2017-02-22 15:17:00

स्वार्थ सुन्दर वस्तुओं को नष्ट करती है


वाटिकन सिटी, बुधवार, 22 फरवरी 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस के प्राँगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात

बहुधा हम सृष्टि को अपनी सम्पति समझने के फेर में पड़ जाते और इसका उपयोग मनमाने ढ़ग से करने लगते हैं। संत पौलुस रोमियों के नाम अपने पत्र में लिखते हैं कि सृष्टि ईश्वर की एक अति सुन्दर कृति है जो हमारे हाथों में सौंपी गई है जिससे हम अपने जीवन में ईश्वर के प्रेम का एहसास करते हुए उनके साथ एक संबंध स्थापित कर सकें।(रोमि.8.19-27)

संत पापा ने कहा कि लेकिन मानव में स्वार्थ की भावना सुन्दर वस्तुओं को भी नष्ट कर देती है। इस संदर्भ में हम पानी के बारे में विचार करें, पानी अपने में सुन्दर और महत्वपूर्ण है जो हमें जीवन प्रदान करता और सभी रुपों में मदद करता है। लेकिन पानी दूषित हो जाता हो यह सारी सृष्टि के लिए हानि कारक बन जाता है। उसी तरह पाप के कारण हम ईश्वर से अपना संबंध तोड़ लेते हैं और न केवल ईश्वर से वरन सारी सृष्टि से हमारा संबंध टूट जाता है जिसके कारण हम अपनी भ्रष्टता में उसका दुरुपयोग करते तथा उसे अपना गुलाम बना लेते हैं। इसका दुष्परिणाम हम अपने रोज दिन से जीवन में देखते हैं। अपने ईश्वर से संबंध तोड़ने के कारण मानव अपनी असल खूबसूरती को खो देता है जो उसके जीवन की सभी चीजों को कुरूप बना देती है। लेकिन हमारे पाप के कारण ईश्वर हमारा परित्याग नहीं करते, वरन हमें हमारी मुक्ति और दुनिया की मुक्ति हेतु एक नई अन्तदृष्टि प्रदान करते हैं। संत पौलुस हमें ध्यान पूर्वक सृष्टि की कराह को सुनने का निमंत्रण देते हैं। यदि हम ध्यान से सुने तो सृष्टि के कण-कण की रुदन हमें सुनाई देगी। यह रूदन अपने में शुष्क रूदन नहीं है वरन यह नारी के प्रसव वेदना की तरह एक कराह है जो एक नये जीवन में जन्म देने वाली है। संत पापा ने कहा कि हमारी स्थिति सचमुच में ऐसी ही है। हम अपने पापों के कारण अपने में संघर्षरत हैं लेकिन इसके बावजूद हम जानते हैं कि ईश्वर अपने पुनरुत्थान के द्वारा हम सबों को बचाते हैं।

यह हमारे लिए आशा की एक निशानी है। एक ख्रीस्तीय संसार के बाहर नहीं हैं। वह अपने में यह जानता है कि किन-किन बुराइयों से घिरा हुआ है। अतः हमें उनके साथ अपनी एकात्मता प्रकट करने की जरूरत है जो अपने जीवन में दुःखी, परित्यक्त और शोकित हैं क्योंकि पास्का का आनन्द हमें येसु ख्रीस्त में नये जीवन की आशा प्रदान करता है। अपनी आशा में हम इस बात का एहसास करते हैं कि ईश्वर अपनी करुणा में हमारे दुःख-दर्द और बुराई को सदा के लिए हम से दूर करेंगे जो मानवीय दुष्टता के कारण सृजित किये गये हैं। इस तरह ईश्वर अपने प्रेम और मेल-मिलाप के द्वारा एक नई दुनिया और एक नये मानव समाज की रचना करते हैं।

हम कितनी बार व्यर्थ की चिंता, हताशी और निराशा के शिकार होते हैं कभी-कभी तो हम बेकार भी भुनभुनाने लगते हैं और कभी शब्दहीन हो जाते और हमें पता तक नहीं चलता कि हम किस वस्तु की चाह या माँग करें। लेकिन पुनः पवित्र आत्मा हमें अपनी सांत्वना से प्रेषित करता और हमारे हृदयों में आशा की नई सांस फूँकता है। वह हमें नये आकाश, नई पृथ्वी और एक नई मानवता की आशा से भर देता है।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और उन्हें आशा में बने रहने की शुभकामनाएँ देते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। 








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