2017-03-02 11:07:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचयः स्तोत्र ग्रन्थ, 80 वाँ भजन (भाग - 04)


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें .....

"विश्वमण्डल के प्रभु! हमारा उद्धार कर। हम पर दयादृष्टि कर और हम सुरक्षित रहेंगे। तू मिस्र देश से एक दाखलता लाया, तूने राष्ट्रों को भगा कर उसे रोपा। तूने उसके लिये भूमि तैयार की, जिससे वह जड़ पकड़े और देश भर में फैल जाये। उसकी छाया पर्वतों पर फैलती थी और उसकी डालियाँ ऊँचे देवदारों पर। उसकी शाखाएँ समुद्र तक फैली हुई थीं और उसकी टहनियाँ फ़रात नदी तक। तूने उसका बाड़ा क्यों गिराया? अब उधर से निकलनेवाले उसके फल तोड़ते हैं। जंगली सूअर उसे उजाड़ते हैं और मैदान के पशु उसमें चरते हैं।" 

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 80 वें भजन के 08 से लेकर 14 तक के पद। इन पदों की व्याख्या से ही हमने विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। जैसा कि हमने बताया था इन पदों में हमारे समक्ष इस्राएली जाति के निष्कासन की धर्मतत्व वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की गई है। इनमें कही गई बातें वस्तुतः वे बातें हैं जो इतिहास के अन्तराल में कई बार घट और अनवरत घटती रहीं। उक्त पदों से स्पष्ट है कि ईश प्रजा प्रभु में अपने विश्वास की पुनरावृत्ति करती तथा उनसे उत्तर की आशा करती है क्योंकि वह जानती थी कि प्रभु ईश्वर की दया दृष्टि से ही वह सुरक्षित रह सकती थी। वह प्रभु ईश्वर के मुक्तिदायी कार्य को प्रकाशित कर कहती है, "तू मिस्र देश से एक दाखलता लाया, तूने राष्ट्रों को भगा कर उसे रोपा। तूने उसके लिये भूमि तैयार की, जिससे वह जड़ पकड़े और देश भर में फैल जाये।"

इस प्रकार, श्रोताओ, मिस्र की गुलामी से मुक्ति और वहाँ से प्रतिज्ञात देश तक निष्कासन उन समस्त घटनाओं का आधार बना जो भविष्य में सम्पादित होनेवाली थीं। इस तथ्य पर हम ग़ौर कर चुके हैं कि नबी इसायाह ने ईश्वर को दाखबारी के मालिक और इस्राएल को उनकी पसंदीदा दाखबारी रूप में वर्णित किया है। नबी इसायाह के अनुसार, इस्राएल वह अँगूरी थी जो प्रभु की दाखलता में विकसित हुई थी। इसी प्रकार नबी होशेया ने इस्राएल को प्रभु की दाखबारी की अँगूरी कहकर पुकारा था। सच तो यह है कि ईश्वर ने चाहा था कि इस्राएल यथार्थ सुख की अँगूरी सम्पूर्ण विश्व में वितरित करने का अस्त्र बने किन्तु अपने अविश्वास के कारण वह इस कसौटी पर खरी नहीं उतरी। 

80 वें भजन के 13 वें और 14 वें पदों में ईश प्रजा एक प्रकार से विलाप करती हुई प्रभु ईश्वर से उत्तर की मांग करती है, कहती है, "तूने उसका बाड़ा क्यों गिराया? अब उधर से निकलनेवाले उसके फल तोड़ते हैं। जंगली सूअर उसे उजाड़ते हैं और मैदान के पशु उसमें चरते हैं।" दाखबारी का बाड़ा गिरा और मैदान के पशु उसमें घुस आये और चरने लगे, जंगली सूअरों ने उसे उजाड़ दिया इत्यादि सभी अशुभ घटनाओं के लिये इस्राएली जाति ईश्वर को दोषी ठहराती है, अपना दोष उसे नहीं दिखाई नहीं देता। प्रभु ईश्वर ने इस्राएली जाति को अपनी प्रजा रूप में चुना था और यह बात यिरिमियाह के ग्रन्थ के दूसरे अध्याय के 21 पद से स्पष्ट हो जाती है जिसमें प्रभु ईश्वर प्रश्न करते हैं, "मैंने तुम्हें श्रेष्ठ जाति की उत्तम दाखलता की तरह रोपा फिर तुम्हारी डालियाँ कैसे जंगली दाखलता में बदल गई?" आज के मनुष्य में भी कोई खास अन्तर नहीं आया है। आज भी वह अपनी असफलताओं और अपनी निराशाओं का दोष ईश्वर पर ही मढ़ता है। उसके संग जो कुछ भी अशुभ होता है वह उसे ईश्वर का ही कार्य दिखता है। अपना दोष उसे नहीं दिखता इसीलिये यही कहा करता है "मैंने ईश्वर की दुहाई दी, उनसे विनती की किन्तु उसका कोई फल नहीं मिला बल्कि उसके बदले में दुःख ही दुःख मिले" जबकि सच तो यह है कि प्रत्येक मनुष्य वही पाता है जो वह रोपता है।

आगे स्तोत्र ग्रन्थ के 80 वें भजन के अन्तिम पदों अर्थात् 15 से लेकर 20 तक के पदों में ईश प्रजा प्रभु से आर्त याचना करती है कि वे वापस उसके पास आयें तथा उसके कष्टों से उसे उबारें। ये पद इस प्रकार हैं, "विश्व मण्डल के ईश्वर! वापस आने की कृपा कर, स्वर्ग से हम पर दया दृष्टि कर। आ कर उस दाखबारी की रक्षा कर, जिसे तेरे दाहिने हाथ ने रोपा है। तेरी दाखलता काटकर जलाई गयी है। तेरे धमकाने पर तेरी प्रजा नष्ट होती जा रही है। अपने कृपा पात्र पर अपना हाथ रख, उस मनुष्य पर, जिसे तूने शक्ति प्रदान की थी। तब हम फिर कभी तुझे नहीं त्यागेंगे। तू हमें नवजीवन प्रदान करेगा। और हम तेरा नाम लेकर तुझसे प्रार्थना करेंगे। विश्वमण्डल के प्रभु ईश्वर! हमारा उद्धार कर, हम पर दयादृष्टि कर और हम सुरक्षित रहेंगे।" 

श्रोताओ, 80 वें भजन के एक से लेकर सात तक के पद ईश प्रजा की पहली प्रार्थना थी, 08 से लेकर 14 तक के पद दूसरी प्रार्थना और अब 15 से लेकर 20 तक के पदों में तीसरी प्रार्थना निहित है। इस प्रार्थना में इस्राएली जाति ईश्वर को एक प्रकार से चुनौती देती है और उनसे कहती है कि वे उस दाखबारी को आकर स्वयं देखें कि किस निष्ठुरता से उसकी दाखलताएँ काट डाली गई हैं। वह प्रभु ईश्वर को याद दिलाती है कि वह उनका पहलौठा पुत्र है। इस्राएल ही वह प्रजा है जिसे प्रभु ने शक्ति प्रदान की थी और अब जब उसकी दाखलताएँ  काट कर जलाई जा रही थी प्रभु आयें और उसका उद्धार करें। कहती है, "अपने कृपा पात्र पर अपना हाथ रख, उस मनुष्य पर, जिसे तूने शक्ति प्रदान की थी।"

श्रोताओ, एक प्रकार से स्तोत्र ग्रन्थ का 80 वाँ भजन इस्राएल रूपी उस अँगूरी की कहानी है जो अपने मिशन में विफल हो गई थी। बाईबिल आचार्यों का मानना है कि 80 वें भजन में इस्राएल की उन नौ जातियों की प्रार्थना निहित है जो निष्कासन से कभी वापस नहीं लौटी थीं। तथापि, हमें नबी एज़ेकियल की आशा पर ग़ौर करना चाहिये जिन्होंने कहा था कि कुछ वापस लौटी थीं और उन्होंने ईश आज्ञा का पालन किया था। इस स्थल पर यह ध्यान में रखना हितकर होगा कि प्रभु ईश्वर की संविदा सदा सर्वदा के लिये है। ईश आज्ञाओं का उल्लंघन करनेवालों को ही ऐसा कष्ट होता है जैसा इस्राएल की कुछेक जातियों को हुआ था किन्तु जो ईश्वर के आदेशानुकूल जीवन यापन करते हैं वे सुख समृद्धि एवं मुक्ति के भागीदार बनते हैं।








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