2017-02-02 11:04:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचयः स्तोत्र ग्रन्थ भजन 79 भाग - 3


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"प्रभु, तू कब तक हम पर अप्रसन्न रहेगा? तेरा क्रोध कब तक अग्नि की तरह जलता रहेगा? अपना क्रोध उन राष्ट्रों पर प्रदर्शित कर, जो तेरी उपेक्षा करते हैं; उन राज्यों पर जो तेरा नाम नहीं लेते; क्योंकि वे याकूब को निगल गये। उन्होंने उसके प्रदेश को उजाड़ा।" 

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 79 वें भजन के पाँच से लेकर सात तक के पद जिनकी व्याख्या विगत सप्ताह हमने पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत आरम्भ की थी। इस भजन में ध्वस्त जैरूसालेम पर विलाप किया गया है। भजन में प्रार्थी प्रभु ईश्वर के प्रति अभिमुख होकर उनसे अनुनय-विनय करता है कि ईश्वर ग़ैरविश्वासियों पर अपना कोप प्रकट करें तथा अत्याचारियों को दण्डित करें। इन पदों में दर्शाया गया है कि ईश्वर के बिना एक पत्ता भी इधर का उधर नहीं होता और जो विनाश जैरूसालेम में हुआ वह भी नहीं हो सकता था यदि ईश्वर की इच्छा नहीं हुई होती। ईश्वर ने अपने लोगों को अहंकार और घमण्ड की निद्रा में से जगाने के लिये ही ग़ैरविश्वासियों द्वारा पवित्र शहर और पवित्र मन्दिर का विनाश होने दिया। ईश्वर की उपेक्षा करनेवाले ग़ैरविश्वासियों ने जैरूसालेम के भवनों को ध्वस्त कर दिया था, उसके कोषों को लूट लिया था, फलों के वृक्षों को काट डाला था तथा आस-पड़ोस के कुओं को भी बन्द करा दिया ताकि किसी को पानी तक नसीब न होने पाये। इसका सन्दर्भ हमें यिरेमियाह के ग्रन्थ में मिलता है। इसके 10 वें अध्याय के 25 वें पद में लिखा है, "उन राष्ट्रों पर अपने क्रोध का प्याला उँडेल, जो तुझे नहीं जानते – उन जातियों पर, जो तेरा नाम नहीं लेतीं; क्योंकि वे याकूब को निगल रही हैं।"

श्रोताओ, याकूब ईश भक्त थे तथा उन्होंने प्रभु से मिले आदेशों के अनुसार अपना जीवन यापन किया था इसलिये याकूब को निगलने का अर्थ है उन सब मूल्यों की अवहेलना कर देना जिनकी शिक्षा ईश्वर के भक्त याकूब ने अपनी सन्तानों को दी थी। श्रोताओ, यह बात हम पर भी लागू हो सकती है यदि हम अपने अभिभावकों एवं धर्मशिक्षकों द्वारा दी गई शिक्षा पर न चलें तो हम अपना ही अहित करते हैं।           

आगे स्तोत्र ग्रन्थ के 79 वें भजन के आठ से लेकर दस तक के पदों में चुनी हुई प्रजा इस्राएली जाति प्रभु ईश्वर से क्षमा की याचना करती है और विनम्र अनुरोध करती है कि ईश्वर उसे उसके पूर्वर्जों के पापों की सज़ा न दें। ये पद इस प्रकार हैं: "हमारे पूर्वर्जों के पापों के कारण हम पर अप्रसन्न न हो। तेरी करुणा हमें शीघ्र ही प्राप्त हो, क्योंकि हम घोर संकट में हैं। ईश्वर हमारे मुक्तिदाता !  अपने नाम की महिमा के लिये हमारी सहायता कर अपने नाम की मर्यादा के लिये हमारा उद्धार कर, हमारे पाप क्षमा कर। ग़ैरयहूदी राष्ट्र यह क्यों कहने पायें: "कहाँ है उन लोगों का ईश्वर?" हमारी आँखों के सामने राष्ट्र यह जान जायें कि तेरे सेवक के बहाये रक्त का प्रतिशोध लिया जाता है।" 

श्रोताओ, इन पदों को पढ़ने पर यकायक हमारे मन में सवाल उठते हैं कि क्या  सचमुच में ईश्वर हमें हमारे पूर्वजों के पापों के लिये दण्डित करना चाहते हैं? सन् 1203 ई. में क्रूस योद्धाओं ने ख्रीस्तीय शहर कॉन्सटेनटीनोपल पर आक्रमण कर उसे बर्बाद कर दिया था, तुर्कियों ने 1453 ई. में इसे तहस-नहस कर डाला था और अपने ही समय की बात करें तो लेनिन ने सोवियत संघ ने ख्रीस्तीय धर्म को उखाड़ फेंकना चाहा था। ऐसे ही मिश्रित सेनाओं ने जर्मनी के ड्रेसडन शहर पर बमबारी की थी तथा उसके वैभवपूर्ण गिरजाघरों को नष्ट कर डाला था। इन घटनाओं से जुड़े लोगों ने क्या कभी हमारे भजनकार की तरह यह प्रश्न किया होगा कि उन्हें किस कारण इतनी पीड़ा भोगनी पड़ रही थी? अस्तु, श्रोताओ, यह सही नहीं है कि हमें अपने पूर्वजों के पापों का फल भोगना पड़ता है। मनुष्य उन्हीं फलों का पान करता है जो उसने ख़ुद बोयें हैं। हिंसा, बलात्कार, डकैती, यातना और प्रताड़ना तथा हत्या सभी मानव की दुष्टता का फल है। 79 वें भजन का रचयिता तो ईश्वर से इसलिये प्रश्न कर रहा था क्योंकि उसका विश्वास अटल था कि प्रभु ईश्वर अपने वचन से कभी टलते नहीं हैं। वे सबके मुक्तिदाता हैं जैसा कि उन्होंने स्वयं इसायाह के ग्रन्थ के 43 वें अध्याय में घोषित किया है, "क्योंकि मैं, प्रभु, तुम्हारा ईश्वर हूँ, मैं इस्राएल का परमपावन उद्धारक हूँ।"

इस प्रकार श्रोताओ, भजनकार चाहता है कि उसके बैरी यह जान जायें कि प्रभु अपने सेवक के बहाये रक्त का प्रतिशोध लेते हैं। भजन के 11 वें पद में कहता हैः "बन्दियों की कराह तेरे पास पहुँचे। अपने बाहुबल से मृत्युदण्ड पानेवालों की रक्षा कर।" उसे इस बात का पूरा भरोसा है कि ईश्वर दीन-हीन को बचानेवाले ईश्वर हैं, वे बन्दियों को मुक्ति दिलाते तथा मृत्युदण्ड पानेवालों की रक्षा करते हैं। श्रोताओ, प्राचीन व्यवस्थान के युग में मिस्र की दासता से निकल भागनेवाले लोगों को बन्दी बना लिया जाता था तथा मरुस्थल में नाना प्रकार सताया जाता था। उसी प्रकार बेबीलोन के दस्तावेज़ों से पता चलता है कि मध्ययुग में युद्ध बन्दियों को अन्धेरी कोठरियों में मरने के लिये छोड़ दिया जाता था। गन्दे कीचड़ से भरे गर्तों में उन्हें भूखा मारा जाता था, हमारे अपने युग में भी हम इस प्रकार की क्रूरता को देखते हैं। इसी सन्दर्भ में 79वें भजन का रचयिता प्रभु ईश्वर से याचना करता है कि वे मृत्युदण्ड भोग रहे लोगों की रक्षा करें।

79 वें भजन के अन्तिम पदों में भजनकार प्रभु ईश्वर में एक बार फिर अपने विश्वास की अभिव्यक्ति कर कहता हैः "प्रभु, हमारे पड़ोसियों ने जो तेरा अपमान किया, उनसे उसका सातगुना बदला चुका। हम तेरी प्रजा हैं, तेरे चरागाह की भेड़ें। हम सदा तुझे धन्यवाद देते रहेंगे। हम युग-युगों तक तेरी स्तुति करते रहेंगे।"








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