2016-12-21 16:49:00

आशा का संदेश, संत पापा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 21 दिसम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्म शिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो

सुप्रभात,

हमने आशा पर अपनी धर्मशिमा माला की शुरूआत की है जो आगमन काल की एक यथोचित विषयवस्तु है। इस विषय पर नबी इसायस हमारा मार्गदर्शन करते हैं। हम ख्रीस्त जयंती का त्योहार कुछ ही दिनों बाद मनाने वाले हैं अतः आज मैं विशेष रूप से उस आशा के बारे में आप के साथ चिंतन करना चाहूँगा जो शरीरधारण कर मानव समाज का अंग बना। नबी इसायस ने इसकी भविष्यवाणी की थी, “देखो एक कुंवारी गर्भवती होगी और पुत्र प्रसाव करेगी, जिसका नाम इम्मानुएय रखा जायेगा। (7,14) और “येशे के धड़ से एक टहनी निकलेगी, उसकी जड़ से एक अंकुर फूटेगा।”(11.1) इन दोनों बातों में हमें ख्रीस्त जयंती की झलक मिलती है जहाँ ईश्वर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हैं, वे अपने लोगों को नहीं छोड़ते हैं। इस तरह ईश्वर अपनी निष्ठा में नये राज्य की स्थापना करते हैं जो हमें अनंत जीवन की एक नई आशा प्रदान करती है।

जब कभी हम आशा की चर्चा करते हैं तो यह एक अदृश्य स्थिति की ओर हमारा ध्यान इंगित करती है जिसे हम अपने जीवन में नहीं पाते हैं। वास्तव में हमारी आशा हमारे सोच-विचार की शक्ति से परे जाती है। येसु ख्रीस्त मानव की मुक्ति हेतु दुनिया में आये हमें एक दूसरी आशा के बारे में कहता है जो एक विश्वसनीय, दृश्य और समझने वाली आशा है क्योंकि यह ईश्वर के द्वारा स्थापित की जाती है। वे दुनिया में प्रवेश करते और हमें अपनी शक्ति प्रदान करते हैं जिससे हम उनके साथ अनंत जीवन में प्रवेश कर सकें और जीवन में अपनी थकान के बावजूद उनके साथ नवीनता में बने रहें। अतः ख्रीस्त जयंती का अर्थ हमारे लिए येसु के साथ पिता में बने रहना है जो हमारी प्रतीक्षा करते हैं। यह आशा हमारे जीवन में खत्म नहीं होती बल्कि हमें सदैव अपने जीवन में आगे बढ़ने हेतु बल देती है। बेतलेहेम के बालक में हमारे लिए यह आशा एक लक्ष्य प्रदान करती है जो मानव की मुक्ति, एक अनंत आनन्द है जो विशेष कर ईश्वर की करुणा में बने रहने वालों को प्राप्त होती है। संत पौलुस अपने निचोड़ शब्दों में इसे, “आशा में हमारी मुक्ति” की संज्ञा देते हैं।(रोमि. 8.24)। दुनिया में आशा के साथ चलते हुए हम मुक्ति प्राप्त करते हैं। यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम आशा में बने रहते हुए ईश्वर के साथ चलना चाहते हैं या नहीं।

संत पापा ने कहा कि हम ख्रीस्त जयंती की तैयारी में अपने घरों में चरनी का निर्माण कर रहें हैं जो आसीसी के संत फ्रांसिस काल से प्रचलित है। चरनी अपनी सरलता में हमें आशा से भर देती है क्योंकि इसके इर्दगिर्द रहने वाले सभी अपने को आशा से सराबोर पाते हैं।

सर्वप्रथम हम येसु के जन्म स्थल बेतलेहेम पर चिंतन करते हैं। यह यूदा का एक छोटा गाँव है जहाँ हजारों वर्ष पूर्व दाऊद का जन्म हुआ था। वह एक गरेड़िया था जो ईश्वर के द्वारा चुना गया जिससे वह इस्राएलियों का राजा बने। बेतलेहेम कोई बड़ा शहर नहीं है वरन यह एक छोटी नगरी है जो ईश्वर की नज़रों में चुनी गई है जो नम्रता और सरलता को हमारे लिए व्यक्त करती है। इस छोटे नगर में “दाऊद के पुत्र” येसु का जन्म होता है जिसमें ईश्वर और मनुष्य की आशा टिकी हुई है, जिसके लिए एक लम्बी प्रतीक्षा की जाती है।

हम माता मरिया की ओर देखें जो आशा की माँ है। उनके “हाँ” के द्वारा ईश्वर ने हमारे द्वारों को खोल दिया है। उनका हृदय विश्वास के कारण आशा से परिपूर्ण था और इसीलिए ईश्वर ने उन्हें चुना क्योंकि उन्होंने ईश्वर के वचनों में विश्वास किया। वह नौ महीने तक ईश्वर के नये विधान का पात्र बनी रही और गुफा में येसु को जन्म दिया और उनमें ईश्वर के प्रेम को देखा जो अपने लोगों और सारी मानव जाति को बचाने हेतु आते हैं। योसेफ जो येशे और दाऊद के वंश के हैं उन्होंने भी स्वर्गदूत के वचनों पर विश्वास किया और येसु को चरनी में देखते हुए पवित्र आत्मा के कार्यों पर चिंतन किया कि ईश्वर ने बालक का नाम “येसु” रखने का निर्देश दिया है। इस नाम में प्रत्येक मानव के लिए आशा है क्योंकि नारी के पुत्र द्वारा ईश्वर मानव जाति को पाप और मृत्यु से बचायेंगे।

चरनी के पास हम चरवाहों को देखते हैं जो गरीब दीन दुखियों का प्रतिनिधित्व करते और मुक्तिदाता के आने की राह देखते हैं जो “इस्रराएलियों की सांत्वना” (लूका.2.25) और “येरुसलेम की मुक्ति” (लूका.2.38) है। उस बालक में वे ईश्वर की प्रतिज्ञा और आशा को देखते और अनुभव करते हैं। संत पापा ने कहा कि जो भौतिक वस्तुओं पर अपनी सुरक्षा की कामना करता है वह मुक्ति की प्रतीक्षा नहीं करता है। हम इस बात को याद रखें कि हमारी भौतिक सुरक्षा की वस्तुएँ हमें नहीं बचायेंगी, वरन केवल येसु में हमारी आशा ही हमें सुरक्षित रखेगी। येसु में हमारी आशा हमें बचाती है क्योंकि यह मजबूत है जो हमें अनंत खुशी की प्राप्ति हेतु आनंद के साथ दूसरों की सेवा करते हुए जीवन जीने को प्रेरित करती है। दीन-हीन चरवाहों ने ईश्वर पर विश्वास किया और स्वर्गदूत के संदेशानुसार बालक को देख कर आनंदित हुए। (लूका.2.12)

स्वर्गदूतों की सेना ईश्वर का महिमा गान गाते हैं, “सर्वोच्च स्वर्ग में ईश्वर की महिमा प्रकट हो, और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शांति मिले।” (लूका.2.14) ख्रीस्तीय आशा की अभिव्यक्ति ईश्वर की महिमा और कृतज्ञता में होती है क्योंकि उन्होंने प्रेम, न्याय और शांति का राज्य स्थापित करने की पहल की है।

संत पापा ने कहा प्रिय भाइयो और बहनों इन दिनों हम चरनी पर मनन करते हुए ख्रीस्त जयंती की तैयारी करें। हमारे लिए यह सही अर्थ में त्योहार तब होगा यदि हम येसु को अपने व्यक्तिगत जीवन और अपने समुदाय के इतिहास की आशा के रुप में स्वीकार करेंगे। येसु के लिए हमारा प्रत्येक “हाँ” आशा की कली बनती है। हम आशा में विश्वास करें, “येसु हमें बचा सकते हैं, वे हमें बचा सकते हैं।”

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और उन्हें आशा में बने रहने की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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