2017-01-18 16:37:00

मृत्यु का भय हमें ईश्वर के समीप लाता है


वाटिकन सिटी, बुधवार, 18 जनवरी 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को आशा पर अपनी धर्म शिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो

सुप्रभात,

पवित्र धर्मग्रंथ बाईबल में हम इस्रराएल के मुक्ति इतिहास में नबियों के बारे में सुनते हैं जो ईश्वर के बुलावे से दूर भागने का प्रयास करते हैं उनमें से एक नबी योना का जिक्र आज हम सुनेंगे जो हमारे लिए ईश्वर की करुणा और क्षमा का संदेश प्रस्तुत करते हैं।

नबी योना को ईश्वर निन्वे के बड़े शहर में लोगों के पास पश्चाताप का संदेश देने को भेजते हैं लेकिन वह इस खतरनाक शहर और अपने उत्तरदायित्व से दूर भागने का प्रयास करता है। अपने भागने के क्रम में उसकी मुलाकात गैर-ख्रीस्तियों से होती है जो जहाज के चालक हैं जिसमें वह अपनी समुद्री यात्रा कर रहा होता है। इन समुद्री जहाज चालकों के व्यवहार में हमें आशा की झलक देखने को मिलती है जो अपनी मृत्यु के निकट आने पर ईश्वर से निवेदन करते हैं।

वास्तव में समुद्री यात्रा के दौरान समुद्र में एक झंझावात उठती है और नबी योना इस तूफान के समय जहाज के भीतरी भाग में सोया पाया जाता है। जहाज के नाविकों स्थिति को अनियंत्रित देख यात्रियों से निवेदन करते हैं कि वे अपने-अपने ईश्वर की दुहाई दें। जहाज के कैप्टन नबी योना को उठाते हुए कहते हैं, “सोते क्यों हो? उठ कर अपने ईश्वर की दुहाई दो। वह ईश्वर शायद तुम्हारी सुधि ले, जिससे हमारा विनाश न हो।” (योना.1.6)

विनाश की इस घड़ी में गैर ख्रीस्तियों की यह प्रतिक्रिया एक उचित प्रतिक्रिया है क्योंकि ऐसी घड़ी में मानव अपने में कमजोर अनुभव करता और अपनी मुक्ति हेतु ईश्वर की दुहाई देता है। मृत्यु का भय हमें आशा में बने रहने हेतु जीवन दाता ईश्वर के समीप ले आता है। “ईश्वर हमारी सुधि लें और हम विनाश होने से बच जायें।” इस शब्दों में हम आशा भरी एक विनय प्रार्थना की झलक पाते हैं जो मृत्यु की भयावह स्थिति में स्वतः ही लोगों की ओंठों से दर्द भरे कराह स्वरूप निकलता है।

संत पापा ने कहा कि हम अपनी जरूरत के क्षणों में ईश्वर की ओर अभिमुख होते और उन्हें अपनी दुहाई देने लगते हैं मानो कि हम प्रार्थना में रुचि रखते हो। लेकिन ईश्वर हमारी कमजोरियों को समझते हैं, वे जानते हैं कि हमें उनकी सहायता की जरूरत है और वे मुस्कराते हुए हमारी प्रार्थना को सुनते हैं।  

नबी योना को जब नाविकों के उत्तरदायित्व का अनुभव हुआ तो वे अपने को समुद्र में फेंकने हेतु कहते हैं और इस तरह तूफान शांत हो जाता है। मौत का तांडव एक ओर गैर ख्रीस्तियों को प्रार्थना करने हेतु प्रेरित करता तो दूसरी ओर नबी को लोगों के प्रति अपने उत्तरदायित्व के प्रति सजग करता जो उन्हें बचने हेतु अपना त्याग करते हैं और इस तरह मौत के मुँह से बचाये गये लोग सच्चे ईश्वर का ज्ञान पाते और उनकी स्तुति और महिमा करते हैं। नाविक जो मौत के भय से जीवन की रक्षा हेतु अपने-अपने ईश्वर की दुहाई देते हैं बचाये जाने पर उन्हें सच्चे ईश्वर का ज्ञान होता और वे उन्हें अपनी कृतज्ञता अर्पित करते हैं। आशा में बने रहने हेतु उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की और वे मृत्यु से बचे रहें। इस तरह वे न केवल समुद्री तूफान से बचे वरन स्वर्ग और पृथ्वी के सच्चे ईश्वर को भी पहचाना।

निन्वे के लोगों ने भी ईश्वर पर विश्वास किया और आशा में बने रहते हुए प्रार्थना की और वे विनाश से बचाये गये। राजा से लेकर छोटे और बड़े सभों ने उपवास किया जैसा कि नाविकों ने समुद्री तूफान के दौरान किया, “क्या जाने ईश्वर द्रवित हो जाये...और हम विनाश से बच जायें?” (यो.3.9)। निन्वे के निवासियों ने भी नाविकों की भांति मौत का सामना किया और मौत के मुंह से बचाये गये। इस तरह ईश्वर की दिव्य करुणा और उससे भी बढ़कर पास्का रहस्य में हमारे लिए मृत्यु जैसा कि आसीसी के संत फ्राँसिस कहते हैं “हमारी बहन” बनती है जहाँ हम आशा में बने रहते और अपने ईश्वर से मिलने की प्रतीक्षा करते हैं।

संत पापा ने कहा कि ईश्वर हमें आशा और प्रार्थना के बीच संबंध को अनुभव करने की शक्ति दे। प्रार्थना हमें आशा में ले चलती विशेष कर जब हमारा जीवन धूमिल-सा हो जाता है। हम जितना अधिक प्रार्थना करते उतना अधिक आशा में बने रहते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और उन्हें शांति और खुशी की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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