2017-01-30 16:50:00

पर्वत प्रवचन पर संत पापा का चिंतन


वाटिकन रेडियो, सोमवार, 22 जनवरी 2017 ( सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने 29 जनवरी को अपने  रविवारीय देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हजारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाई एवं बहनो सुप्रभात,

आज का सुसमाचार हमें येसु के पर्वत प्रवचन “धन्यताओं” पर मनन चिंतन करने को आमंत्रित करता है। इसके द्वारा येसु हमारे लिए ईश्वर की इच्छा को व्यक्त करते जो हमें खुशी प्राप्ति हेतु उन्मुख करती है। ईश्वर का यह संदेश हमारे लिए नबियों के उपदेश में पहले ही प्रस्तुत किया गया है जहाँ वे कहते हैं ईश्वर ग़रीबों और दुखियों के साथ हैं तथा वे उन्हें उनकी परिस्थितियों से निजात दिलाते हैं। लेकिन इस प्रवचन में येसु एक विशेष प्ररूप का अनुसरण करते हुए शब्द “धन्य” से शुरूआत करते हैं जो हमारे लिए खुशी को व्यक्त करती है। यह मानव जीवन की एक परिस्थिति और मनोभाव को व्यक्त करती जिसके अंत में वे हमें एक प्रतिज्ञा करते हैं। यहाँ हमारे लिए खुशी का कारण बनता जहाँ हम परिस्थिति में बने रहने को नहीं अपितु उस मनोभाव को अपने में धारण करने हेतु बुलाये जाते हैं जैसे कि “दीन-हीन”, “दुःखी ”,“न्याय के प्रति भूखे”, “प्रताड़ित”, जिसका पुरस्कार वे हमें प्रदान करेंगे। इस तरह ईश्वरीय उपहार में हम उनके राज्य के भागीदार होते हैं और एक नई दुनिया में प्रवेश करते हैं जिसकी घोषणा येसु ख्रीस्त हमारे लिए करते हैं। यह स्वचालित तंत्र नहीं वरन अपने जीवन में येसु ख्रीस्त का अनुसरण करना है जहाँ हम अपने जीवन की कठिनाइयों और मुसीबतों को एक नये दृष्टिकोण से देखते हैं। अपने जीवन में यदि हम ईश्वर के वरदानों को नहीं देखते और परिवर्तन नहीं लाते तो यह धन्य नहीं है।

संत पापा ने प्रथम धन्य वचन के बारे में जिक्र करते हुए कहा, “धन्य हैं वे जो दीन हीन हैं स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।”  दीन हीन वे हैं जो अपने जीवन को ग़रीबों के साथ संयुक्त करते हुए उनके मनोभावों को अपने में धारण करते हैं। वे अपने जीवन में होने वाली घटना को लेकर विद्रोह की भावना नहीं रखते वरन नम्रता और दीनता में ईश्वरीय कृपा के अनुरूप जीवन यापन करते हैं। ग़रीबों और दीनहीनों की खुशी के दो आयाम हैं संत पापा ने कहा, चीजों के प्रति और ईश्वर के प्रति उनके मनोभाव। भौतिक चीजों के प्रति उनके मनोभाव सौम्य हैं जहाँ वे उन चीजों का महत्व समझते और उनका आदान-प्रदान दूसरों के साथ करते हुए अपने प्रतिदिन के जीवन को नवीकृत करने की कोशिश करते हैं। वे अपने जीवन में उन चीजों को और अधिक पाने और जमा करने की चाह नहीं रखते हैं। यह हमारी आत्मा को मार डालती है क्योंकि जो स्त्री और पुरुष अपने जीवन में अधिक पाने या और अधिक जमा करने के मनोभाव रखते हैं वे अपने जीवन में खुश नहीं हैं और न ही खुशी की प्राप्ति करेंगे। संत पापा ने कहा कि दुनिया ईश्वरीय प्रेम की एक कृति है जहाँ हम उनकी महिमा करते हैं। हमारे जीवन में बहुत सारी चीज़ें हैं लेकिन हम उन चीजों के कारण अपने में महान नहीं हैं बल्कि यह ईश्वर हैं जो महान हैं जिनके प्रति खुलेपन में नम्र और दीन बने रहने की जरूर है। ईश्वर हमें अपने जीवन के किसी भी परिस्थिति में खुश रहने की कामना करते हैं।

दीन-हीन अपने जीवन के भौतिक धन-दौलत और अपने स्वयं के विचारों में निर्भर नहीं होते बल्कि वे आदर के साथ स्वेच्छापूर्वक दूसरों के निर्णयों की भी कद्र करते हैं। उन्होंने कहा यदि हमारे समुदाय में गरीब लोग अधिक होते तो हमारे समाज में विभाजन, अलगाव और विवाद कम होता। नम्रता, प्रेम की भाँति एक महत्वपूर्ण गुण है जो ख्रीस्त समुदायों को पिरोकर रखता है। गरीब इस तरह सुसमाचार प्रचार के संबंध में ईश्वरीय राज्य के उद्देश्य को सजीव बनाये रखते हैं जो हमारे समुदायिक जीवन में अपने कार्यों के निर्वाहन में पूरा होता है। संत पापा ने कहा कि मैं चाहता हूँ कि हम अपने दैनिक जीवन के कर्तव्यों को पूरा करने को प्राथमिकता दें। हम सदैव अपना हृदय और अपने हाथों को खुला रखें। जब हमारे हृदय बंद रहते हैं तो यह हमारे छोटेपन को दिखलाता है लेकिन जब हमारा हृदय खुला रहता तो हम प्रेम के मार्ग में अग्रसर होते हैं।

माता मरियम जो हमारी आदर्श हैं अपनी गरीबी और दीनता में अपने सम्पूर्ण जीवन में ईश्वर की इच्छा के प्रति नम्र बनी रहीं वे हमें ईश्वर को समर्पित करने में मदद करें जिससे हम अपने जीवन में ईश्वर की करुणा और उनके कृपादानों से अपने को भरापूरा पायें, विशेषकर, क्षमाशीलता की कृपा से।

इतना कहने के बाद संत पापा ने विश्वासी समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया और सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

अपने देवदूत प्रार्थना के उपरान्त संत पापा ने सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपने संबोधन में कहा कि आज हम विश्व कुष्ठ रोग दिवस मानते हैं। यह बीमारी यद्यपि अपने उन्मूलन की स्थिति में हैं लेकिन आज भी बहुत से अत्यन्त गरीब और दीन दुःखी इसकी चपेट में हैं। इस बीमारी से हमारी लड़ाई के साथ-साथ इससे प्रभावित लोगों के प्रति भेदभाव पर ध्यान देना भी हमारे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मैं उन लोगों और उन सामाजिक संस्थानों को प्रोत्साहित करता हूँ जो इससे प्रभावित लोगों के लिए कार्य करते हैं जिससे वे इस सामाजिक बुराई से लड़ने में सक्षम हो सकें।
अपने अभिवादन में संत पापा ने केन्द्रीय इटली के भुकम्प प्रभावितों के अलावा रोम के विभिन्न काथलिक संस्थानों से आये विद्यार्थियों की याद की जो अपने शांति संदेश के साथ देवदूत प्रार्थना में सहभागी हुए थे। उनके शांति संदेश हेतु संत पापा ने उनका धन्यवाद अदा किया और अंत में सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों से अपने लिए प्रार्थना का आह्वान करते हुए सबों को रविवारीय शुभकामनाएँ अर्पित की।
 








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