2017-04-26 15:44:00

पुनर्जीवित येसु सदैव हमारे संग चलते हैं


वाटिकन सिटी, बुधवार, 26 अप्रैल 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को आशा पर अपनी धर्मशिक्षा को आगे बढ़ते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात

“मैं दुनिया के अंत तक तुम्हारे साथ हूँ।” (मत्ती. 28.20) यह संत मत्ती के अनुसार सुसमाचार का अंतिम वाक्य है जो हमारा ध्यान सुसमाचार के शुरुआती घोषणा की ओर करता है, “उसका नाम एम्मानुएल रखा जायेगा, जिसका अर्थ हैः ईश्वर हमारे साथ है।”(मती.1.23. इसा. 7.14) संत पापा ने कहा कि ईश्वर प्रति दिन हमारे साथ रहते हैं। वे दुनिया के अंत तक हमारे साथ चलते हैं। सुसमाचार इन दो वाक्यांशों में अर्थगर्भित है जो ईश्वर के नाम का रहस्य हमारे लिए प्रस्तुत करता है। ईश्वर हमारे जीवन से तटस्थ नहीं वरन वे हमारे जीवन के अंग हैं विशेषकर वे मानव का रुप धारण कर हमारे साथ रहते हैं। हमारा ईश्वर कोई अनुपस्थित ईश्वर नहीं जो कि सुदूर आकाश में रहता हो बल्कि वे एक संवेदनशील ईश्वर हैं जिनका हृदय मानव के लिए करुणामय प्रेम के ओत-प्रोत है। वे अपने को हम से अलग नहीं कर सकते हैं। हम मानव अपने जीवन में प्रेम के बंधन को तोड़ते देते हैं लेकिन ईश्वर ऐसा नहीं करते। हमारा हृदय सुषुप्त हो जाता है लेकिन ईश्वर का हृदय हमारे लिए प्रेम में सदा चमकता रहता है। हमारे ईश्वर हमारे साथ चलते हैं यद्यपि हम उन्होंने अपनी जीवन की दुर्घटनाओं में भूल जाते हैं। पिता हमें अपने में नहीं छोड़ते बल्कि वे अपने बेटे के संग हमारे जीवन में चलते हैं।

संत पापा ने कहा कि हमारा जीवन एक तीर्थयात्रा के समान है। हमारी आत्मा प्रवासी है। धर्मग्रंथ बाईबल यात्रियों और तीर्थयात्रियों की कहानियों से भरा हुआ है। आब्रहम का बुलावा इस आज्ञा के द्वारा शुरू होता है, “अपना देश छोड़ दो।”(उत्पि.12.1) विश्वास के पिता अपनी उस ज़मीर जिससे वे अच्छी तरह वाकिफ थे जो उसके समय में सभ्यता का विकास स्थल रहा, छोड़ देते हैं। उनकी संवेदनशील यात्रा में सभी चीजें के साथ साजिश की जाती है लेकिन वे सारी चीजों का परित्याग करते हैं। संत पापा ने कहा कि हम तब तक परिपक्व नहीं होते जब तक हम आकर्षक क्षितिज की ओर ध्यान नहीं देते हैं जो आकाश और पृथ्वी के बीच हमारे लिए एक सीमा बनती जो राह चलने वालों के मध्य हमें चलने का निमंत्रण देती है।

दुनिया में राह चलते वक्त मानव कभी अकेला नहीं रहता है। एक ख्रीस्त को अपने जीवन में कभी अकेलेपन का आभास नहीं करना चाहिए क्योंकि ईश्वर हमारे जीवन के अंतिम क्षण तक हमें अपनी प्रतीक्षा करने हेतु नहीं कहते हैं वरन वे हर दिन, हर क्षण हमारे साथ रहते हैं।

ईश्वर कब तक मानव की चिंता करते हैं? जब तक येसु ख्रीस्त हमारे साथ चलते हैं तब तक? धर्मग्रंथ हमें हमारी दुविधा का उत्तर देते हुए कहता है-दुनिया के अंत तक। स्वर्ग और पृथ्वी मिट जायेगी, मानव की आशा समाप्त हो जायेगी लेकिन ईश्वर का वचन जो सभी चीजों से महान है कभी व्यर्थ नहीं जायेगा। ईश्वर हमारे संग येसु ख्रीस्त के रुप में चलते हैं। हमारे जीवन में ऐसा कोई भी दिन नहीं है जहाँ हम ईश्वर के हृदय के निकट नहीं रहते हो। संत पापा ने कहा कि लेकिन आप में से बहुत से लोगों कहेंगे, “यह आप क्या कह रहें है?” उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा, “आप के जीवन में कोई भी ऐसा दिन नहीं जहाँ ईश्वर आप को अपने दिल के करीब नहीं रखें हों। वे हमारी चिंता करते हैं, वे हमारे साथ रहते और हमारे साथ चलते हैं, और वे क्यों हमारे साथ ऐसा करते हैं?” यह इसीलिए क्योंकि वे हमें बेइंतहा प्रेम करते हैं। उन्होंने कहा, “हमें इस बात को समझने की जरूरत है। वे हम से प्रेम करते हैं।” वे हमें उन सारी चीजों को प्रदान करते हैं जिनकी जरूरत हमें होती है। वे हमें परीक्षा और विपत्ति की घड़ी में यूँ ही नहीं छोड़ते हैं। हममें से बहुत कोई इसे ईश्वर का “पूर्वप्रबंधन” कहते हैं जहाँ हम ईश्वर को अपने करीब, अपने साथ चलते हुए पाते हैं जहाँ वे हमारे जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।

हम ख्रीस्तियों के लिए आशा कोई संयोग की बात नहीं है जहाँ हम अपने जीवन में एक सहायक को पाते और खुशी का अनुभव करते हैं। यह हमारी आशा को व्यक्त करती है जो अपने में धूमिल नहीं होती। हम इस बात से भ्रमित न हो कि वे जो अपने ईद-गिर्द की चीजों में विकास की बातें सोचते हैं वे ऐसा अपने बलबूते कर सकते हैं। ख्रीस्तीय आशा की जड़ें भविष्य की मनमोहक चीजों में निहित नहीं है बल्कि यह ईश्वर पर सुरक्षित है जो हमें येसु ख्रीस्त में प्रतिज्ञा करते हैं। यदि उन्होंने हम से यह प्रतिज्ञा की है कि वे हमारा साथ कभी नहीं छोड़ेंगे और वे हमें अपने साथ  बुलाते हैं तो हमें डर किस बात का है? इस प्रतिज्ञा के साथ हम ख्रीस्तीय उनकी उपस्थिति में  कहीं भी जा सकते हैं यहाँ तक की उन घालय क्षेत्रों में भी जहाँ की स्थिति ठीक नहीं है। स्तोत्र हमें कहता है, “चाहे अँधेरी घाटी हो कर जाना पड़े, मुझे किसी अनिष्ट की शंका नहीं क्योंकि तू मेरे साथ रहता है।” (स्तो. 23.4) यह हमारा ध्यान इस बात की ओर इंगित करता है कि जहाँ अँधेरा है वहाँ प्रकाश की जरूरत है। हमारा सहायक हमारा मार्ग प्रशस्त करता है वह हमें समुद्र की लहरों में फेंक देता और फिर हमारी ओर रस्सी फेंक कर हमें नाव की ओर आने में मदद करता है। हमारा विश्वास हमारे लिए सहायक के समान है जिसके द्वारा हम स्वर्ग राज्य में प्रवेश करने को आश्वस्त हैं। हम इस विश्वास रूपी रस्सी को पकड़े रहें जो हमें उस स्थान को ले जायेगी जहाँ हम जाना चाहते हैं।

संत पापा ने कहा कि वास्तव में हम अपनी शक्ति पर निहित रहते हैं और इसके कारण हमें बहुधा हताशा और हार का सामना करना पड़ता है। यह हमारे स्वार्थ को व्यक्त करता है लेकिन हमारी इस कमजोरी के बावजूद ईश्वर हमें नहीं छोड़ते हैं। वे हमारे साथ रहते जो हमें जीवन के मार्ग में आशावान और विश्वास के साथ आगे चलने हेतु मदद करता है। यह पुनर्जीवित प्रभु का हमारे लिए प्रेम है, प्रेम की जीत जो सारी चीजों में विजयी होती है।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और सबों के ऊपर पुनर्जीवित प्रभु की खुशी और आनन्द की मंगलकामना करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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