2016-12-02 15:02:00

पियरिस्ट धर्मबंधुओं के जयन्ती वर्ष पर संत पापा का संदेश


वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 2 दिसम्बर 2016 (वीआर सेदोक): पियरिस्ट धर्मबंधुओं के धर्मसमाज की स्थापना की 400वीं वर्षगाँठ तथा संत जोसेफ कालासान्स की संत घोषणा की 250वीं जयन्ती के अवसर पर संत पापा ने धर्मसमाज के शीर्ष अधिकारी फादर पेद्रो अग्वादो क्वेस्ता को एक पत्र प्रेषित कर सभी सदस्यों को बधाई दी।

उन्होंने पत्र में लिखा, ″इस आनन्दमय अवसर पर, मैं आपके बीच उपस्थित होना चाहता हूँ न केवल असाधारण इतिहास को मनाने के लिए किन्तु इसे उत्साह, समर्पण और आशा के साथ जारी रखने हेतु प्रोत्साहन देने के लिए क्योंकि ईश्वर की महिमा तथा हमारे पड़ोसियों की सेवा, इस आशा के साथ कि यद्यपि धर्मसमाज ऐसी परिस्थिति में उत्पन्न हुआ था जो आज नहीं है, आज भी मूल रूप से उसी तरह के प्रत्युत्तर की आवश्यक है। बच्चों एवं युवाओं के बीच धार्मिकता की रोटी बांटना, गरीबों की पुकार सुनना, समाज को सुसमाचार एवं येसु की शिक्षा के मूल्यों के अनुसार बदलने का प्रयास तथा उसे पूरे विश्व में सुसमाचार फैलाने की जरूरत है। 

संत पापा पौल पाँचवें ने 400 साल पहले यह महसूस किया था कि पवित्र आत्मा ने कालासान्ज़ के जोसेफ का नेतृत्व किया कि वे बच्चों की शिक्षा के लिए अपने को समर्पित करे जो रोम की सड़कों पर उन दिनों भटक रहे थे और जिसके कारण उन्होंने पायस स्कूल की स्थापना की।

संत पापा ने पायस स्कूल के द्वारा उनकी सेवा का अवलोकन करते हुए कहा कि चार सदियों तक इस स्कूल के मनोभाव में खुलापन बना रहा है। कालांतर में इसका विस्तार रोम से बाहर इटली के अन्य जगहों में भी हुआ। यह इटली ही नहीं यूरोप के कई देशों में और अंततः विश्व के कई हिस्सों में फैल गया जहाँ बच्चों के लिए काथलिक शिक्षा की आवश्यकता थी। इस प्रकार यह, शिक्षा के माध्यम से कलीसिया को अपनी महत्वपूर्ण सेवा दे रहा है।

संत पापा फ्राँसिस ने धर्मसमाज के सभी सदस्यों को निमंत्रण दिया कि वे इस जयन्ती वर्ष को ‘पियरिस्टों के नये पेंतेकोस्त’ की तरह मनायें। उन्होंने प्रार्थना की कि पीयरिस्ट स्कूल पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाए। ताकि विश्व में उन्हें जिस मिशन को आगे बढ़ाना है उसे एक साथ निर्भय होकर आगे ले सके।

संत पापा ने सदस्यों को उनके संस्थापक के शब्दों को स्मरण दिलाया जिसमें उन्होंने उस मिशन का सार बतलाया था जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया था, ″अति सम्मानित, अति सौम्यता, प्रशंसा के अति योग्य, हितकारी, अत्यन्त व्यवहारिक, बहुत आवश्यक, स्वभाव के मूल में, बहुत अधिक सराहनीय तथा अत्यधिक गौरवमय।″ संत पापा ने कहा कि ये शब्द अब भी मान्य हैं वास्तव में आज लाखों बच्चे, मानवीय स्वार्थ एवं लालच के कारण अपनी आकांक्षाओं एवं भविष्य की योजनाओं में सीमित, बड़े शहरों में उपेक्षित एवं शिक्षा सुविधा से वंचित हैं। हज़ारों बच्चे युद्ध के कारण अपने घर एवं स्कूल से बाहर हैं। उन सभी बच्चों को सच्चे शिक्षकों की आवश्यकता है जो उन्हें ख्रीस्त से मुलाकात कराये एवं उनके जीवन रास्ते पर उनका साथ दे सकें।  

संत पापा ने सभी पीयरिस्ट धर्मबंधुओं को धन्य कुँवारी मरियम के चरणों सिपुर्द किया जो येसु की  प्रथम शिक्षिका थी ताकि वे उनकी आदर्श एवं रक्षक बनें तथा बच्चों को स्वर्ग राज्य की ओर ले चलने के मिशन में उनका साथ दे। 








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