इस्तम्बुल, मंगलवार, 28 मार्च 2017 (मैटर्स इंडिया): रविवार को जब 22 ख्रीस्तीय शरणार्थी इस्तम्बुल के एक मकान के तहखाने में एकत्रित थे, स्पष्ट था कि वह एक सामान्य प्रार्थना सभा नहीं थी। उनमें से कई के नाम इस्लामिक थे। सबसे अजीब बात ये थी कि उन्होंने अपने मेजबान को मजाकिया लहजे में निर्दिष्ट किया जो एक आतंकवादी था।
25 वर्षीय मोहम्मद के मकान की दीवार पर एक क्रूस लगा है तथा वे धर्म परिवर्तन किये हुए लोगों को साप्ताहिक बाईबल पाठ हेतु अपने कमरे में निमंत्रण देते हैं।
मोहम्मद ने अपनी आपबीती बताते हुए कहा कि करीब चार साल पहले उन्होंने सीरिया सिविल युद्ध में अल क़ायदा की एक शाखा नूसर्रा फ्रंट की ओर से प्रथम पंक्ति में लड़ाई की थी किन्तु अब येसु के पास लौट गये हैं। इस परिवर्तन ने बहुतों को प्रभावित किया है।
मोहम्मद ने कहा, ″सच कहूँ तो, मैं उन सभी को मार दिया होता जो मुझे इसके लिए सुझाव दिये होते।″ उन्होंने कहा कि न केवल उसके विश्वास में परिवर्तन हुआ किन्तु स्वभाव भी बदल गया।
मुस्लिम शरणार्थियों का ख्रीस्तीय धर्म स्वीकार करना कोई नई बात नहीं है विशेषकर, ईसाई प्रधान देशों में जिसके लिए उन्हें विस्थापन का सामना करना पड़ता है। मोहम्मद के साथ ऐसा नहीं है। वे मुस्लिम बहुल देश के हैं उनकी रुचि यह है कि वे पश्चिमी देशों में शरण प्राप्त करना चाहते हैं।
उनकी कहानी उत्तरी सीरिया के कुर्दिश में शुरू होती है जहाँ वे एक मुस्लिम परिवार में पले बढ़े। मोहम्मद अपनी किशोरावस्था में चरमपंथ की ओर आकर्षित हुए तथा उनके एक भाई ने उन्हें जिहादी प्रचारक के पास ले गया। जिसने इस्लाम के कुछ अतिवादी व्याख्याओं को प्रस्तुत किया जिनके बारे में वह कभी नहीं सुना था किन्तु जब सीरिया में युद्ध छिड़ा मोहम्मद ने धर्मनिरपेक्ष कुर्दिश सेना में उसकी स्वतंत्रता की लड़ाई हेतु शामिल हुए।
मोहम्मद ने कहा, ″जब मैंने लाशों को देखा तो उन बातों पर विश्वास किया जो मुझे उपदेश में बतलाया गया था। यह मुझे धर्म की महानता ढ़ूँढने हेतु प्रेरित किया अथवा कम से कम उस धर्म के अपने हिंसक व्याख्याओं के बारे।″ 2012 में जब उसके एक मित्र ने नूसरा फ्रांट में शामिल होने हेतु निमंत्रण दिया तो मोहम्मद उससे सहमत हो गये। नूसरा लड़ाकू के रूप में वे अति क्रूरता को अंजाम देते रहे। मोहम्मद ने कहा, ″हमें बताया जाता था कि ये लोग ईश्वर के दुश्मन हैं अतः मैं इन क्रूर हत्याओं को सकारात्मक मानता था।″
तहखाने में जब प्रार्थना चल रही थी उसका संचालन मोहम्मद कर रहे थे तथा प्रार्थना के बाद उन्होंने लोगों को कॉफी पिलायी।
अपने पूर्ववर्ती जीवन में वह एक क्रोधी व्यक्ति था जो अपने संबंधियों को भी भयभीत कर देता था किन्तु जब वह 2013 में अपने घर कुर्दिश कुछ दिनों के लिए लौटा तो वह खदेड़ दिया गया। उनके माता-पिता उन्हें फिर से चरमपंथी दल में नहीं जाने देना चाहते थे किन्तु उसने उनकी नहीं सुनी।
जब वह वापस अपने दल में पहुँचा तो वह नूसरा फ्रंट से सवाल करने लगा। उन्होंने एक बार सीरियाई सैनिकों को देखा जो कैदियों को सज़ा दे रहे थे जिनके व्यवहार मोहम्मद के मित्रों से भिन्न थे।
इस प्रकार नूसरा दल से अपने को अलग कर, वह अपना घर लौटा तथा अपने ईश्वर की खोज की किन्तु देखा कि वहाँ मुस्लिम ही दूसरे मुस्लिम को मार रहा था। तब उसे एहसास हुआ कि वहाँ कुछ गड़बड़ी है। दूसरे साल वह अपनी पत्नी के साथ कुर्दिश छोड़ तुर्की चला गया।
मोहम्मद ने कहा, ″उस ईश्वर जिसकी मैं पूजा करता था और अभी पूजा करता हूँ उन दोनों में बहुत अंतर है। हम भय से पूजा करते थे। अब सबकुछ बदल चुका है।″
मोहम्मद को डर है कि चरमपंथी उन्हें पुनः पकड़ लेंगे किन्तु वे कहते हैं, ″मैं ईश्वर में विश्वास करता हूँ।″
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