2017-01-02 15:49:00

हम अनाथ नहीं हैं


वाटिकन रेडियो, सोमवार, 02 जनवरी 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने माता मरियम ईश्वर की पवित्र माता के महोत्सव पर 01 जनवरी को संत पेत्रुस के महागिरजाघर में नये साल का पवित्र बलिदान अर्पित करते हुए मानवीय जीवन में माता के महत्व पर अपना चिंतन प्रस्तुत किया।

उन्होंने कहा, “मरियम ने इस सारी बातों को अपने हृदय में संजोग कर रखा और उन पर मनन-चिंतन किया।”(लूका.2.19) इन वचनों के द्वारा संत लूकस मरियम के अनुभवों का जिक्र करते हैं जिसका अनुभव उन्हें येसु के जनम और उसके बाद के दिनों में करना पड़ा। वे अपने हृदय में सारी बातों को संग्रहित करके रखती हैं। इन सारी बातों की गहराई में उन्होंने येसु के हृदय की बातों को सुनने का प्रयास किया। वे मातृत्व की बातों का अनुभव करतीं तथा इस प्रक्रिया में वे येसु को पुत्र होने के अनुभवों से वाकिफ करती हैं। दिव्य वचन न केवल मरियम के गर्भ में मानव का रुप धारण किया वरन मातृत्व की कोमलता को भी अपने जीवन में अनुभव किया। मरियम के सानिध्य में ईश्वर का पुत्र जीवन की सारी बातों को सुनते तथा जीवन की कठिनाइयों, सुख-दुःख और लोगों को की गई आशाओं के बारे में ज्ञान अर्जित करते हैं। माता मरियम में येसु ने अपने को ईश्वर के आज्ञाकारी पुत्र के रुप में पाया।

सुसमाचार में मरियम एक अल्प भाषी नारी के रुप में दिखाई देती है लेकिन वह अपने पुत्र को उनके प्रेरितिक कामों के प्रति दिशा निर्देश देती है और इस कारण पुत्र अपने जीवन में सारी चीज़ें से प्रेम करता है। वह अपने जीवन में ख्रीस्तीय समुदाय के गुणों को देखती और इस तरह वह असंख्य लोगों की माता बन जाती है। वह जीवन की विभिन्न परिस्थिति में अपनी सहृदयता के कारण आशा का संचार करती है। वह अपने बच्चों के जीवन के क्रूस को चुपचाप वहन करने में मदद करती है। हमारे जीवन में कितने सारे तीर्थ स्थल, गिरजाघर और तस्वीरें हैं जो हमें इन बातों  की याद दिलाते हैं। वे हमें अपनी ममतामयी कृपाओं से पोषित करती हैं जो हमें अपने जीवन की विकट परिस्थितियों का सामना करने में मददगार सिद्ध होता है। जहाँ माता है वहाँ उसकी करुणा है। अपने मातृत्व में वह हम इस बात कि शिक्षा देती है कि नम्रता और कोमलता कमजोरी कि निशानी नहीं अपितु मजबूती के चिन्ह हैं। वह हमें इस बात को बलताली है कि अपनी महत्वपूर्ण के एहसास में हम दूसरों का शोषण न करें। इस तरह ईश्वर के लोगों ने उसे हमेशा पवित्र माता के रुप में स्वीकार किया है।

नये साल के प्रथम दिन में माता मरियम को ईश्वर की माता और हमारी माता के रुप में देखने का अर्थ हमारे लिए यही है कि हम अनाथ नहीं वरन एक माता की संतान हैं।

संत पापा ने कहा कि माताएं हमारे व्यक्तिगतवाद, अहम, उदासीनता और खुलापन की कमी जैसी बीमारियों के लिए एक शक्तिशाली विषनाशक औषधि के समान है। एक माता की उपस्थिति के बिना एक समाज न केवल ठंढा हो जाता वरन वह अपनी आत्मा को खो देता है, जहाँ हम अपनेपन का अनुभव नहीं करते हैं। माता के अभाव में वह समाज करुणा विहीन समाज बन जाता है जहाँ सिर्फ लेखा-जोखा और चीजों की खोज-पड़ताल होती है क्योंकि माताएं जीवन के बुरे से बुरे क्षणों में भी हमें अपनी करुणा, शर्तहीन त्याग और आशा की शक्ति से भर देने में सक्षम होती हैं।

संत पापा ने कहा कि मैंने उन माताओं से बहुत सारी बातों को सीखा है जिनके बच्चे कैदखानों, अस्पतालों और नशे के गुलाम हैं जिनकी खुशी हेतु वे रात-दिन मेहनत करती हैं। वे माताएं जो शरणार्थी शिविरों में हैं या युद्धग्रस्त स्थितियों से गुजर रहे हैं वे बिना थके अपने बच्चों के दुःखों में उनके लिए एक सहारा बनती हैं। वे माताएं जो अपने बच्चों के लिए अपना जीवन क़ुर्बान कर देती हैं जिससे वे अपने जीवन को संवार सकें। जहाँ एक माँ है वहाँ एकता और परिवार के सदस्यों में आत्मीयता की भावना बनी रहती है।

माता मरियम के इस त्योहार को मनाते हुए नये साल की शुरूआत करना हमें आध्यात्मिक रुप से अनाथ होने से बचाता है। अनाथ होने की अनुभूति में हमारी आत्मा माँ और ईश्वरीय करुणा की कमी का एहसास करती है जहाँ हम अपने को अपने परिवार, अपने लोगों, अपनी मातृभूमि और ईश्वर से दूर अंधकार में पाते हैं। ऐसे अनाथपन का एहसास हमें अपने आप में कैद कर लेता है और हम केवल अपने बारे में ही सोचने लग जाते हैं। हम अपने स्वार्थ के गुलाम हो जाते हैं जब हम यह भूल जाते कि जीवन हमारा एक उपहार है जिसे हमें दूसरे और अपने सामान्य घर के साथ  साझा करना है।

इसी स्वार्थ के कारण काईन को कहा पड़ा था, “क्या मैं अपने भाई का रखवाला हूँ?” यह कहना ऐसा कहने के समान है कि मेरा उसके साथ कोई संबंध नहीं है, मैं उसे नहीं पहचानता हूँ। इस प्रकार की आध्यात्मिक अनाथपन कैंसर के समान है जो चुपचाप आत्मा को खा जाती है। इस तरह हम अपने में खोखले होते जाते हैं क्योंकि हम किसी से संबंध नहीं रखते और हम से कोई संबंध नहीं रखता है। यह हमें धरती के अगल कर देती है क्योंकि हमारा संबंध हमारी मातृभूमि से नहीं होता है। हम ईश्वर से अगल हो जाते क्योंकि हमारा उनके साथ कोई संबंध नहीं रह जाता है और अनंत में हम अपने आप से अगल हो जाते हैं क्योंकि हम अपने को भूल जाते हैं कि हम कौन हैं इस तरह “दिव्य परिवार” से हमारा नाता टूट जाता है। इस प्रकार हमारे संबंध का टूटना हमारे जीवन में उदासी और अकेलेपन का कारण बनती है। हमारे जीवन में भौतिक निकटता का अभाव हमारे दिल को जलती है जिसके कारण हम जीवन की कोमलता, प्रेम और अपनी अद्वितीयता को खो देते हैं। आध्यात्मिक अनाथपन के कारण हम भूल जाते हैं कि बच्चे, नानी-पोते, माता-पिता, दादा-दादी, मित्र और विश्वासी होने का क्या मतलब होता है। यह हमारे जीवन से हमारे गाने बजाने,  हँसने, आराम करने और कृतज्ञता के मनोभावों को छीन ले जाती है।

संत पापा ने कहा कि माता मरियम का यह त्योहार हमें पुनः मुस्कुराने में मदद करता है क्योंकि हम यह एहसास करते हैं हमारा संबंध परिवार से है जहाँ हम एक “वातावरण” और “अपनेपन” की एक समुदायिक स्थिति तैयार करते हैं। यह त्योहार हमें इस बात की याद दिलाती है कि हम कोई पारस्परिक विनिमय की चीज, वस्तु या सूचना तंत्र नहीं हैं। हम परिवार और ईश्वर के बच्चे हैं।

यह पर्व हमें हमारे सामान्य निवास स्थल की देख-रेख हेतु प्रेरित करता है जिसके द्वारा एक दूसरे के साथ अपने संबंध को देखते और शहरों में अपनापन का अनुभव करते तथा समुदाय का अंग बनते जो हमारी सहायता करता है।

येसु ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में अपने साथ कुछ रखना नहीं चाहा और इस तरह अपने जीवन की आहुति के साथ-साथ उन्होंने अपनी माता को भी हमारे लिए दे दिया। उन्होंने अपनी माता से कहा, “देखिए, यह आप का सुपुत्र है ये आप के बच्चे हैं।” हम माता मरियम को अपने दिल में, अपने परिवार में, अपने समुदाय और देश में रखना चाहते हैं। हम उनकी ममतामयी नज़रों के द्वारा निहारे जाना चाहते हैं जो हमें अनाथ होने से मुक्त करते हुए यह याद दिलाती है कि हम भाई-बहनों के रुप में एक शरीर के अंग हैं। उनकी नजरें हमारे जीवन को करुणापूर्ण ढ़ग से देख-रेख करने हेतु मदद करती है जैसा कि उन्होंने स्वयं आशा, एकता और भातृत्व के बीज बोते हुए किया।

आज का त्योहार हमें इस बात की याद दिलाती है कि हमारी एक माता है। हम अनाथ नहीं हैं। इस तरह संत पापा ने सबों का आहृवान करते हुए कहा कि हम एफेस्स के विश्वासियों की तरह एक साथ मिल कर अपने विश्वास की घोषणा करें “आप ईश्वर की पवित्र माता हैं।”  








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