2016-12-07 16:08:00

हम आशा में बने रहें, संत पापा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 07 दिसम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल 6वें सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्म शिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो

सुप्रभात,

आज हम अपनी धर्मशिक्षा माला की श्रृंखला के अन्तर्गत एक नई विषयवस्तु की शुरूआत करेंगे। वर्तमान परिवेश में हमें इसकी अत्यंत जरूरत है क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि हम अंधकार में पड़े हुए हैं, जहाँ हम अपने को और अपने भाई–बहनों को बुराइयों और हिंसा की एक दुःखद परिस्थिति में घिरे हुए पाते हैं। इस तरह हम अपने में हतोत्साह और असहाय अनुभव करते हैं क्योंकि हमें ऐसा लगता है कि इस अंधकार का अंत कभी नहीं होने वाला है।
लेकिन हम अपने को ईश्वर के आशा के अलग होने न दें क्योंकि ईश्वर अपने प्रेम में हमारे साथ चलते, वे हमें अकेले नहीं छोड़ते क्योंकि येसु ख्रीस्त बुराइयों पर विजय प्राप्त करते हुए हमारे लिए जीवन का मार्ग खोलते हैं।
आगमन का यह काल हमारे लिए प्रतीक्षा का समय है जहाँ हम शारीर धारण के रहस्य और ख्रीस्त के आगमन पर सांत्वना की पूर्ण ज्योति का स्वागत करने हेतु अपने को तैयार करते हैं अतः यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि हम आशा पर चिंतन करें। आइए हम येसु में अपनी आशा को बनाये रखने की शिक्षा ग्रहण करें और नबी इसायस के द्वितीय खण्ड से ईश्वर के वचनों को सुनें जो हमारे लिए आशा के एक बड़े संदेशवाहक हैं।

तुम्हारा ईश्वर यह कहता है,“मेरी प्रजा को सांत्वना दो, सांत्वना दो। येरुसालेम को ढारस बंधाओ  और पुकार कर उस से कहो कि उसकी विपत्ति के दिन समाप्त हो गये हैं और उसके पाप का प्रायश्चित्त हो चुका है। प्रभु-ईश्वर के हाथ से उसे सभी अपराधों का पूरा-पूरा दण्ड मिला चुका है।” यह आवाज आ रही है, “निर्जन प्रदेश में प्रभु का मार्ग तैयार करो। हमारे ईश्वर के लिए मैदान में रास्ता सीधा कर दो। हर एक घाटी भर दी जाये। हर एक पहाड़ और पहाड़ी समतल की जायें, खड़ी चट्टान को मैदान और कगार को घाटी बना दिया जाये। तब प्रभु-ईश्वर की महिमा प्रकट हो जायेगी और सब शरीरधारी उसे देखेंगे, क्योंकि प्रभु ने ऐसा ही कहा है।” (इसा. 40.1-2,3-5)

ईश्वर पिता अपने लोगों हेतु यह घोषणा करते हैं कि उन्हें दुःख-दर्द और पापों के मुक्ति मिल गई है। वे अपने लोगों को सांत्वना प्रदान करते हैं। यह दुःखी मन और भयभीत हृदयों को चंगाई प्रदान करता है। इसलिए नबी लोगों से अनुरोध कहते हैं कि वे ईश्वर के आगमन, उनके मुक्तिदायी कृपाओं को प्राप्त करने हेतु उनका मार्ग तैयार करें।
ईश्वर के लोगों के लिए सांत्वना की शुरूआत तब होती है जब वे उनके नये मार्ग में चलना शुरू करते हैं क्योंकि नबी उन लोगों को ईश्वर का संदेश सुनाते हैं जो बबीलोन की दुःखदायी दासता में पड़े हुए थे। उन्हें यह संदेश सुनाया जाता है कि वे अब अपने घरों को लौट सकते हैं। उनके वापस लौटने हेतु एक सुविधाजनक मार्ग तैयार किया गया है जहाँ घाटी, पहाड़ और पर्वत नहीं हैं जो उनकी यात्रा को थकान देह बनाती है। मरुभूमि में उनके लिए एक शानदार मार्ग तैयार किया गया  है। इस तरह मार्ग तैयार करने का अर्थ सभी मुसीबतों और ठोकरों से छुटकारा प्राप्त करते हुए मुक्ति के मार्ग को तैयार करना है।

संत पापा ने कहा कि बबीलोन की दासता इस्राएलियों के लिए एक कठिन समय था क्योंकि उन्होंने अपना सब कुछ खो दिया था। अपने घरों, अपनी स्वतंत्रता, सम्मान और यहाँ तक की ईश्वर पर अपना विश्वास खो चुके वे परित्यक्त और आशाहीन अनुभव करते हैं। इस परिस्थिति में नबी उनके बीच आते और लोगों के हृदय में आशा का दीप जलाते हैं। मरुभूमि वह स्थान है जहाँ जीवन यापन करना कठिन है लेकिन अब उस रास्ते से इस्राएली जनता न केवल अपने घरों को लेकिन ईश्वर की ओर आशा में मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ लौट सकते हैं।

जब हम कठिनाइयों का सामना करते तो हमारे जीवन से मुस्कान छिन जाती है लेकिन जब हम आशा में बने रहते हैं तो हमारी मुस्कान वापस आ जाती है क्योंकि हम ईश्वर के पास आने का रास्ता पा लेते हैं। वे जो ईश्वर से अपने को अलग कर लेते हैं उनके चेहरे से मुस्कान भी अगल हो जाती हैं। वे अपने जीवन में हंसी-मजाक भले ही कर लेते हों लेकिन उनमें मुस्कान का अभाव रहता है। मुस्कान हमारे लिए आशा का एक प्रतीक है जहाँ हम ईश्वर को अपने में पाने की चाह रखते हैं।

उन्होंने कहा कि जीवन हमारा बहुत बार मरुभूमि बन जाता है जहाँ हम चलने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। एक बच्चे के रुप में हम अपने को देखते तो हम बहुत सारी मुसीबतों को पाते हैं लेकिन हमारी मुसीबतों के बावजूद ईश्वर पर हमारी आशा हमारे जीवन में मुस्कान लेकर आती है। अतः जीवन की कठिनाइयों के बावजूद हमें आशा में बन रहने की जरूरत है क्योंकि आशा हमें ईश्वर से मिलाती है।

नबी इसायस के उन वचनों को योहन बपतिस्ता भी अपने उपदेश में प्रयोग करते हैं। “निर्जन प्रदेश में पुकारने वाले की आवाज, प्रभु का मार्ग तैयार करो। (मती. 3.3) यह एक आवाज है जो ऐसा प्रतीत होता है कि यह विश्वास की कमी और किंकर्त्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में उच्चारित किया जा रहा हो और जिसे कोई नहीं सुनता हो। हम इस बात को नकार नहीं सकते कि आज विश्व में विश्वास की कमी है। हम अपने को ख्रीस्त कहते हैं, संत पापा ने कहा, “मैं कहा हूँ कि मैं ईश्वर पर विश्वास करता हूँ, मैं एक ख्रीस्त हूँ, मैं ख्रीस्तीय समुदाय से ताल्लुक़ात रखता हूँ लेकिन हमारा जीवन ख्रीस्तीयों के समान नहीं होता है क्योंकि हम अपने ईश्वर से दूर रहते हैं।” इस तरह हमारा विश्वास वचनों तक ही सीमित हो कर रह जाता है जहाँ  हम शब्द मात्रा यह घोषित करते हैं कि, “मैं विश्वास करता हूँ”। आगमन का समय हमारे जीवन, अपने हृदय को बदले का है जहाँ ईश्वर हमारी प्रतीक्षा करते हैं। योहन बपतिस्ता येसु के आने की घोषणा में हमें एक बालक के समान बनाने का आहृवान करते हैं जिसके चेहरे में येसु से मुलाकात की खुशी होती है। योहन बपतिस्ता का इस्राएलियों को येसु की अगवानी हेतु दिया गया उपदेश ऐसा प्रतीत होता है कि वे अब तक गुलामी की स्थिति में हैं क्योंकि वे रोमी  साम्राज्य की दासता में, अपने ही देश में परदेशी का जीवन यापन करते क्योंकि शक्तिशाली उन पर हुकूमत चलाते हैं। लेकिन हमारे लिए सच्चाई यही है कि शक्तिशाली नहीं वरन ईश्वर हमारे जीवन का संचालन करते हैं। हमारे लिए सत्य यही है कि ईश्वर अपने बच्चों की देख-रेख करते हैं। ईश्वर मरियम, योसेफ, येसु और अपने बच्चों के साथ रहते हैं। हम जो अपने जीवन में जकारियस और एलिजबेद, कुंवारी मरियम, चरवाहे जो हेय की दृष्टि से देखे जाते थे, जब हम उनके समान नम्र और दीन बनते तो हम येसु को अपने बीच पाते हैं। छोटे लोग अपने विश्वास के कारण बड़े बनाये जाते हैं और वे अपनी आशा में मजबूत बने रहना जानते हैं। आशा बच्चों का गुण है लेकिन वे जो समृद्ध और भरे-पूरे हैं यह नहीं जानते की आशा क्या है।
संत पापा ने कहा कि हम जो प्रभु के आने की राह देख रहें हैं आइए हम आशा में बने रहें क्योंकि आशा हमें कभी हताश नहीं होने देती है। इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।




 








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