2017-04-03 16:36:00

येसु द्वारा लाजरूस को जीवन दान पर संत पापा का चिंतन


वाटिकन सिटी, सोमवार, 3 अप्रैल 2017 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 2 अप्रैल को एक दिवसीय प्रेरितिक यात्रा पर इटली के कारपी शहर का दौरा किया, जहाँ उन्होंने ‘शहीद प्रांगण’ में ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

प्रवचन में उन्होंने कहा, ″आज के पाठ जीवन के ईश्वर के बारे बतलाते हैं जो मृत्यु पर विजयी हैं। आइये, हम खासकर, पास्का के पूर्व येसु द्वारा किये गये उस अंतिम चमत्कारिक चिन्ह पर चिंतन करें, जिसको उन्होंने अपने प्रिय मित्र लाजरूस की कब्र में किया था।″

वहाँ ऐसा प्रतीत हुआ कि सब कुछ समाप्त हो चुका है। कब्र एक विशाल पत्थर से बंद कर दिया गया था। उसके आसपास केवल रूदन एवं खामोशी थी। यहाँ तक कि येसु भी अपने प्रिय मित्र के रहस्यात्मक रूप से खोने पर विचलित हो गये। वे अत्यन्त द्रवित एवं परेशान होकर रो पड़े। वे कब्र के पास आये, सुसमाचार कहता है कि कब्र के पास पहुँचने पर ईसा फिर व्याकुल हो उठे। (यो.11:  38).

संत पापा ने कहा कि यही ईश्वर का हृदय है, जो पाप से दूर किन्तु पीड़ितों के अत्यन्त करीब है। वे दुःख को जादू मंत्र से दूर नहीं करते किन्तु धीरज पूर्वक अपने लिए स्वीकार करते तथा उसे बदल देते हैं।

संत पापा ने इस बात पर गौर किया कि लाजरूस की मृत्यु के कारण मायूसी के बीच भी येसु चिंता से तंग नहीं हुए किन्तु खुद दुःख का एहसास किया। उन्होंने अपने पर दृढ़ विश्वास करने का निमंत्रण दिया। वे आँसू बहाते नहीं रह गये किन्तु आगे बढ़े और कब्र की ओर गये। उस माहौल में वे बंद नहीं रहे जो वहाँ बनी हुई थी बल्कि दृढ़तापूर्वक प्रार्थना करते हुए कहा, ″पिता मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ।″ इस प्रकार दुःख के इस रहस्य में वे चिंता के शीशे में बंद तितली के समान नहीं हुए। इसके द्वारा येसु हमें एक उदाहरण देते हैं कि हमें किस तरह व्यवहार करना चाहिए, हमें दुःख से भागना नहीं है जो इस जीवन का एक भाग है और न ही निराशा के पिंजड़े में बंद हो जाना है।   

संत पापा ने कहा कि कब्र के आसपास एक बड़ा संघर्ष चल रहा था। एक तरफ घोर निराशा और हमारे भौतिक जीवन की अनिश्चितता, जो दुःख से पार होकर मृत्यु तक पहुँच चुकी थी जो हार के समान प्रतीत हो रहा था। आंतरिक अँधेरेपन में यह एक हार ही था जबकि दूसरी ओर अनन्त अच्छाई के लिए प्यासी हमारी आत्मा, जीवन, पीड़ा एवं उसे अनुभव करने के लिए ही सृष्ट की गयी है जिसे बुराई के अंधकार ने अपने कब्जे में कर लिया है।

एक ओर कब्र की हार है और दूसरी ओर है आशा जो मृत्यु और बुराई पर विजय पाती है जिसका एक नाम है येसु। वे जीवन दान द्वारा उसे बढ़ाते हैं और घोषणा करते हैं, ″पुनरूत्थान और जीवन मैं हूँ। जो मुझ में विश्वास करता है वह मरने पर भी जीवित रहेगा।"(पद. 25).

वे दृढ़ता पूर्वकआदेश देते हैं, पत्थर हटा दो" (पद. 39) तथा लाजरूस को ऊँचे स्वर से पुकारते हैं, ″लाजरूस बाहर निकल आओ।" (पद. 43).

संत पापा ने कारपी के सभी विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, ″प्रिय भाइयो एवं बहनो, हम भी यह निश्चय करने के लिए बुलाये गये हैं कि हम किस भाग को चुनें। आप कब्र अथवा येसु दोनों में से एक को चुन सकते हैं। कुछ लोग उदासी में बंद होकर जीते हैं और कुछ आशा के लिए खुले होते हैं। कुछ लोग जीवन के उलझनों में फंसे होते हैं किन्तु कुछ लोग आप लोगों के समान ईश्वर की सहायता से उलझनों से ऊपर उठकर आशा एवं धीरज के साथ पुनः निर्माण करते हैं।   

संत पापा ने कहा कि जीवन में ‘क्यों’ के बड़े प्रश्न चिन्ह के सामने दो रास्ते हैं, एक उदास होकर कल और आज की कब्र में बैठ जाने का अथवा दूसरा येसु को अपने कब्र में लेकर आने का। जी हाँ, क्योंकि हम प्रत्येक की छोटी-छोटी कब्रे हैं। अपने हृदय के अंदर हम अधमरे हो गये हैं, घायल और पीड़ित हैं, हममें एक कड़वाहट है जो आराम करने नहीं देती जो लगातार हमारा पीछा करती है एक पछतावे की भावना जो हमें बाहर निकलने से रोकती है। इन्हें हम अपनी कब्रों के समान देखें तथा वहाँ येसु को निमंत्रण दें। संत पापा ने कहा कि यह अजीब है कि हम येसु को बुलाने के बदले बहुधा इस अंधेरी गुफा में अकेले रहना पसंद करते हैं। येसु को निमंत्रण देने के बदले, जो हमें कहते हैं ″थके-मांदे और बोझ से दबे हुए लोगों तुम सब के सब मेरे पास आओ″, हम अपनी पीड़ा और घावों में डूबे रहने के प्रलोभन में पड़ते हैं।  

संत पापा ने निराशा में बंद नहीं होने की सलाह देते हुए कहा, ″हम अकेले महसूस करने एवं बीती बातों के लिए दुःखी होकर निरुत्साहित होने के प्रलोभन में न पड़ें। व्यर्थ और अनिर्णायक भय की भावना को बढ़ने न दें तथा सबकुछ बेकार है एवं कुछ भी प्रयोग के योग्य नहीं है की भावना को मन में आने न दें। यह कब्र की जैसी स्थिति है जबकि ईश्वर जीवन के रास्ते को खोल देना चाहते हैं। उनसे मुलाकात करने एवं उन पर विश्वास करने के द्वारा हृदय का पुनरुत्थान होता है। उठने एवं बाहर आने के रास्ते के लिए हम प्रभु से प्रार्थना करें और हम पायेंगे कि वे इसे पूरा करने के लिए हमारे बिलकुल करीब हैं।

संत पापा ने कहा कि येसु ने जो शब्द लाजरूस से कही थी आज वही शब्द वे हमारे लिए कहते हैं, ″बाहर आओ। आशा रहित उदासी से बाहर आओ। भय की पट्टियों को खोलों जो राह में बाधा पहुँचाते हैं, खामियों और अभाव की चिंता जो हमें रोकता है, येसु गाँठों को ढीला करते हैं। येसु का अनुसरण करते हुए हम जीवन की समस्याओं जो गड़बड़ियाँ उत्पन्न करती हैं हम उनसे बाहर निकलना सीखें। समस्याएँ हमेशा रहेंगी, जब आप एक समस्या का समाधान करेंगे दूसरी समस्या आ जायेगी तब भी हम मजबूती का अनुभव कर सकते हैं और वह मजबूती हैं येसु, जो पुनरूत्थान एवं जीवन हैं। उनके साथ हृदय में आनन्द विराजता है, आशा पुनः उत्पन्न होती, पीड़ा शांति में तथा परीक्षा प्रेम में बदल जाता है। यद्यपि समस्याओं के भार बने रहेंगे तथापि उनके हाथ हमें सदा ऊपर उठायेंगे। उनके वचन प्रोत्साहन प्रदान करेंगे तथा हम सभी से कहेंगे, बाहर आओ, मेरे पास आओ, डरो मत। जिस तरह उन्होंने लाजरूस के लिए कहा था वे हमसे कहेंगे पत्थर हटा दो। बीता जीवन कितना भारी है पाप और लज्जा से भरा है किन्तु प्रभु को आने से कभी न रोकें। हम उस पत्थर को हटा दें जो उन्हें हमारे पास आने से रोकता है। यह उपयुक्त समय है कि हम अपने पापों को दूर करें, दुनियावी अभिमान के प्रति हमारी  आसक्ति को जो हमारी आत्मा के लिए बाधक है। हमारे बीच और हमारे परिवारों में जो बैर की भावना है यही सही समय है कि हम इन सभी अवरोधों को उखाड़ फेंकें। येसु द्वारा मुलाकात एवं मुक्त किये जाने के द्वारा हम इस प्यारी दुनिया में जीवन का साक्ष्य प्रस्तुत करने की कृपा हेतु याचना करें। साक्ष्य जो जगाता एवं जो बोझिल, चिंतित एवं उदास हृदय में ईश्वर की आशा प्रदान करता है। हमारी घोषणा है जीवित ईश्वर का आनन्द जो अब भी कहते हैं, ″मैं तुम्हारी कब्र खोल दूँगा। मेरी प्रजा, मैं तुम्हें तुम्हारी कब्रों से निकालूँगा।" (Ez 37,12).








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