2017-05-13 15:11:00

संत पापा द्वारा मरियम दर्शन तीर्थालय में तीर्थयात्रियों का अभिवादन


फातिमा, पुर्तगाल शनिवार, 13 मई 2017 (वीआर सेदोक) : संत पापा फ्राँसिस ने शुक्रवार 12 मई को फातिमा के मरियम दर्शन तीर्थालय के प्रांगण में रोजरी माला प्रार्थना के लिए एकत्रित हजारों तीर्थयात्रियों का अभिवादन किया और उन्हें अपने संदेश में कहा, ″आशा और शांति की इस तीर्थयात्रा में मेरा साथ देने और आपके स्वागत के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। मैं यहाँ उपस्थित एवं अन्य स्थानों से आप सब जो मेरे साथ जुड़े हुए हैं मैं यह बताना चाहता हूँ कि आप सभी मेरे हृदय में हैं। मुझे एसा लगता है कि येसु ने आप सभी को मेरे सिपुर्द किया है (योहन 21:15-17) और मैं आप सबका आलिंगन करता हूँ। आपको एवं "विशेष रूप से जरूरत मंद लोगों" को येसु के हाथों सौंपता हूँ। माता मरियम जरूरतमंदों की प्रेममय और विनम्र माता, उनके लिए ईश्वर से कृपा प्राप्त करें।″  

हरेक बेसहारा और निर्वासित जिनका वर्तमान छीन लिया गया है, प्रत्येक परित्यक्त जिनका भविष्य अंधकारमय है, अतीत में अस्वीकृत प्रत्येक अनाथ और अन्याय के शिकार लोगों पर ईश्वर की अपार कृपा बरसे। ″प्रभु आपलोगों को आशीर्वाद प्रदान करे और सुरक्षित रखे। प्रभु आपलोगों पर प्रसन्न हों और आप लोगों पर दया करे। प्रभु आप लोगों पर दयादृष्टि करे और आपको शांति प्रदान करे।″ (गणना  6:24-26).

संत पापा ने कहा कि यह आशीर्वाद कुंआरी मरियम में पूरा हुआ। मरियम के समान किसी और को ईश्वर की विशेष कृपा नहीं मिली थी। मरियम ईश्वर के पुत्र को मनुष्य के रुप में इस पृथ्वी पर ले आयी। रोजरी माला प्रार्थना में हम माता मरियम के जीवन के सुख, दुःख, प्रकाश और महिमा के क्षणों पर मनन चिंतन करते हैं। मरियम और येसु के साथ हम ईश्वर में संयुक्त होते हैं। ″यदि हम ख्रीस्तीय बनना चाहते हैं तो हमें मरियम भक्त होना चाहिए। हमें माता मरियम और येसु के साथ महत्वपूर्ण और भरोसेमंद रिश्ते को स्वीकार करना होगा, यह एक ऐसा रिश्ता है जो हमें प्रभु की ओर जाने के मार्ग खोल देता है।″ (संत पापा पौल छटे द्वारा 24 अप्रील 1970 में कलियारी के बोनारिया की माता मरियम तीर्थ में तीर्थयात्रियों को संबोधन)। संत पापा ने कहा कि इस पवित्र स्थान या अन्यत्र जब कभी भी हम रोजरी प्रार्थना करते हैं तो सुसमाचार हमारे जीवन में,  हमारे परिवारों और पूरे विश्व में नए सिरे से प्रवेश करता है

संत पापा ने कहा, ″हम किस मरियम के साथ तीर्थयात्रा कर रहे हैं ? "पत्थर की मूर्ति के साथ" जिससे हम अपने लिए एहसान मांगते हैं? या माता मरियम, येसु का अनुसरण करने वाली प्रथम महिला जिन्होंने अपने जीवन द्वारा क्रूस मार्ग पर चलते हुए हमें उदाहरण दिया है। वे धन्य हैं क्योंकि उन्होंने हमेशा ईश्वर के वचनों पर विश्वास किया,(लूकस1:42.45) या सुममाचार की उस मरियम को जिसे कलीसिया सम्मानित करती है, या हमारे अपने मन की उपज उस मरियम के साथ यात्रा कर रहे हैं जो एक बदला लेने वाले ईश्वर के हाथ को नियंत्रित करती हैं, जो एक क्रूर न्यायी येसु की तुलना में अत्यंत कोमल हैं, या जो हमारे पापों के खातिर अपने प्राणों की आहूति देने वाले येसु से भी अधिक दयालु है?  हम ईश्वर की कृपा के प्रति बहुत बड़ा अन्याय करते हैं जब हम कहते हैं कि पापों को न्याय से दंडित किया जाता है जबकि सुसमाचार स्पस्ट कहता है कि उनकी दया से माफी मिलती है। दया को न्याय से पहले रखना चाहिए। किसी भी स्थिति में, ईश्वर हमेशा दया की रोशनी में न्याय करते हैं। जाहिर है, कि ईश्वर की दया न्याय को इन्कार नहीं करती है। येसु ने खुद अपने उपर पापों के परिणाम को लिया। उन्होंने पापों से इन्कार नहीं किया बल्कि क्रूस बलिदान द्वारा हमें पापों से मुक्त किया। विश्वास में हम येसु से जुड़े हुए हैं अतः हम भी पापों से मुक्त हो गये हैं। येसु के प्रेम ने हमारे पाप रुपी भय को दूर कर दिया है। प्रेम में भय नहीं होता। पूर्ण प्रेम भय दूर करता है।(1योहन 4:18)

"जब भी हम मरियम को देखते हैं,  हम एक बार फिर से प्यार और कोमलता के क्रांतिकारी प्रकृति में विश्वास करने लगते हैं। उनमें हम देखते हैं कि विनम्रता और कोमलता कमजोरी का नहीं बल्कि मजबूती का चिन्ह है। यह न्याय और कोमलता की परस्पर क्रिया, दूसरों के लिए मनन-चिंतन और प्रसंग का विषय है जिसे ख्रीस्तीय समुदाय सुसमाचार के प्रचार हेतु मरियम को आदर्श मानती है। (एवांजली गौदियुम 288) माता मरियम के साथ हम सभी ईश्वर की दया के चिन्ह और संस्कार बन सकें जो हमेशा क्षमा करते हैं।

अपने संदेश के अंत में संत पापा ने कहा, ″माता मरियम के साथ आइये हम भी ईश्वर की दया का गुणगान यह कहते हुए गायें, ″मेरी आत्मा ईश्वर का गुणगान करती है।″ हे प्रभु आपने अपनी दया अपने संतों और भक्तों पर प्रकट की थी वही दया आपने मुझपर प्रकट की है। मैं अपने घमंड के कारण अपनी महत्वाकांक्षाओं और निज स्वार्थ का अनुसरण करते हुए राह से भटक गया था। हे प्रभु, मेरी एक आशा है कि आपकी माता मुझे अपनी बाहों में ले लें, मुझे अपने आँचल तले, अपने हृदय के करीब रखें। आमेन″  








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