2017-01-01 12:08:00

"चरनी का अर्थ है साक्षात्कार" सन्त पापा फ्राँसिस धन्यवाद ज्ञापन सन्देश में


वाटिकन सिटी, रविवार, 1 जनवरी 2017 (सेदोक): वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में सन्त पापा फ्राँसिस ने शनिवार 31 दिसम्बर को वर्ष के समापन पर धन्यवाद ज्ञापन की धर्मविधि के अवसर पर कहा कि येसु की चरनी का अर्थ है साक्षात्कार। 

"समय पूरा हो जाने पर ईश्वर ने अपने पुत्र को भेजा। वह एक नारी से उत्पन्न हुए और संहिता के अधीन रहे, जिससे वह संहिता के अधीन रहनेवालों को छुड़ा सकें और हम ईश्वर के दत्तक पुत्र बन जायें" (गला. 4:4-5)       

गलातियों को प्रेषित सन्त पौल के पत्र से इन शब्दों को उद्धृत कर सन्त पापा ने अपना प्रवचन आरम्भ किया। उन्होंने कहा कि सन्त पौल के ये शब्द अत्यधिक शक्तिशाली शब्द हैं जो हमारे लिये ईश योजना की प्रस्तावना करते हैं, वे चाहते हैं कि हम ईश सन्तान रूप में जीवन व्यतीत करें।

सन्त पापा ने कहा कि सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह कि ईश्वर ने मुक्ति योजना को एक कमज़ोर, नन्हें और नवजात शिशु में सम्पादित किया। उन्होंने देहधारण किया और हमारी कमज़ोरियों को अपने ऊपर लिया। ईश्वर ने येसु ख्रीस्त में मानव का मुखौटा नहीं धारण किया बल्कि वे स्वयं मानव बने और पूरी तरह हमारी मानवीय स्थिति में भागीदार बने। उन्होंने कहा, "येसु का देहधारण कोई विचार अथवा कोई भावात्मक सार मात्र नहीं है, उन्होंने हमारे निकट उपस्थित होना चाहा, उन सबके समीप जो स्वतः को खो चुके, अपमानित, हतोत्साहित, गमगीन एवं भयभीत महसूस करते हैं।"

गऊशाले में जन्म लेनेवाले मुक्तिदाता ईश्वर की ओर अभिमुख होते हुए सन्त पापा ने कहा, "चरनी हमें आमंत्रित करती है कि हम इस दिव्य "तर्क" को हमारा अपना तर्क बनायें। यह विशेषाधिकार, छूट अथवा एहसानों पर केन्द्रित तर्क नहीं हैं अपितु यह साक्षात्कार एवं समीप्य पर केन्द्रित तर्क है। चरनी हमें आमंत्रित करती है कि कुछ के लिये अपवाद और अन्यों के लिये बहिष्कार के तर्क का हम सदा के लिये परित्याग कर दें।" 

उन्होंने कहा, "चरनी में लेटे और कपड़ों में लिपटे बालक येसु ईश्वर की दया को प्रकट करते तथा प्रत्येक मनुष्य की प्रतिष्ठा को दैदीप्यमान बनाते हैं। बालक येसु ईश वरदान सहित हमारे बीच प्रकट होते हैं। ऐसा वरदान जो हमें साक्षात्कार की संस्कृति की रचना हेतु सुअवसर एवं ख़मीर प्रदान करता है।"     

इस तथ्य पर बल देते हुए कि ईश्वर के बिना मानव अस्तित्व अर्थहीन है तथा प्रत्येक को ईश्वर की ज़रूरत है, सन्त पापा ने कहा, "बेथलेहेम के नन्हें बालक के समक्ष हमें यह स्वीकार करना चाहिये कि हम सब को ईश्वर की ज़रूरत है। ईश्वर ही आलोक प्रदान करते हैं अन्यथा हम संकीर्ण विचारधाराओं या अपने ही विचारों के क़ैदी बन जाते हैं। हमें ईश प्रकाश की आवश्यकता है जो हमें अपनी ग़लतियों को पहचानने का विवेक प्रदान करता तथा हमारे विफल प्रयासों से हममें बेहतर बनने की क्षमता को प्रेरित करता है। यह वह प्रकाश है जो हममें बारम्बार गिरने और फिर उठ जाने की शक्ति के प्रति साहसिक चेतना जागृत करता है।

सन्त पापा ने कहा, "इस वर्ष के समापन पर आइये हम सब चरनी के समक्ष तनिक रुकें तथा अपने जीवन एवं इतिहास में प्राप्त उदारता के हर संकेत के लिये प्रभु ईश्वर के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करें। ये उदारता के संकेत हमें उन लोगों के असंख्य कृत्यों में मिले हैं जिन्होंने चुपचाप हमारे लिये ख़तरों का सामना किया। हमारी कृतज्ञता कोई फलहीन विषाद अथवा अतीत की आदर्शवादी या खोखली स्मृति न हो अपितु व्यक्तिगत एवं सामुदायिक रचनात्मकता उत्पन्न करनेवाली एक जीवित स्मृति हो क्योंकि हम जानते हैं कि ईश्वर हमारे साथ हैं।"

सन्त पापा ने सभी को आमंत्रित किया कि वे चरनी के समक्ष नतमस्तक होवें तथा मनन-चिन्तन करें, उन्होंने कहा, "इस तथ्य पर हम चिन्तन करें कि व्यतीत वर्ष के दौरान किस तरह ईश्वर हमारे बीच उपस्थित रहें हैं तथा यह याद रखें कि प्रत्येक युग एवं प्रत्येक क्षण कृपाओँ एवं आशीषों को लेकर आता है।" 

अपना प्रवचन समाप्त करने से पूर्व सन्त पापा ने, विशेष रूप से, आज के युवाओं का स्मरण किया उन्होंने कहा कि मरियम एवं योसफ युवा थे जिन्होंने अपने समक्ष सभी दरवाज़ों को बन्द पाया किन्तु उनकी पीड़ा हमें युवाओं की सहायता हेतु प्रेरित करती है। उन्होंने कहा, "हमसे आग्रह किया जाता है कि हममें से प्रत्येक युवाओं की मदद का बीड़ा उठाये। उनकी मदद करे जिससे वे अपनी ही जन्मभूमि में उज्जवल भविष्य के निर्माण में सफल बन सकें। उनकी ताक़त, उनके मस्तिष्क की शक्ति तथा पूर्वजों के सपनों की साकार करने की उनकी क्षमताओं से हम स्वतः को वंचित न रखें। युवाओं के योग्य भविष्य का निर्माण केवल सबके एकीकरण से हो सकता है। ऐसा एकीकरण जो प्रत्येक को प्रतिष्ठापूर्ण रोज़गार उपलब्ध करा सके।"         

धन्यवाद ज्ञापन की धर्मविधि समापन के उपरान्त सन्त पापा फ्राँसिस ने सन्त पेत्रुस महागिरजाघर  के प्राँगण में प्रस्थापित गऊशाले की भेंट की। इस स्थल पर उन्होंने मौन प्रार्थना अर्पित की तथा उपस्थित तीर्थयात्रियों का अभिवादन किया।








All the contents on this site are copyrighted ©.