2017-06-05 15:41:00

क्षमाशीलता ही वह शक्ति है जो हमें एक साथ रखती


वाटिकन सिटी, सोमवार, 5 जून 2017 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने पेंतेकोस्त महापर्व के उपलक्ष्य में रविवार 4 जून को, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में ख्रीस्तयाग अर्पित किया तथा उसके उपरांत स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ किया।

संत पापा ने प्रवचन में कहा, ″पास्का की अवधि आज समाप्त होती है येसु के पुनरुत्थान के 50 दिनों बाद पेंतेकोस्त में पवित्र आत्मा की उपस्थिति को विशेष रूप से मनाया जाता है। यह वास्तव में हमारे लिए पास्का उपहार है। यह सृजनात्मक आत्मा है जो हमेशा नई चीजों को प्रकट करता है। आज के पाठों में दो समाचारों को प्रस्तुत किया गया है, पवित्र आत्मा द्वारा शिष्यों को नई प्रजा बनाने एवं सुसमाचार पाठ में शिष्यों में नये हृदय की सृष्टि करने के समाचार।″

संत पापा ने कहा, ″एक नई प्रजा। पेंतेकोस्त के दिन, पवित्र आत्मा स्वर्ग से उतरा। उन्हें एक प्रकार की आग दिखाई पड़ी जो जीभों में विभक्त होकर उन में हर एक के ऊपर आकर ठहर गयी वे सब के सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गये और पवित्र आत्मा प्रदत्त वरदान के अनुसार भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलने लगे। (प्रे.च. 2: 3 -4)

ईश वचन हमारे लिए पवित्र आत्मा के कार्यों का वर्णन करता है जो पहले शिष्यों पर उतरा और बाद में पूरे समुदाय पर। प्रत्येक के लिए यह एक वरदान था जिसके द्वारा सभी एकता के सूत्र में बंध गये। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि एक ही आत्मा विविधता एवं एकता दोनों उत्पन्न करता है। इस प्रकार, विश्व व्यापी कलीसिया की रचना हुई। पवित्र आत्मा कल्पना और अनिश्चितता द्वारा विविधता उत्पन्न करता, हर युग में नवीनता एवं विभिन्न तरह के कारिज्म को बढ़ाता है तथा वही आत्मा एकजुट करता, एक साथ लाता, उठाता और सौहार्द उत्पन्न करता है। इस उपस्थिति एवं कार्य द्वारा वह उनको एक साथ मिलाता है जो अलग हैं एवं उन्हें विभाजित भी करता है। इस प्रकार यह एक सच्ची एकता है जो ईश्वर के अनुसार है और जो समरूपता नहीं बल्कि विविधता में एकता लाता है।

संत पापा ने कहा कि इसके लिए दो प्रकार के प्रलोभनों से बचना चाहिए, पहला एकता के बिना विविधता को देखने का प्रयास एवं दूसरा विविधता के बिना एकता को देखने का प्रयास। पहला  तब होता है जब हम भेद करना चाहते हैं, दीवार बनाते और दलों में विभाजित होते हैं। जब हम बहिष्कार करने में कड़ा रूख अपनाते और अपनी ख़ासियत तक ही सीमित हो जाते हैं शायद यह सोचकर कि यही सबसे अच्छा है और हमेशा सही हो सकता है। कथिक रूप से वे ″सच्चाई के रक्षक″ माने जाते हैं। जब वे पूर्ण नहीं किन्तु अंश की खोज करते हैं। इससे एक ही आत्मा में भाई बहन बनने की अपेक्षा, प्रशंसकों के एक दल का निर्माण होता है। कलीसिया दायें के ख्रीस्तीय एवं बायें के ख्रीस्तीय, भूत एवं वर्तमान के रक्षक आदि दलों का निर्माण होता है। इस तरह यह एकता के बिना विभाजन है। दूसरा प्रलोभन है विविधता के बिना एकता को देखने का प्रयास। इसके द्वारा एकता का अर्थ समरूपता मान लिया जाता है। सभी चीजों को एक साथ एवं एक समान करने का दबाव होता है। हमेशा एक ही तरह की सोच को बढ़ावा दिया जाता। इस तरह, मात्र एकता साबित करने तक सीमित कर दी जाती है और जिसमें कोई स्वतंत्रता नहीं होती। संत पौलुस कहते हैं, ″जहां प्रभु का आत्मा है वहाँ स्वतंत्रता है।" (2 Cor. 3:17).

संत पापा ने पवित्र आत्मा से प्रार्थना करने की सलाह देते हुए कहा, ″पवित्र आत्मा से हमारी प्रार्थना इस एकता को स्वीकार कर पाने हेत कृपा की याचना करना हो, एक नजर जो व्यक्तिगत पसंद से ऊपर उठकर आलिंगन एवं प्रेम करें। कलीसिया में सभी के बीच एकता लाये, बेकार की बातों एवं विष फैलाने वाली ईर्ष्या को समाप्त करे, कलीसिया के स्त्री एवं पुरूष होने का अर्थ एकता के स्त्री एवं पुरूष बनना, एक ऐसे हृदय की याचना करना ताकि कलीसिया हमारी माता एवं हमारा घर प्रतीत हो। एक खुला घर जहाँ पवित्र आत्मा की बहुमुखी आनन्द को बांटा जा सके।

संत पापा ने प्रवचन में दूसरे समाचार पर चिंतन करते हुए कहा, ″नया हृदय।″ पुनर्जीवित येसु जब पहली बार अपनों को दिखाई दिये उन्होंने कहा, ″पवित्र आत्मा को ग्रहण करो। तुम जिन लोगों के पाप क्षमा करोगे वे अपने पापों से मुक्त किये जायेंगे।"(यो. 20: 22-23).

संत पापा ने कहा कि येसु अपने लोगों को दण्ड नहीं देते हैं जो उन्हें उनके दुखभोग के समय त्याग दिया था अथवा अस्वीकार किया था किन्तु उन्हें क्षमाशीलता का आत्मा प्रदान करते हैं। पवित्र आत्मा पुनरूत्थान का पहला वरदान है और जो क्षमाशीलता के रूप में प्रदान किया गया है। यहीं कलीसिया की शुरूआत होती है। क्षमाशीलता ही वह शक्ति है जो हमें एक साथ रखती, सींमेंट की तरह जो ईंट को जोड़कर मकान का निर्माण करता है क्योंकि क्षमाशीलता एक अचूक शक्ति है, महान प्रेम है जो सब कुछ से बढ़कर एकता को बनाये रखता है। जो गिरने से बचाता, सुदृढ़ करता एवं फिर से भर देता है। क्षमाशीलता हृदय को स्वतंत्र करता तथा इसे पुनः शुरू करने देता है। क्षमाशीलता आशा प्रदान करता, इसके बिना कलीसिया की उन्नति सम्भव नहीं है।

क्षमाशीलता जो समझौता लाता, हमें उन रास्तों का परित्याग करने की प्रेरणा देता है जो अन्याय का रास्ता है जो एक-दूसरे के दरवाजों को बंद करता, जो एकतरफा है एवं जो दूसरों की निंदा करता है। पवित्र आत्मा हमें प्रेरित करता है कि हम क्षमाशीलता को ग्रहण करने के रास्ते पर चलें, दिव्य करूणा की क्षमाशीलता जो हमारे पड़ोसियों के लिए प्रेम उत्पन्न करता और हमें उदार बनाता है।  

संत पापा ने विश्वासियों से प्रार्थना करने का आग्रह करते हुए कहा, ″हम उस कृपा की याचना करें जो हमारी माता कलीसिया का चेहरा और सुन्दर बना दे। हम क्षमाशीलता एवं अपने आप का सुधार करने के द्वारा अपने को नवीकृत कर सकें। तभी हम उदारता पूर्वक दूसरों को भी सुधार पायेंगे। हम पवित्र आत्मा से प्रार्थना करें जो प्रेम की अग्नि है जो कलीसिया एवं हम में जलती है किन्तु हम बहुधा उसे पापों की राख द्वारा ढकने का प्रयास करते हैं। प्रभु का आत्मा मेरे हृदय में एवं कलीसिया के हृदय में निवास करे।″








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