2016-12-25 12:01:00

रोम शहर और विश्व के नाम सन्त पापा फ्राँसिस का क्रिसमस सन्देश


वाटिकन सिटी, रविवार, 25 दिसम्बर सन् 2016 (सेदोक): वाटिकन रेडियो के सभी श्रोताओं को ख्रीस्तजयन्ती महापर्व, क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ। प्रभु ईश्वर आप सबको,  आपके परिजनों, मित्रों और सभी शुभचिन्तकों को अपने प्रेम एवं शान्ति से परिपूर्ण कर दें।

ख्रीस्तजयन्ती महापर्व के उपलक्ष्य में, श्रोताओ, आज के प्रसारण में हम प्रस्तुत कर रहे हैं, रोम शहर एवं विश्व के नाम, काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष, सन्त पापा फ्राँसिस का सन्देश...

"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, ख्रीस्तजयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ!

आज, चरनी में लेटे नवजात शिशु येसु और उद्धारकर्त्ता पर चिन्तन कर, कलीसिया एक बार फिर कुँवारी मरियम, सन्त योसफ तथा बेथलेहेम के चरवाहों के आश्चर्य की गहन अनुभूति प्राप्त करती है।

प्रकाश से परिपूर्ण इस दिवस पर यह नबूवती घोषणा सर्वत्र गुँजायमान हैः

"हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ है, हमको एक पुत्र मिला है। उसके कन्धों पर राज्याधिकार रखा गया है और उसका नाम होगा – अपूर्व परामर्शदाता, शक्तिशाली ईश्वर, शाश्वत पिता, शान्ति का राजा" (इसायाह 9:5)।    

इसायाह के ग्रन्थ के नवें अध्याय के पाँचवे पद के उक्त शब्दों का उच्चार कर सन्त पापा फ्राँसिस ने अपना क्रिसमस सन्देश आरम्भ कियाः

उन्होंने कहा, "ईश्वर के पुत्र एवं मरियम के पुत्र, इस बालक की शक्ति, बल और धन पर आधारित इस संसार की शक्ति नहीं है; अपितु यह प्रेम की शक्ति है। वह शक्ति है जिसने स्वर्ग और पृथ्वी का सृजन किया और जो प्रत्येक प्राणी को जीवन प्रदान करती हैः खनिज, पौधों एवं पशुओं को; यह वह शक्ति है जो स्त्री पुरुषों को आकर्षित करती तथा उन्हें एक शरीर, एक अकेले अस्तित्व में परिणत कर देती है; यह वह शक्ति है जो नवजीवन का संचार करती, दोष क्षमा कर देती, शत्रुओं का पुनर्मिलन कराती तथा बुराई को भलाई में रूपान्तरित कर देती है। यह ईश्वर की शक्ति है। प्रेम की इसी शक्ति ने प्रभु येसु ख्रीस्त को उनकी महिमा का परित्याग कर मानव रूप धारण करने के लिये प्रेरित किया तथा उन्हें क्रूस तक ले गई ताकि वे मुर्दों में से पुनर्जीवित उठें। यह सेवा की शक्ति है जो इस विश्व में ईश राज्य की स्थापना करती है, न्याय और शांति के राज्य की। इसीलिये येसु का जन्म स्वर्गदूतों के गीत के साथ हुआ जो उदघोषणा करते हैं: "स्वर्ग में प्रभु की महिमा और पृथ्वी पर उसके कृपा पात्रों को शांति" (लूकस 2:14)।"    

सन्त पापा ने कहा, "आज यह घोषणा पृथ्वी के ओर-छोर सब लोगों तक पहुँच रही है, विशेष रूप से, युद्ध एवं कठोर संघर्षों से आहत लोगों तक जो अपने दिलों की गहराइयों में शांति की तड़प लिये हुए हैं।"  

उन्होंने कहा, "युद्ध से पीड़ित सिरिया के स्त्रियों एवं पुरुषों को शांति मिले जहाँ बहुत अधिक रक्त बहाया जा चुका है। विशेष रूप से, आलेप्पो शहर को जो हाल के सप्ताहों में नृशंस लड़ाइयों का रंगमंच बना है। यह पहले से कहीं अधिक अनिवार्य हो गया है कि मानवाधिकारों का सम्मान करते हुए युद्ध से थक चुके नागरिकों को हर प्रकार की सहायता एवं सान्तवना की गारंटी दी जाये। अब समय आ गया है कि निश्चित्त रूप से हथियार मौन हो जायें तथा अन्तरराष्ट्रीय समुदाय बातचीत के जरिए, सक्रिय रूप से, समाधान की तलाश का प्रयास करे जिससे देश में नागरिकों के सह-अस्तित्व की बहाली हो सके।" 

इस्राएल एवं फिलीस्तीनी क्षेत्रों तथा सम्पूर्ण मध्यपूर्व के देशों में शांति की आर्त याचना करते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने आगे कहा, "प्रिय एवं ईश्वर की चुनी हुई पवित्र भूमि की महिलाओं एवं पुरुषों को शांति। इस्राएलियों एवं फिलीस्तीन के लोगों को इतिहास का एक नया पृष्ठ लिखने का संकल्प एवं साहस मिले जिससे घृणा एवं प्रतिशोध के स्थान पर एक साथ मिलकर परस्पर समझदारी एवं सामंजस्य से परिपूर्ण भविष्य का निर्माण करने की इच्छा प्रबल हो सके। युद्ध एवं क्रूर आतंकवादी कृत्यों से पीड़ित ईराक, लिबिया तथा यमन में एकता एवं मैत्री की स्थापना हो सके।"

अफ्रीका के प्रति अभिमुख होकर उन्होंने कहा, "अफ्रीका के विभिन्न क्षेत्रों में स्त्री-पुरुषों को शांति, विशेष रूप से, नाईजिरिया में जहाँ कट्टरपंथी आतंकवाद भय एवं मौत फैलाने के लिये बच्चों का शोषण करता है। दक्षिणी सूडान एवं कॉन्गो प्रजातांत्रिक गणतंत्र में शांति ताकि विभाजनों को दूर किया जाये तथा शुभेच्छा रखने वाले सभी लोग संघर्ष की तर्कणा का परित्याग कर वार्ताओं की संस्कृति का चयन करते हुए विकास एवं सहभागिता का मार्ग अपनायें।"        

यूक्रेन एवं लातीनी अमरीका के देशों के लिये उन्होंने इस तरह मंगलकामना की, "पूर्वी यूक्रेन के संघर्ष के परिणाम भुगतनेवाले स्त्री-पुरुषों को शांति मिले, जहाँ जनता को राहत दिलवाने तथा प्रतिबद्धताओं को लागू करने के लिये सामान्य संकल्प की नितान्त आवश्यकता है। कोलोम्बिया की प्रिय जनता के बीच हम मैत्री की याचना करते हैं जो वार्ताओं और पुनर्मिलन के साहसिक पथ पर आगे बढ़ने की मंशा रखती है। इसी साहस का संचार प्रिय वेनेज़ुएला में भी हो जिससे वह भी सामयिक तनावों को समाप्त करने हेतु उपयुक्त कदम उठा सके तथा एक साथ मिलकर देश की समस्त जनता के लिये आशा के भविष्य का निर्माण कर सके।"   

एशियाई राष्ट्रों के प्रति अभिमुख होते हुए सन्त पापा ने आगे कहा, "विश्व के उन विभिन्न भागों में शांति जहाँ लोग अनवरत धमकियों एवं अन्याय का सामना कर रहे हैं। मेरी मंगलकामना है कि  अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की मदद से, शांतिपूर्ण सहअस्तित्व हेतु म्यानमार के प्रयास सफल हों जिससे ज़रूरतमन्दों को आवश्यक सुरक्षा एवं मानवता वादी सहायता उपलब्ध कराई जा सके। तनावों को अभिभूत कर कोरियाई प्रायद्वीप में सहयोग एवं समन्वय की नवीकृत भावना जागृत होवे। 

उन्होंने आगे कहा, "उन सब लोगों में शांति जिन्होंने आतंकवाद के जघन्य कृत्यों में अपने किसी प्रिय जन को खो दिया है, इन क्रूर कृत्यों ने कई देशों एवं शहरों के अन्तर में भय एवं मृत्यु के बीज आरोपित किये हैं। शांति की मंगलकामना – मात्र शब्दों में नहीं अपितु व्यावहारिक एवं ठोस रूप से – हमारे उन भाइयों एवं बहनों के लिये जिन्हें परित्यक्त एवं बहिष्कृत छोड़ दिया गया है, उन लोगों के लिये जो भूखे हैं और वे लोग जो हिंसा के शिकार हैं। शरणार्थियों एवं आप्रवासियों तथा उन सभी लोगों के लिये शांति की मंगलकामना जो मानव तस्करी के शिकार हैं। शांति उन लोगों को जो कुछ लोगों की आर्थिक महत्वाकाँक्षा एवं धन के देवता का लालच करनेवालों के कारण पीड़ित हैं जो दासता की ओर ले जाता है। उन समस्त लोगों को शांति जो सामाजिक एवं आर्थिक संकट से चिह्नित हैं तथा उन लोगों को जो भूकम्प अथवा अन्य प्राकृतिक आपदाओं के परिणामस्वरूप पीड़ित हैं।"   

बच्चों के लिये विशेष प्रार्थना करते हुए सन्त पापा ने कहा, "इस विशिष्ट दिन पर जब ईश्वर ने स्वयं एक बालक का रूप धारण किया विश्व के समस्त बच्चों को शांति, विशेष रूप से उन बच्चों को जो क्षुधा, युद्ध तथा वयस्कों के अहंकार के कारण बाल्यकाल के आनन्द से वंचित हैं।"     

अन्त में मंगलकामना व्यक्त करते हुए सन्त पापा ने कहा, "पृथ्वी के सभी शुभ चिन्तकों को शांति, उन लोगों को जो इस विश्वास से प्रेरित होकर कि केवल शांति से ही एक समृद्ध भविष्य की आशा की जा सकती है, प्रतिदिन, विवेक एवं धैर्य के साथ, परिवार में और समाज में, मानवीय एवं न्यायसंगत विश्व की रचना हेतु काम करते हैं।

अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, "हमारे लिये एक बालक का जन्म हुआ है, हमें एक पुत्र मिला है: जो हैं, शांति के राजकुमार, आइये हम सब मिलकर उनका स्वागत करें।"  

इन शब्दों से रोम शहर एवं विश्व के नाम अपना क्रिसमस सन्देश समाप्त कर सन्त पापा फ्राँसिस ने सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

तदोपरान्त प्राँगण में उपस्थित लोगों से सन्त पापा ने कहा, "आप के प्रति, प्रिय भाइयो एवं बहनो, तथा विश्व के विभिन्न भागों से इस प्राँगण में पहुँचे, और साथ ही रेडियो, टेलेविज़न एवं अन्य सम्प्रेषण माध्यमों द्वारा जुड़े विश्व के समस्त लोगों के प्रति मैं हार्दिक शुभकामनाएँ व्यक्त करता हूँ। हर्षोल्लास के इस दिन में हम सब शिशु येसु पर चिन्तन के लिये आमंत्रित हैं जो इस पृथ्वी के प्रत्येक व्यक्ति के लिये आशा की पुनर्स्थापना करते हैं। उनकी कृपा से, एकात्मता एवं शांति का साक्ष्य प्रदान करते हुए हम इस आशा को मूर्तरूप प्रदान करें। आप सबको क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ!"








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