2017-04-29 18:59:00

मिस्र के धर्मसमाजियों और धर्मबंधुओं को संत पापा का संदेश


काहिरा, शनिवार, 29 अप्रैल 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने मिस्र की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन संत लियो महान मादी के गुरुकुल में पुरोहितों, धर्मबन्धुओं और गुरुकुल के विद्यार्थियों से मुलाकात की।

उन्होंने अपने प्रेरितिक संबोधन के प्रारम्भ में समुदाय को पुनर्जीवित प्रभु की शांति की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए प्रभु में आनंदित होने का आहृवान किया। संत पापा ने मिस्र काथलिक कलीसिया के केन्द्र में स्थित प्रशिक्षण संस्थान में अपनी उपस्थिति हेतु खुशी जाहिर कहते हुए कहा कि आप ईश्वर की इस पवित्र भूमि में “खमीर” के सामान हैं जिसके द्वारा वे इस स्थल पर अपने राज्य का विस्तार करने की चाह रखते हैं।

संत पापा ने ईश्वर के द्वारा बुलाये गये लोगों का धन्यवाद अदा करते हुए कहा कि मैं आप सभों के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करना चाहता हूँ क्योंकि आप रोज दिन की चुनौतियों के मध्य और कुछेक सांत्वना के बीच भी अपनी बुलाहट के प्रति निष्ठावान बने हुए हैं। मैं आप सबों को प्रोत्साहित करना चाहता हूँ कि आप अपने दैनिक जीवन के कठिन परिस्थितियों में भी अपने सेवा पूर्ण कार्यों को पूरा करने से न डरें। हम पवित्र क्रूस की उपासना करते हैं जो हमारे मुक्ति की निशानी है। जब आप क्रूस से दूर भागते हैं तो आप पुनरुत्थान से दूर भागते हैं।

“छोटे झुण्ड, डरो मत, क्योंकि तुम्हारे पिता ने तुम्हें राज्य देने की कृपा की है।” (लूका.12.32) संत पापा ने कहा कि यह हमसे विश्वास, सत्य का साक्ष्य, बुनने और फसल की कामना किये बिना कार्य करने की माँग करता है। वास्तव में, हम दूसरों के लिए फल बटोरते हैं क्योंकि हम ईश्वर की दाखबारी में उदार सेवक की भाँति कार्य करने हेतु बुलाये गये हैं। आप का इतिहास ऐसे ही लोगों से भरा हुआ है। 

यद्यपि आप को हतोत्साहित करने हेतु बहुत सारी चीजें हैं लेकिन आप समाज में नमक और ज्योति की तरह बने रहें। उन्होंने कहा कि आप रेल के इंजन की भांति अन्यों को उनकी मंजिल तक ले चले। आप आशा के प्रवर्तक बनें और सेतुओं का निर्माण करते हुए वार्ता और शांति की स्थापना करें। संत पापा ने कहा कि एक समर्पित व्यक्ति को इस कार्य को पूरा करने के लिए चाहिए कि वे परीक्षाओं में खरा उतरें जिसका सामना आप को अपने दैनिक जीवन में करना होता है। मैं आप के समक्ष कुछ बड़ी परीक्षाओं का जिक्र करना चाहूँगा। 

1.अपने को संचालित होने देने की अपेक्षा स्वसंचालन की परीक्षा- भला गरेडिया अपने भेड़ों की देख-रेख हेतु उत्तरदायी है (यो.10.3-4) जो उन्हें हरी-भली चरागाहों और बहती जलधारों के पास ले चलता है। (स्तो. 23) वह अपने को निराशाओं से प्रभावित होने नहीं देता है। “मैं क्या कर सकता हूँ।” वह सदैव अपने में सृजनात्मक पहल करता है, जैसे सूखे के बीच भी जलधारा प्रवाहित होती रहती है। वह अपने हृदय के टूटे क्षणों में अन्यों के लिए सांत्वना और चिंता करता है। वह पिता के समान है जो अपने बच्चों की चिंता करता है।

2.सदैव शिकायत की परीक्ष- अपने अधिकारियों, समाज, खामियों और अन्यों की शिकायत करना सदैव हमें सहज लगता है। लेकिन पवित्र आत्मा से अभिषिक्त व्यक्ति के रुप में हमें अपनी बाधाओं को अवसरों में परिवर्तन करने की जरुरत है, न कि सभी कठिनाइयों को बहाना का रुप देना। वह व्यक्ति जो हमेशा शिकायत करता है वह वास्तव में कार्य करना नहीं चाहता है। यही कारण है कि येसु प्रेरितों को कहते हैं, “थके-माँदे हाथों को शक्ति दो, निर्बल पैरों को सुदृढ़ बनाओ।” (ईब्र.12.12,इसा.35.3)

3.गपशप और ईर्ष्या की शिकायत- एक समर्पित व्यक्ति के लिए यह खतरा का विषय है, विशेषकर, जब वह अपने से छोटों की सहायता करने के बदले और उनकी सफलता में आनंदित होने के बदले उनसे ईर्ष्या और उनकी शिकायत करता है। यह उनका विकास करने के बदले उनके विकास को अवरुद्ध करता है। ईर्ष्या एक कैंसर के समान है जो हमारे शरीर को बहुत जल्द नष्ट कर देता है। (मत्ती. 3.24-25)

4.अपने को अन्यों से तुलना करना- विभिन्नता हममें से प्रत्येक जन को धनी और अद्वितीय बनाता है। अपनी तुलना दूसरों के साथ करना, हमें शिकायत की ओर ले चलती है और अपने से कमजोरों से अपनी तुलना हममें घमंड और सुस्तीपन को लेकर आता है। जो सदैव अपनी तुलना अन्यों के साथ करते हैं वे लकवाग्रस्त हो जाते हैं। हम संत पेत्रुस और पौलुस की विभिन्नताओं से अपने लिए शिक्षा ग्रहण करें जो अपने को पवित्र आत्मा के द्वारा संचालित होने देते हैं।

5.फराऊन के समान होने की परीक्षा- यह हमारे हृदय को अपने ईश्वर और अपने भाई–बहनों के प्रति बंद और कठोर करना है। यहाँ हम अपने को अन्यों से बड़ा और महान समझते लगते हैं इस तरह हम सेवा करने के बदले सेवा कराने लगते हैं। यह परीक्षा शिष्यों में यह शुरू से व्याप्त थी। (मकु.9.34-35)

6.व्यक्तिगतवाद- मिस्र की एक बहुचर्चित कहावत का हवाला देते हुए संत पापा ने कहा, “मैं और मेरे बाद मेरा भोजन”। यह हमारे स्वार्थ को दिखलाता है जहाँ हम अन्यों की चिंता नहीं करते है। यह हमें एक तरह से बेशर्म बना देता है जहाँ हम केवल अपने बारे में सोचते हैं। कलीसिया विश्वासियों का समुदाय, येसु ख्रीस्त का शरीर जहाँ प्रत्येक विश्वासी की मुक्ति और पवित्रता एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई है। व्यक्तिगतवाद हमारे जीवन में कलंक और विवाद का कारण बनता है।

7.बिना निर्देश या लक्ष्य के जीवन जीना- संत पापा ने कहा कि समर्पित लोगों को अपने जीवन में अस्तित्व खोने की परीक्षा आती है। वे अपने हृदय में दुनियादारी और ईश्वर दोनों के मध्य उलझे जीवन जीते हैं। उन्हें अपने जीवन की प्राथमिकता को भूल जाने का भय रहता है और ऐसा तब होता है जब वे अपने जीवन के उद्देश्य और अस्तित्व की स्पष्ट पहचान अपने सामने नहीं रखते हैं। इस तरह अन्यों को दिशा दिखलाने और उनकी अगवाई करने के बदले वे स्वयं दिशा विहीन हो जाते और उन्हें तितर-बितर कर देते हैं। 

संत पापा ने कहा कि इन सारी परीक्षाओं पर विजय पाना सहज नहीं है लेकिन यह असंभव भी नहीं है यदि हम येसु ख्रीस्त से संयुक्त हैं। (यो.15.4) हम येसु ख्रीस्त के साथ जितना अधिक घनिष्टता में बने रहते हैं उतना ही फलप्रद होते हैं। हमारे समर्पित जीवन की गुणवत्ता हमारे आध्यात्मिक जीवन पर होती है। मिस्र में मठवासी संतों के जीवन का बखान करते हुए संत पापा ने कहा कि आप नामक और ज्योति बनते हुए अपने लिए और अन्यों के लिए मुक्ति के साधन बने। 

 








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