2017-02-09 11:46:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचयः स्तोत्र ग्रन्थ भजन 79 एवं 80


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"प्रभु, हमारे पड़ोसियों ने जो तेरा अपमान किया, उनसे उसका सातगुना बदला चुका। हम तेरी प्रजा हैं, तेरे चरागाह की भेड़ें। हम सदा तुझे धन्यवाद देते रहेंगे। हम युग-युगों तक तेरी स्तुति करते रहेंगे।"  

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 79 वें भजन के 12 वें एवं 13 वें पदों के शब्द। इन पदों के पाठ से ही हमने  विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। 79 वें भजन का  प्रार्थी प्रभु ईश्वर से अनुनय-विनय करता है कि ईश्वर ग़ैरविश्वासियों पर अपना कोप प्रकट करें तथा अत्याचारियों को दण्डित करें। ईश्वर की उपेक्षा करनेवाले ग़ैरविश्वासियों ने जैरूसालेम के भवनों को ध्वस्त कर दिया था, उसके कोषों को लूट लिया था, फलों के वृक्षों को काट डाला था तथा आस-पड़ोस के कुओं को भी बन्द करा दिया था। वस्तुतः, इस भजन के रचयिता ने यह दर्शाने का प्रयास किया है कि अपने लोगों को अहंकार और घमण्ड की निद्रा में से जगाने के लिये ही प्रभु ईश्वर ने ग़ैरविश्वासियों द्वारा पवित्र शहर और पवित्र मन्दिर का विनाश होने दिया। इसी विनाश के बाद चुनी हुई प्रजा इस्राएली जाति प्रभु ईश्वर से क्षमा की याचना करती है और विनम्र अनुरोध करती है कि ईश्वर उसे उसके पूर्वर्जों के पापों की सज़ा न दें। एक प्रकार से वह ईश्वर को स्मरण दिलाती है कि वही उनकी प्रजा थी, वही उनके चरागाह की भेड़ें और इसीलिये कहती है, "हम सदा तुझे धन्यवाद देते रहेंगे। हम युग-युगों तक तेरी स्तुति करते रहेंगे।" 

श्रोताओ, 12 वें पद में भजनकार याचना करता है कि ईश्वर का अपमान करनेवालों को सातगुना सज़ा मिले। सच तो यह है कि भजनकार ईश्वर की राहों से वाकिफ़ नहीं था, वह यह नहीं जानता था कि ईश्वर क्षमावान हैं, ईश्वर दयालु पिता हैं इसीलिये प्रतिशोध या बदले की बात करता है, इसीलिये दसवें पद में कहता है, "हमारी आँखों के सामने राष्ट्र यह जान जायें कि तेरे सेवक के बहाये रक्त का प्रतिशोध लिया जाता है", क्योंकि उसके अनुसार, सिर्फ इसी प्रकार विश्व प्रभु ईश्वर की सृजनकारी एवं मुक्तिदायक शक्ति से परिचित हो सकता था। सन्त पौलुस इसमें यह जोड़ सकते हैं कि क्या ईश प्रजा को प्रभु येसु के दुखभोग में सहभागी होने की शक्ति मिली थी? कुरिन्थियों को प्रेषित दूसरे पत्र के पहले अध्याय के पाँचवें पद में कहते हैं, "क्योंकि जिस प्रकार हम प्रचुर मात्रा में मसीह के दुखभोग के सहभागी हैं, उसी प्रकार मसीह द्वारा हमको प्रचुर मात्रा में सान्तवना भी मिलती है।" और फिर, फिलिप्पियों को प्रेषित पत्र के तीसरे अध्याय के दसवें पद में लिखते हैं, "मैं यह चाहता हूँ कि मसीह को जान लूँ, उनके पुनःरुत्थान के सामर्थ्य का अनुभव करूँ और मृत्यु में उनके सदृश बनकर उनके दुखभोग का सहभागी बन जाऊँ।" सन्त पेत्रुस भी अपने पहले पत्र के चौथे अध्याय के 13 वें पद में लिखते हैं, "यदि आप लोगों पर अत्याचार किया जाये, तो मसीह के दुखभोग के सहभागी होने के नाते प्रसन्न हों। जिस दिन मसीह की महिमा प्रकट होगी, आप लोग अत्यधिक आनन्दित हो उठेंगे।" इस प्रकार श्रोताओ, जाने-अनजाने में ही प्राचीन व्यवस्थान के 79 वें भजन के रचयिता ने हमारे समक्ष प्रभु येसु मसीह के कार्यों का ईशशास्त्र प्रस्तुत किया है।

अब आइये स्तोत्र ग्रन्थ के 80 वें भजन पर ग़ौर करें। इस भजन के साथ ही मानों हम एक शताब्दी पीछे लौट आते हैं। इस भजन में इस्राएल के पुनरुद्धार के लिये प्रार्थना की गई है। भजन के प्रथम तीन पद इस प्रकार हैं, "तू जो इस्राएल का चरवाहा है, हमारी सुन, जो भेड़ों की तरह युसूफ़ को ले चलता है, जो स्वर्गदूतों पर विराजमान है, एफ़्रईम, बेनयामीन और मनस्से के सामने अपने को प्रकट कर। अपने सामर्थ्य को जगा और आकर हमारा उद्धार कर।"  

जैसा कि हम आपको बता चुके हैं स्तोत्र ग्रन्थ के 80 वें भजन में हम ऐतिहासिक तौर पर एक शताब्दी पीछे लौटते हैं और उस युग पर दृष्टिपात करते हैं जब वर्ष 721 ईसा पूर्व, इस्राएल की भूमि एफ़्रईम, बेनयामीन और मनस्से के क्षेत्रों में विभाजित थी तथा युसूफ़ के नाम से चलती थी। यह वही काल था जब उत्तर की जातियाँ अस्सिरियाई लोगों द्वारा निष्कासित कर दी गई थीं, इसका सन्दर्भ हमें स्तोत्र ग्रन्थ के 78 वें भजन के 67 वें पद में मिलता है जिसमें लिखा हैः "उसने युसूफ़ का निवास त्याग दिया, उसने एफ़्रईम के वंश को नहीं चुना।" अस्तु, 80 वाँ भजन उत्तर का जातियों द्वारा प्रभु को सम्बोधित है। वे प्रभु से विनम्र याचना करते प्रतीत नहीं होते बल्कि एक प्रकार से ईश्वर से मांग करते हैं... "हमारी सुन... अपना सामर्थ्य जगा... अपने के प्रकट कर..."  आदि आदि शब्दों में हम एक प्रकार से उनकी मांग को अभिव्यक्त होते देखते हैं। ये वैसे ही शब्द हैं जैसे हम 22 वें भजन में पाते हैं, मेरे ईश्वर तूने मुझे क्यों त्याग दिया है... और फिर मानों निर्गमन ग्रन्थ में निहित शब्दों से याद दिलाते हैं जिसमें प्रभु स्वयं कहते हैं कि इस्राएल उनका पहलौठा पुत्र है।

श्रोताओ, प्राचीन व्यवस्थान के युग में तीन चरणों में इस्राएली जाति को निष्कासन की पीड़ा भोगनी पड़ी थी, प्रथन चरण था 721 ईसा पूर्व, द्वितीय चरण 597 ईसा पूर्व, और अन्त में 587 ईसा पूर्व। यह अवधि हमारे समक्ष ऐतिहासिक घटनाओं की भयंकर स्थिति प्रस्तुत करती है और उसी प्रकार उत्तरों की मांग करती है जैसे हम प्रभु येसु मसीह के दुखभोग और क्रूस मरण के विषय में हम अनगिनत प्रश्नों के उत्तरों की अपेक्षा करते हैं। सच तो यह है कि यदि मानवीय दृष्टि से देखें तो स्तोत्र ग्रन्थ के भजनों में हमें मानव सम्बन्धों की जटिलता और साथ ही इतिहास की अकथनीय सापेक्षताओं के दर्शन मिलते हैं। 80 वें भजन के प्रथम तीन पदों से स्पष्ट है कि इस्राएल के लोगों ने चाहें वे उत्तर के थे अथवा दक्षिण के प्रभु ईश्वर को अपने पूर्वज युसूफ़ एवं दाऊद के युग से ही अपना चरवाहा मान लिया था और उसी नाम से वे उन्हें पुकारते रहे थे।








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