि मानव क्रिया-कलाप से यह प्रभावित नहीं होगा। हमने इसका प्रयोग बहुत सहज से किया है किन्तु अपने दायित्वों को सही तरीके से नहीं निभाया है।

कार्डिनल ने स्मरण दिलाया कि नैतिक दृष्टि भावी पीढ़ी के साथ एकात्मता हेतु प्रेरित करता है। संत पापा हमें याद दिलाते हैं कि अंतरपीढी एकात्मता वैकल्पिक नहीं है वरन् न्याय का आधारभूत सवाल है क्योंकि जिस विश्व को हमने प्राप्त किया है वह आने वाली पीढ़ी द्वारा भी प्राप्त किया जाना है। अतः महासागरों की देखभाल इस बात पर फायदेमंद हैं कि हम भावी पीढ़ी को पर्यावरण गिरावट भुगतने से बचायेंगे ताकि वे भी इसकी अनोखी सुन्दरता का आनन्द ले सकेंगे। 

कार्डिनल टर्कशन ने कहा कि कई धर्मों एवं संस्कृतियों में जल शुद्धीकरण का प्रतीक है इसी पृष्ट- भूमि पर संत पापा भी हमारे महासागरों, समुद्र और समुद्री संसाधनों के संरक्षण और स्थायी रूप से उपयोग करने के वैश्विक प्रयासों के नए सिरे से सहयोग और समन्वय के इस ताजी शुरुआत का स्वागत करते हैं। 








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