2017-05-22 16:35:00

प्रेम हमारा परिचय येसु से करता है


वाटिकन रेडियो, सोमवार, 22 मई 2017 ( सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने 21 मई को संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न स्थानों से आये हजारों विश्वासियों और तीर्थ यात्रियों के संग अपनी स्वर्गीय रानी प्रार्थना के पूर्व उन्हें संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाई एवं बहनो, सुप्रभात,

आज का सुसमाचार पिछले सप्ताह के सुसमाचार का अगला अंश है जो नाटकीय रुप में हमें येसु के द्वारा अपने शिष्यों को अंतिम व्यारी में दी गई शिक्षा से रूबरू करता है। संत योहन येसु के हृदय से निकलने वाली शिक्षा, जिसे वे अपने दुःखभोग और क्रूस मरण के पहले चेलों को दी हमारे समक्ष रखते हैं। येसु अपने शिष्यों से यह प्रतिज्ञा करते हैं कि दुनिया से विदा लेने के बाद उनके  लिए एक “सहायक” भेजा जायेगा। संत पापा ने कहा कि यहाँ इस शब्द का अर्थ हमारे लिए यही है एक न्यायकर्ता, एक रक्षक, एक दूसरा सलाहकार, सत्य का आत्मा। “मैं तुम्हें अनाथ नहीं छोडूँगा, मैं तुम्हारे पास आऊँगा। (यो.14.18) यह हमें येसु को एक नये रुप में आने की खुशी प्रदान करती है। वे पुनर्जीवित और महिमान्वित होकर पिता के संग निवास करते हैं जो पवित्र आत्मा के रुप में हमारे पास आते हैं। इस नये अवतार में वे पिता के संग अपनी और हमारी एकता को प्रकट करते हैं। “जिससे तुम यह जानों की मैं पिता में हूँ पिता मुझे और तुम मुझमें हो और मैं तुम में।(यो.14.20)

येहमें इस बात की अनुभूति होती है कि विश्वास में हम पवित्र आत्मा के द्वारा पिता और पुत्र ईश्वर के साथ आपसी एकता में संयुक्त हैं। एकता के इस रहस्य में माता कलीसिया अपने प्रेरिताई कार्य हेतु अथाह शक्ति प्राप्त करती है जो प्रेम के द्वारा प्राप्त  होता है। सुसमाचार में हम येसु को यह कहते हुए पाते हैंजो मेरी आज्ञाएं को जानता और उनका पालन करता है वही मुझे प्यार करता है और जो मुझे प्यार करता हैउसे मेरा पिता प्यार करेगा और उसे मैं भी प्यार करुंगा और उस पर अपने को प्रकट करुंगा। संत  पापा ने कहा कि यह प्रेम है जो हमारा परिचय येसु से कराता है। हम अपने सहायक और न्यायकर्ता के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करते हैं जिसे येसु पवित्र आत्मा के रूप में हमारे लिए भेजते हैं। उन्होंने कहा कि ईश्वर और अपने पड़ोसियों को प्रेम करना सुसमाचार की सबसे बड़ी आज्ञा है। आज येसु हमें अपने प्रेम का उदारता पूर्ण प्रचार हेतु निमंत्रण देते हैं जहाँ हम येसु सु के इन बातों पर चिंतन करते हुए को अपने जीवन का केन्द्र-बिन्दु बनाते और अपने को अपने भाई-बहनों की सेवा हेतु प्रदान करते हैं विशेषकर उनके लिए जिन्हें हमारी सहायता

और सांत्वना की जरूरत है। संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि यह एक ख्रीस्तीय मनोभव है जो अपने में सहज नहीं है। यह हमें येसु की तरह अन्यों को प्रेम करने हेतु निमंत्रण देता है। उन्होंने कहा लेकिन कभी-कभी हमारे जीवन में घमंड, ईर्ष्या, विभाजन प्रवेश कर जाती है जो कलीसिया के सुन्दर चेहरे को प्रभावित करती है। ख्रीस्तीय समुदाय को येसु ख्रीस्त के प्रेम में जीने की आवश्यकता है लेकिन बहुधा यह होता है कि एक दुष्ट व्यक्ति “जाल बिछाता” है और हम उस जाल में फंस जाते हैं। कई बार इसका भुक्तभोगी आध्यात्मिक रुप से कमजोर लोगों को होना पड़ता है। संत पापा ने कहा कि हम बहुत से लोगों के जानते हैं जो अपने विश्वास के जीवन का परित्याग करते हैं क्योंकि वे दूसरों के द्वारा स्वागत नहीं किये जाते हैं, दूसरे उन्हें नहीं समझते हैं, वे अन्यों के द्वारा प्रेम नहीं किये जाते हैं। एक ख्रीस्त के रुप में हम एक बार में यह नहीं सीखते कि हमें कैसे दूसरों को प्रेम करने की जरूरत है। हमें इसे प्रतिदिन अपने जीवन में शुरू करने की जरूर है क्योंकि अपने भाई-बहनों के प्रति हमारा स्नेह हमें अपने जीवन की कमजोरियों से ऊपर उठने और हमें अपनी स्वार्थ, निरसता, पक्षपात और अनिष्ठा जैसी बुराइयों से शुद्ध होने में मदद करता है। संत पापा ने कहा कि हमें रोज दिन प्रेम की कला को सीखने की जरूरत है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि आप अनुभव करें कि आप रोज दिन प्रेम की कला, ख्रीस्त के स्कूल में धैर्य से येसु की ओर निगाहें फेरते हुए सीखते और उनके समान दूसरों को क्षमा करते हैं। यह हमारे जीवन में तब संभव होता है जब हम न्यायकर्ता, हमारे सलाहकार को जिसे येसु हमारे लिए भेजते, अपने जीवन में ग्रहण करते हैं। 

कुंवारी मरियम जो अपने पुत्र, येसु ख्रीस्त की एक परिपक्व शिष्य रही, हमें पवित्र आत्मा के द्वारा जो सच्चाई का आत्मा है अपने जीवन में प्रतिदिन और अधिक नम्र और दीन बन रहने में मदद करे तथा येसु को रोज दिन प्रेम करने की शिक्षा दे। इतना कहने के बाद संत पापा ने सभी विश्वासियों और भक्त समुदाय के संग स्वर्गीय रानी प्रार्थना का पाठ किया और सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।  

स्वर्गीय रानी प्रार्थना के उपरान्त संत पापा फ्राँसिस ने लोगों को अपने संबोधन में कहा कि मैं मध्य गणतंत्र अफ्रीका को अपने हृदय के करीब लाता हूँ जिसकी यात्रा मैंने सन् 2015 में की थी। शस्त्र युद्ध ने कारण वहाँ बहुत से लोगों की जाने गयीं हैं, कितनों को विस्थापित होना पड़ा है और शांति वार्ता के प्रयास को ठेस पहुँची है। मैं वहाँ की जनता, धर्मामध्यक्षों और जो शांति बहाल करने को समर्पित हैं अपना सामीप्य प्रकट करते हुए शांतिपूर्ण स्थिति की कामना करता हूँ। उन्होंने मृतकों और घायलों के लिए अपनी प्रार्थनाएं अर्पित करते हुए युद्ध में सम्मिलित दलों से आग्रह किया कि वे अपने हथियारों का परित्याग करते हुए वार्ता के द्वारा देश में शांति और विकास लाने की कोशिश करें।

संत पापा ने कहा कि आगमी 24 मई को हम सभी आध्यात्मिक रुप से चीन की काथलिक कलीसिया के साथ मिलकर धन्य कुंवारी मरियम “ख्रीस्तियों की सहायता” का त्योहार शंघाई के तीर्थ शेशान में मनायेंगे। इस अवसर पर उन्होंने चीन के काथलिकों से कहा कि हम माता मरियम की ओर सहायता की नजरों से देखें जिससे वे अपनी उदारता में ईश्वर की इच्छा को अपने रोज दिन के जीवन में हमें पहचाने हेतु मदद करे। वे हमारी सहायता करे जिससे हम विश्वासी समुदाय को अपने व्यक्तिगत सहयोग देते हुए समाज में शांति हेतु कार्य कर सकें। हम अपने जीवन में विश्वास के साक्ष्य और प्रेम को न भूले जो हमें सदैव अन्यों के साथ वार्ता हेतु खोलता है।

इतना कहने के बाद संत पापा ने रोम, पाम्पलोना, लिस्बोस, पेरिस, कनाडा, संयुक्त अमेरीका और गुआम द्वीप से आये विश्वास का अभिवादन किया और अंत में पाँच नवनियुक्त कर्डिनलों के नाम की घोषणा करते हुए उन्हें प्रेरित संत पीटर और संत पौलुस के संरक्षण में सुपुर्द किया। 








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