2016-12-19 16:01:00

ख्रीस्त के आगमन पर संदेश


वाटिकन सिटी, रोमवार, 12 दिसम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पेत्रुस के प्रांगण में जमा सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को आगमन के चौथे रविवार  पर अपना संदेश देते हुए कहा, प्रिय भाइयो एव बहनो,

सुप्रभात

आगमन के चौथे रविवार की धर्मविधि के पाठ ईश्वर का मानव जाति के साथ एक निकटतम संबंध की चर्चा करते हैं। संत मत्ती रचित आज का सुसमाचार (1.18-24) मरियम और योसेफ के बारे में जिक्र करता है जो प्रेम के रहस्य में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। प्रेम का यह रहस्य ईश्वर का मानव समाज के साथ एक अति निकट संबंध को दिखलाता है। स्वर्ग दूत द्वारा योसेफ को स्वप्न में दिये गये संदेश में भविष्यवाणी की जाती है, “देखो एक कुंवारी गर्भवती होगी और पुत्र प्रसव करेगी।” (23) संत मत्ती इस बात से वाकिफ हैं कि मरियम के साथ क्या हुआ, उन्होंने पवित्र आत्मा के द्वारा येसु को अपने देह में धारण किया है।(18) ईश्वर का पुत्र मानव के रुप में आने वाले हैं और मरियम उनका स्वगत करने हेतु तैयार है। इस तरह हम देखते हैं कि ईश्वर एक अनोखे रूप में मानव शारीर धारण करते और एक कुंवारी के द्वारा दुनिया में आने को तैयार होते हैं।

संत पापा ने कहा कि ईश्वर हमारे जीवन में भी विभिन्न रुपों में आते हैं और अपने बेटे के द्वारा हमें कई प्रकार के वरदानों से विभूषित करते हैं। हम अपने जीवन में उनका स्वागत कैसे करते हैं? क्या हम उन्हें अपने जीवन के करीब आने देते यहाँ उन्हें अस्वीकार कर देते हैं? मरियम अपनी स्वतंत्रता में अपने को ईश्वर के लिए सौंप देती है जिस के द्वारा वे मानव इतिहास को बदल देते हैं। ठीक उसी तरह यदि हम येसु को अपने जीवन में स्वीकारते और प्रतिदिन उनका अनुसरण करते तो हम उनके विधान में अपना हाथ बंटाते और अपनी तथा दुनिया की मुक्ति हेतु ईश्वर के साथ मिलकर कार्य करते हैं। मरियम इस तरह हमारे लिए एक आदर्श बनती है जो अपने जीवन में ईश्वर की ओर नजरें उठाती और उनकी कृपा पर आसरित रहती है। जब हम भी उनकी तरह ईश्वर की खोज करते हुए उनके सानिध्य में बने रहते हैं तो हम ईश्वर को अपने जीवन में प्रवेश करने की अनुमति देते और वे हमें अपने प्रेम का स्रोत बनाते हैं।

संत पापा ने कहा कि सुसमाचार में दूसरा नायक संत योसेफ है। संत मत्ती इस बात की चर्चा करते हैं कि संत योसेफ उन बातों को अपने जीवन में समझ नहीं पाते जिन्हें वे अपनी आंखों के सामने घटित होते हुए देखते हैं। वे अपने को संदेह, विस्मय और वेदना की स्थिति में पाते हैं और ऐसी स्थिति में ईश्वर उनके लिए अपना दूत भेजकर उनके हृदय में हो रहे संदेह और दुविधा को दूर करते हुए इस बात को सुस्पष्ट करते हैं कि मरियम का मातृत्व किस तरह का है, “उनके जो गर्भ हैं वह पवित्र आत्मा से है।” (20) ये सारी असाधारण घटनाएं उनके जेहन में सवालों का एक सैलाब लेकर आता है और ऐसी परिस्थिति में वह अपने जीवन को ईश्वर के हाथों समर्पित करते हुए ईश्वर के निमंत्रण को स्वीकारते और अपनी पत्नी मरियम को अपने घर लेकर आते हैं।  मरियम को अपने यहाँ लाने के द्वारा वे प्रत्यक्ष रुप से ईश्वर के आश्चर्यजनक कार्य को अपने जीवन में स्वीकार करते हैं क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। योसेफ नम्र और धर्मी व्यक्ति के रुप में हमें यह शिक्षा देते हैं कि हमें कैसे ईश्वर पर विश्वास करना चाहिए। जब हम विश्वास में अपने को ईश्वर के पास लाते और उन्हें अपना जीवन सौंप देते हैं तो हम अपने को उनके निकट पाते हैं। वे हमें इस बात की शिक्षा देते हैं कि आज्ञाकारिता में हम अपने को उनके द्वारा संचालित होने देना हैं।  

संत पापा ने कहा कि मरियम और योसेफ जिन्होंने सर्वप्रथम येसु को अपने विश्वास में स्वीकारते जो हमें ख्रीस्त जयंती के रहस्य का परिचय देता है। मरियम हमें इस बात हेतु सहायता करती है कि हम अपनी तत्परता पूर्ण स्वभाव में ईश्वर के पुत्र येसु ख्रीस्त को अपने जीवन में स्वागत करने हेतु तैयार रहे जो मानव के रुप में हमारे जीवन में आते हैं। संत योसेफ हमें इस बात हेतु प्रोत्साहित करते हैं हम सदैव अपने जीवन में ईश्वरीय इच्छा की खोज करें और विश्वास के साथ उनका अनुपालन करें। ये दोनों हमें ईश्वर के करीब लाते हैं। “देखो एक कुंवारी गर्भवती होगी और पुत्र प्रसव करेगी जिसका नाम येसु इम्मनुएल रखा जायेगा, जिसका अर्थ है ईश्वर हमारे साथ है।(मती.1.23) स्वर्गदूत इस बात को हमारे लिए स्पष्ट करते हैं कि ईश्वर के पुत्र का अर्थ ईश्वर स्वयं हमारे जीवन के करीब रहेंगे। संत पापा ने कहा कि जब हम अपने हृदय की गहराई में एक आवाज को सुनते और अपने जीवन के द्वार को ईश्वर के लिए खोलते, विशेष कर इस अनुभव के साथ कि ईश्वर हमें अन्यों के लिए अपने कामों को करने हेतु कहते हैं तो यह हमारी प्रार्थना बन जाती है। इस तरह ईश्वर हमारे जीवन में आते और हम अपने को उनके निकट पाते हैं। आशा की यह घोषणा हमारे लिए ख्रीस्त जयंती की पराकाष्ठा है जहाँ हम यह अनुभव करते हैं कि ईश्वर हमारे साथ और विश्व में उन लोगों के साथ हैं जो तुच्छ और परित्यक्त हैं क्योंकि वे हमें प्रेम करते और हमारे निकट रहना चाहते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा ने विश्वासी समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया और सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।  

देवदूत प्रार्थना के उपरान्त संत पापा फ्राँसिस ने सभी तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए प्रजातंत्र गणराज्य कोंगो हेतु प्रार्थना करने का आहृवान किया जिससे वहाँ युद्ध की रोकथाम हो और देश के विकास हेतु शांति कायम हो सके। उन्होंने संत प्रेत्रुस के प्रांगण में तैयार की गई चरनी के निर्माणताओं का शुक्रिया अदा किया। संत पापा ने आगामी रविवार को होने वाले ख्रीस्त जयंती की तैयारी के संदर्भ में लोगों का आह्वान करते हुए कहा कि हम अपने जीवन में थोड़ा मौन रहकर मरियम, योसेफ के जीवन पर मनन करें जो बेतलेहेम की यात्रा करते हैं। हम उनकी यात्रा, सराय में जगह खोजने की चिंता आदि बातों पर चिंतन करें। हम सच्चे ख्रीस्तमस, येसु के आगमन पर चिंतन करें जिससे हम ईश्वर के स्नेह, नम्रता और कोमलता जैसी कृपा को अपने जीवन में अनुभव कर सकें। 








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