2017-05-17 15:27:00

पाकिस्तानी अधिकारी : 'हम अल्पसंख्यकों की रक्षा में विफल रहे हैं'


लाहौर, बुघवार, 17 मई 2017 (उकान) : पाकिस्तान के सबसे अधिक आबादी वाले पंजाब प्रांत के एक अधिकारी ने यह स्वीकार किया है कि वे धार्मिक अल्पसंख्यकों को कट्टरवादी इस्लामियों से बचाने में विफल रहे हैं।

पंजाब सरकार के मुख्य प्रवक्ता मलिक मोहम्मद अहमद खान ने 12 मई को लाहौर में "पंजाब की विविधता की सुरक्षा" विषय पर हो रहे बैठक के दौरान कहा "असहिष्णुता, धार्मिक मामलों और दंड की संस्कृति पर क्रोद्ध हमें परेशान करता है।" पंजाब जिले में देश के अधिकांश ख्रीस्तीय निवास करते हैं और देश की 60 प्रतिशत आबादी पंजाब जिले में है।

खान जो पंजाब के मुख्यमंत्री के विशेष सहायक भी हैं, ने कहा कि "धार्मिक सफाई को रोकना होगा," उन्होंने एक उदाहरण के तौर पर कहा कि गत महीने अप्रैल में अहमादिया संप्रदाय के चार लोग कट्टरपंथियों द्वारा मारे गए।

अहमादीन लोग, जो विश्वास करते हैं कि पैगंबर मुहम्मद अंतिम नबी नहीं थे  और इसी वजह से उन्हें कठोर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा क्योंकि 1974 में उन्हें पाकिस्तान द्वारा गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया था।

खान ने बैठक में भाग ले रहे 30 से ज्यादा कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और शिक्षाविदों से कहा, "हम बलात धर्मांतरण से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा में विफल रहे हैं। इसे सभी जानते हैं अतः हम क्यों इसे छिपायें?"

न्याय और शांति के राष्ट्रीय आयोग और पाकिस्तान हिंदू परिषद के अनुसार पाकिस्तान में प्रति वर्ष 1,000 ख्रीस्तीय और हिंदू महिलाओं को जबरन इस्लाम धर्म को स्वीकार करने और मुसलमानों से शादी कराया जाता है जिनमें 700 पंजाबी ख्रीस्तीय हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि अधिकांश लड़कियों की उम्र 18 वर्ष से कम रहती है जिन्हें जबर्दस्ती मुसलमानों से शादी कराया जाता है या बंधुआ श्रम के लिए मजबूर किया जाता है।

काथलिक धार्मिक वरिष्ठ अधिकारियों के न्याय और शांति आयोग के पूर्व क्षेत्रीय समन्वयक फादर हबीब ने उका समाचार से कहा, "स्थानीय हिंदुओं को उनके अपहृत बच्चों को वापस पाना असंभव हो गया है। सभी मामलों में अल्पसंख्यक समुदाय ही धाटे में रहते हैं।"

फादर हबीब ने कहा, "पुलिस और अदालतें हमेशा मुस्लिम दलों का ही पक्ष लेती हैं। कोई भी यह साफ देख सकता है कि लड़की दबाव में बयान दे रही है। आमतौर पर अदालत मामले को खारिज कर देती है और उसे अपहर्ताओं के साथ जाने देती है। शायद वे इसे इस्लाम की सेवा में वैध मानते हैं।"








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