2017-02-20 16:09:00

बुराई से बुराई का अंत असंभव है


वाटिकन रेडियो, सोमवार, 20 फरवरी 2017 ( सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने 19 फरवरी को अपने  रविवारीय देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हजारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाई एवं बहनो,

सुप्रभात,

इस रविवार का सुसमाचार हमारे लिए “ख्रीस्तीय क्रांति” के संदेश को व्यक्त करता है जहाँ येसु बदले की भावना से ऊपर उठते हुए हमें प्रेम के द्वारा सच्चे न्याय के प्रवर्तक होने का निमंत्रण देते हैं। “आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत” प्रचीन व्यवस्थान में संहिता का यह नियम एक दूसरे के साथ वैसा की ही बर्ताव करने को प्राथमिकता देती थी जैसा किसी के साथ हुआ हो। इस तरह मौत के बदले मौत और दर्द के बदले दर्द जैसे नियमों का अक्षर-सा पालन किया जाता था। येसु अपनी शिक्षा में इस नियम का एक नया व्याख्यान देते हुए कहते हैं कि हम बुराई का प्रतिउत्तर बुराई से नहीं वरन अच्छाई से दें। ऐसा करने के द्वारा हम बुराई की कड़ी को खत्म करते हैं क्योंकि एक बुराई दूसरे बुराई को लेकर आती और इस तरह बुराइयों का सिलसिला बढ़ता जाता है। बुराई की कड़ी को तोड़ते हुए हम परिवर्तन की एक नई बयार लाते हैं। उन्होंने कहा कि बुराई अपने में एक खोखलेपन के समान है जो किसी अन्य दूसरे खालीपन के द्वारा भरी नहीं जा सकती है लेकिन हम इसे अपनी पूर्णतः अर्थात अच्छाई द्वारा भर सकते हैं। हमारे जीवन में बदले की भावना से युद्ध की स्थिति का निदान नहीं किया जा सकता है। संत पापा ने इस बात पर बल देते हुए का, “आप ऐसा नहीं कर सकते, मैं ऐसा नहीं कर सकता।” यह कलह का समाधान नहीं है और न ही ख्रीस्तीयता की निशानी।

संत पापा ने कहा कि हिंसा का प्रतिउत्तर नहीं देना बहुधा हमारे अपने मौलिक संवैधानिक अधिकारों का परित्याग करना है जैसे कि अपने दूसरे गाल को देना, अपने वस्त्रों और धन ले जाने देना, इसके बदले दूसरे चीजों के स्वीकार करना। लेकिन इस परित्याग का अर्थ हमारे लिए यह नहीं कि हम न्याय से वंचित हो गये हैं, इसके विपरीत ख्रीस्तीय प्रेम जो करुणा की एक विशेष निशानी द्वार प्रकट होती है हमारे लिए न्याय की एक गहरी अनुभूति प्रदान करती है। यहाँ येसु हमें इस बात की शिक्षा देते हैं कि हमें न्याय और प्रतिकार में बीच किस तरह एक अन्तर स्पष्ट करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि किसी के प्रति बदले की भावना सही नहीं है। हमें अपने न्याय की माँग करने की जरूरत है जो हमारा कर्तव्य है यद्यपि इसके लिए किसी से बदला लेना उचित नहीं है क्योंकि बदले की भावना किसी के प्रति हमारे दिल में व्याप्त घृणा और हिंसा के भाव को व्यक्त करती है।

येसु एक नये सामाजिक व्यवस्था की स्थापना करना नहीं चाहते बल्कि हमारे शत्रुओं के प्रति प्रेम की आज्ञा को मजबूत करते हैं। “अपने शत्रुओं से प्रेम करो और जो तुम्हारी बुराई करते उनके लिए प्रार्थना करों।” यह हमारे लिए सहज नहीं है। इस वाक्य का अर्थ हमारे लिए यह नहीं कि हम अपने बुराई करने वालों को बढ़ावा दें लेकिन हमें इस तथ्य को एक बृहद संदर्भ में समझने को कहा जा रहा है जो स्वर्गिक पिता के विचारानुरूप है, “वह भले और बुरे, दोनों पर अपना सूर्य उगाता तथा धर्मी और अधर्मी, दोनों पर पानी बरसाता है।”  शत्रु हमारे लिए मनुष्य है जो ईश्वर के प्रतिरूप में बनाया गया है यद्यपि वह अपने बुरे कार्यों के द्वारा ईश्वर के रूप को खो देता है।

संत पापा ने कहा कि जब हम “शत्रुओं” की बात करते तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि वे हम से भिन्न एक अलग तरह के लोग हैं, यह हमें भी अपने में समाहित करता है क्योंकि हम अपने पड़ोसियों और यदाकदा अपने परिवार के सदस्यों के साथ लड़ाई करते हैं। हमारे परिवारों में कितने शत्रु हैं आइए हम इस बात पर विचार करें। हमारे शत्रु वे भी हैं जो हमारे विरूद्ध शिकायतें करते और बुराई करने हेतु उकसाते हैं। यह हमारे लिए अपचय होता है। उन्होंने कहा कि हम उन सभों से साथ प्रेम से प्रेरित हो कर अच्छा व्यवहार करने हेतु बुलाये गये हैं।

माता मरियम हमें इस कठिन मार्ग में चलने हेतु मदद करें जो मानव के रुप में सचमुच हमारी गरिमा को बढाती हैं जिसके द्वारा हम स्वर्गीय पिता की संतान के रुप में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। वह हमें धैर्य़, वार्ता, क्षमाशीलता के गुणों को जीने में सहायता करें जिससे हम प्रतिदिन एकता और भ्रातृत्व में विशेषकर अपने परिवारों के शिल्पकार बन सकें। 

इतना कहने के बाद संत पापा ने विश्वासी समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया और फिर सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपना प्रेरितिक आशीवार्द दिया।

देवदूत प्रार्थना के उपरान्त संत पापा ने गणतंत्र कोगों में हिंसा के शिकार लोगों की याद करते हुए कहा कि मुझे हिंसा से प्रभावित विशेषकर बच्चे का अपने परिवारों से बिछुड़ना, उनके विद्यालयों में सैनिकों का कब्जा होना गहरी वेदना प्रदान करती है। बच्चों का हथियार बंद सैनिकों के रूप में उपयोग किया जाना एक दुःखद घटना है। मैं उनके लिए अपनी विशेष प्रार्थना अर्पित करता हूँ जिससे वे मानवतावादी कार्यकर्ताओं के द्वारा उचित सहायता प्रदान किये जायें। संत पापा ने अफ्रीका के विभिन्न प्रान्तों में युद्ध से प्रभावित लोगों के साथ-साथ पाकिस्तान और इराक में हुए आतंकवादी हमलों में मारे गये लोगों की भी याद की और विश्वासी समुदाय के साथ मौन प्रार्थना के उपरान्त दूत संवाद प्रार्थना का पाठ किया और अपने लिए प्रार्थना का निवेदन करते हुए सभों को रविवारीय मंगलकामनाएँ अर्पित की। 








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