2016-12-22 16:08:00

परमधर्माध्यक्षीय रोमी कार्यालय हेतु संत पापा का मार्गदर्शन


वाटिकन रेडियो, गुरुवार, 22 दिसम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने गुरुवार को परमधर्माध्यक्षीय रोमी कार्यालय के अधिकारियों को ख्रीस्त जयंती की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए परमधर्माध्यक्षीय रोमी कार्यालय में परिवर्तन और जारी एक नवीनतम प्रक्रिया के प्रारूप को स्वीकार करने का संदेश दिया।

उन्होंने कहा कि ख्रीस्त जयंती के इस काल में हम विश्वास के साथ ईश्वर के नम्र प्रेम को “हाँ” कहने हेतु बुलाये जाते हैं। ईश्वर का नम्र प्रेम हमारी तर्कपूर्ण आशाओं को छिन-भिन्न कर देता है जिससे वह हमारे जीवन और कार्य में संतुलन की स्थापित कर सकें।

संत पापा ने परमधर्माध्यक्षीय रोमी कार्यालय में किये परिवर्तन और जारी नये प्रक्रिया के संबंध में कहा कि यह अफसरशाही अपरिवर्तनीय तंत्र नहीं वरन यह परिवर्तन जीवन का एकप्रतीक है जो कलीसिया को एक तीर्थ के रुप में आगे ले चलता है क्योंकि कलीसिया अपने में सजीव है।

उन्होंने कहा कि यह परिवर्तन हमें ईश्वर के सुसमाचार को आनंद पूर्वक घोषित करने हेतु एक उचित अंग बनाता है जिसके हम विशेषकर गरीबों, समाज में परित्यक्त और सबसे निचले स्तर के लोगों की सेवा साहस पूर्ण ढ़ग से कर सकें। उन्होंने रोमी कार्यालय पर किये गये परिवर्तन और नवीकरण पर जोर देते हुए कहा कि यह परिवर्तन लोगों के स्थान्तरण पर नहीं वरन लोगों की सोच और विचार में स्थायी परिवर्तन लाने पर निहित है क्योंकि अपनी मानसिकता बदले बिना हम कार्य विकास की बात नहीं सोच सकते हैं।

परिवर्तन में रुकावट के बारे में उन्होंने कहा कि यह लाभप्रद है बशर्ते की इसमें कोई कुविचार छुपी न हो। रुकावट का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि परिवर्तन का खुला विरोध “ख्याति और सच्ची वार्ता” से उत्पन्न होती है, कठोर विरोध “ हृदय की कठोरता जिसमें स्वार्थ पूर्णविचार और आत्मसंतुष्टि आध्यात्मिक” की बात को दिखलाती जबकि बुरे विरोध में हम विचारों की नसमझी और शैतान के बुरे विचारों से प्रभावित किये जाते हैं जिसके परिणाम स्वरुप हम अपनी सफाई देते और बहुधा दूसरों पर दोषारोपण करते हैं।

संत पापा ने नवीकरण के बराह बिन्दूओं - व्यक्तिगत जिम्मेदारी (व्यक्तिगत परिवर्तन), प्रेरितिक  चिंतन, मिशनरी भावना, बेहतर संगठन, बेहतर कामकाज, आधुनिकीकरण, संयम, पूरकता, धर्माध्याक्षीय सभा, काथलिक कलीसिया, व्यावसायिकता और आत्मानिरिक्षण पर जैसे बिन्दुओं की चर्चा की और ईश्वर की नम्र प्रेम को स्वीकरने करने का निमंत्रण देते हुए पूरोहित मत्ता एल मेसकिन की प्रार्थना द्वारा अपने संदेश का समापन किया। 








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