2017-03-09 16:02:00

विश्वास की आवाज़: भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा का मुकाबला


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 9 मार्च 2017 (वाटिकन रेडियो): विश्व महिला दिवस के अवसर पर, ‘विश्वास की आवाज’ का उद्देश्य था विश्व के विभिन्न हिस्सों से महिला प्रतिनिधियों को एक साथ वाटिकन में एकत्रित करना था।

इस वर्ष फिदेस गोज़ न्यास द्वारा स्थापित ‘वॉईस ऑफ फेत’ यानी ‘विश्वास की आवाज’ तथा जेस्विट शरणार्थी सेवा द्वारा महिलाओं के न्याय तथा विश्व के विभिन्न देशों में शांति निर्माण हेतु स्थापित संस्था ने विश्व महिला दिवस को एक साथ मनाया।

घरेलू हिंसा की शिकार तथा महिलाओं के अधिकार के लिए कार्य करने वाली फ्लाविया अग्नेस भी उन प्रतिनिधियों में से एक हैं। वे एक वकील हैं तथा मुम्बई में हाशिये पर जीवन यापन करने वाली महिलाओं एवं बच्चों के लिए स्थापित कानूनी संस्था मजलिस की सह-संस्थापक हैं। उन्होंने अथक प्रयास करते हुए महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हेतु देश में वैधानिक प्रणाली को अस्तित्व प्रदान दिया।

उन्होंने वाटिकन रेडियो की पत्रकार फिलिपा हेचेन को अपने केंद्र के बारे बतलाते हुए कहा कि यद्यपि महिलाएँ अदृश्य रूप से घरेलू हिंसा एवं यौन हिंसा से पीड़ित अब भी हैं किन्तु देश में अब राजनीतिक और आर्थिक स्तर पर महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हुआ है।  

उन्होंने बतलाया कि केंद्र की स्थापना 25 सालों पहले हुई है जिसका मुख्य उद्देश्य है महिलाओं के लिए न्यायिक सहायता प्रदान करना। उनके अनुसार भारत में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हेतु कई कानून हैं किन्तु उनका लाभ उठा पाना कठिन है क्योंकि कई महिलाएँ वकीलों को पाना नहीं जानती हैं, बहुत पैसे खर्च करने पड़ते हैं और साथ ही, कानूनी प्रक्रिया बहुत जटिल है। कमजोर और हाशिये पर जीवन यापन करने वाली महिलाओं के लिए यह नामुमकिन है। अतः वे इसे बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं खासकर, उन लोगों के लिए जो घरेलू एवं यौन हिंसा के शिकार होते हैं।

फ्लाविया का मानना है कि सफलता की सबसे प्रमुख कुँजी है दुनिया को महिलाओं के प्रति अपने नजरिये में बदलाव लाना चाहिए। उन्होंने कहा, ″समस्त दक्षिण एशियाई संस्कृति महिला विरोधी है। दुरुपयोग की संस्कृति रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गयी है।″  

वाईस ऑफ फेत के प्रतिनिधियों से फ्लाविया ने कहा कि परिवर्तन लाना तथा स्थानीय मामलों में जागरूकता लाना जरूरी है ताकि कलीसिया प्रासंगिक हो सके।

उन्होंने कहा, ″न्याय हेतु आवाज उठाने के लिए कलीसिया की आवाज को अधिक तेज करने की आवश्यकता है, उन लोगों के लिए खासकर, जो हाशिये पर जीवन यापन करते हैं। हमारी कलीसिया को हमारे कार्यों में अधिक दृढ़ता एवं ऊंची आवाज में समर्थन देना चाहिए।″   








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