2017-03-11 15:55:00

भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षों ने किया भूमि हथियाने को रोकने के प्रयास का समर्थन


नई दिल्ली, शनिवार, 11 मार्च 2017 (ऊकान): पूर्वी भारतीय झारखंड राज्य के आदिवासी कानून में संशोधन को अस्वीकार करते हुए राज्यपाल द्वारा उसे रोके जाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस संशोधन द्वारा उनकी संस्कृति और अस्तित्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

झारखंड सरकार द्वारा नवम्बर माह में भूमि काश्तकारी अधिनियम में संशोधन हेतु प्रस्ताव को लेकर यहाँ के लोगों में काफी आक्रोश की भावना है क्योंकि यह कानून उनकी खेती योग्य जमीन को व्यापार एवं उद्योग आदि प्रयोजन के लिए ले जायेगी। प्रस्तावित संशोधन को राज्यपाल द्रौपदी मूर्मू की मंजूरी का इंतजार है।

ऊका समाचार के अनुसार नई दिल्ली में संसद के निकट 6 मार्च को, करीब 3,000 लोगों ने अपनी मांगों को सामने रखते हुए रैली में भाग लिया।

नई दिल्ली में झारखंड संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नोर्बर्ट एक्का ने ऊका समाचार से कहा, ″यह उपयुक्त समय है कि आदिवासी लोग एक साथ आएं और संघर्ष करें क्योंकि ये परिवर्तन हमारी पहचान और संस्कृति को चुनौती देगा।″

झारखंड संघर्ष मोर्चा के साथ झारखंड के सभी विपक्षी दलों ने मिलकर रैली का आयोजन किया था ताकि राष्ट्रीय स्तर पर, राज्य सरकार की आदिवासी विरोधी नीतियों पर लोगों का ध्यान आकर्षित कर सकें। दिल्ली महाधर्मप्रांत ने इसका खुलकर समर्थन किया तथा काथलिकों को इसमें भाग लेने हेतु प्रेरित किया।

दिल्ली महाधर्मप्रांत के प्रवक्ता फा. सावरीमुथू संकर ने कहा, ″महाधर्मप्रांत ने लोगों को प्रदर्शन में भाग लेने हेतु प्रोत्साहन दिया क्योंकि कलीसिया हमेशा ही दलितों, आदिवासियों एवं अन्य वंचित लोगों के अधिकारों की रक्षा हेतु अपना समर्थन देती है। इस मामले में कोई विकल्प नहीं है।″

उन्होंने कहा कि कलीसिया हमेशा उन लोगों के साथ खड़ी होगी जो अपने अधिकारों की रक्षा हेतु संघर्ष करते हैं।

राँची के महाधर्माध्य कार्डिनल तेलेस्फोर पी. टोप्पो की अगुवाई में धर्माध्यक्षों ने राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से राँची में 4 मार्च को मुलाकात की थी। 

झारखंड में 9 मिलियन आदिवासी लोग हैं जो राज्य के 33 मिलियन जनता का 26 प्रतिशत है। करीब 1.5 मीलियन लोग ख्रीस्तीय हैं और उनमें से लगभग आधे लोग काथलिक।

नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक जनजातीय शोधकर्ता फादर विंसेंट एकका ने कहा, ″इस कानून में संशोधन खनिज हेतु राज्य में खनन और अन्य उद्योगों के लिए सरकार को विशाल भूमि ले लेने में मदद करेगा, जिससे आदिवासी आवास घट जाएगी। इसके द्वारा विस्थापन को बल मिलेगा, फलस्वरूप, आदिवासी संस्कृति एवं अस्तित्व का विघटन होगा।″ 

उन्होंने कहा कि यद्यपि आदिवासियों की संख्या बहुत अधिक है किन्तु वे राजनीति को अपने ऊपर लेने में असफल हैं जो उन्हें शोषित होने हेतु कमजोर बना देता है।

उनका कहना था कि धर्म के नाम पर राजनीतिक नेता उन्हें विभाजित करने का प्रयास कर रहे हैं। वे ख्रीस्तीयों को गैर-ख्रीस्तीयों से अलग करने की चेष्टा कर रहे हैं ताकि उन्हें एकजुट होने से रोक सकें। वे विकास के झूठे वादे करते किन्तु उनका छिपा एजेंडा है आदिवासियों को लूटना तथा अधिक राजनीतिक एवं आर्थिक शक्ति हासिल करना। 








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