2017-05-10 16:58:00

मरियम आशा की माता


वाटिकन सिटी, बुधवार, 10 मई 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज हम अपनी धर्मशिक्षा माला में मरियम जो आशा की माता हैं उन पर चिंतन करेंगे। मरियम ने येसु का साथ जीवनपर्यंत दिया। मुक्ति इतिहास के शुरू से ही हम उन्हें उनके जीवन में पाते हैं। संत पापा ने कहा कि स्वर्गदूत के द्वारा दिये गये संदेश को स्वीकार करते हुए उसके प्रत्युत्तर में “हाँ” कहना उनके लिए सहज नहीं था। फिर भी युवा नारी ने अपने जीवन में निर्भय होकर ईश्वरीय योजना को यह नहीं जानते हुए भी कि भविष्य में क्या होने वाला है स्वीकार किया। मरियम इस तरह हम सभों के लिए दुनिया की माताओं में एक माता है जो अपने गर्भ में अति साहस के साथ येसु को स्वीकार करती है।

मरियम का वह “हाँ” आज्ञाकारिता का पहला कदम था जहाँ वह माता के रुप में सारी मानव जाति के साथ चलने को तैयार होती है। इस तरह हम सुसमाचार में मरियम को एक शांत नारी के रुप में पाते हैं जो बहुत बार अपने जीवन में होने वाली घटनाओं और बातों को नहीं समझती थी लेकिन उन्हें अपने हृदय में संजोकर रखते हुए उन पर मनन-चिंतन करती थी।

इस संदर्भ में हम मरियम की एक सुन्दर मनोवैज्ञानिक स्थिति से रूबरू होते हैं, वह अपने को जीवन की अनिश्चिताओं से दूर नहीं रखती है, विशेषकर, जब उनके जीवन में चीजें अच्छी दिशा में नहीं चल रही होती हैं। वह अपने जीवन की विषम परिस्थितियों का विरोध नहीं करती और न ही उन परिस्थिति से विचलित होती है। इसके विपरीत वह अपने जीवन की सारी घटनाओं को सहज स्वीकार करती, बातों को सुनती और घोर विपत्ति में अपने पुत्र के क्रूस मरण का सम्मान बड़े धीरज के साथ करती है।

येसु के क्रूस मरण के अंतिम समय तक वह सुसमाचार के पदों में लुप्त रहती है। लेकिन वह इस विकट परिस्थिति में येसु का साथ देने हेतु क्रूस के नीचे पुनः प्रकट होती है जबकि येसु के मित्र भय के कारण वहाँ से भाग जाते हैं। संत पापा ने कहा कि माताएं हमारे जीवन में हमें धोखा नहीं देती हैं। कलवारी के दृश्य में निर्दोष बेटे का क्रूस मरण या क्रूस की घोर पीड़ा सह रहे बेटे के क्रूस के नीचे खड़े हो कर अपने बेटे को साथ देना, कौन अधिक कष्टदायक है हम उसके बारे में नहीं कह सकते हैं। सुसमाचार मरियम को क्रूस के नीचे खड़े होने का जिक्र करता है लेकिन हमें उनकी प्रतिक्रिया और दुःख के बारे में कुछ नहीं बतलाता। उनकी असहनीय पीड़ा का अनुमान हम कविओं की रचनाओं और चित्रकारों के द्वारा गढ़ी गई कला कृति में देखकर लगा सकते हैं जो कला के इतिहास और साहित्य के पन्नों में दर्ज हो गई हैं।

मरिया वहाँ मात्र “खड़ी” थी। यहाँ हम नाजरेत की युवा नारी को और एक बार देखते हैं जो अपने जीवन की इस घोर अंधकार भरे क्षण में अपने को ईश्वर के साथ एक अटूट संबंध से जोड़े रखती है, जिसे हम अपने जीवन में सिर्फ गले लगा सकते हैं। मरियम क्रूस के नीचे अपने पूर्ण विश्वास में उपस्थिति थी। उस परिस्थिति में वह अपने बेटे के पुनरूत्थान के बारे में नहीं जानती थी, लेकिन उस अपार दुःख की घड़ी में भी वह ईश्वर की योजना को पूरा करने हेतु निष्ठावान बनी रही जिसे उन्होंने अपनी बुलाहट के दौरान ‘हाँ’ कहा था। एक माता के रुप में उन्हें अपने बेटे की पीड़ा के कारण घोर दुःख और कष्ट से होकर गुजरना पड़ा।

कलीसिया की स्थापना के प्रथम दिन में हम उन्हें आशा की माता के रुप में शिष्यों के समुदाय में पाते हैं जिनके बीच भय का आतंक छाया हुआ था। मरिया उनके बीच सामान्य स्थिति में उपस्थित थी, मानो ये सारी चीजें पूर्ण रूपेण सामान्य घटनाएं हों। यही कारण है कि हम मरिया को माता के रुप में प्रेम करते हैं क्योंकि सारी अर्थहीन परिस्थिति में भी वह हमें आशा में प्रतीक्षा करने को सिखलाती है। संत पापा कहा कि हम अपने में अनाथ नहीं हैं लेकिन हमारी एक माँ है जो स्वर्ग में है। वह सदैव ईश्वर के रहस्य पूर्ण कार्यों के प्रति विश्वस्त है यद्यपि दुनिया बुराइयों के भरी हुई है। ऐसी परिस्थिति में येसु की माता हमारी सहायता करती और हमें जीवन की राह पर आगे बढ़ने हेतु मदद करती है।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और उन्हें पास्का काल की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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