2016-11-30 16:16:00

करुणा के कार्यों पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 23 नवम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल 6वें सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्म शिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,

आज हम करुणा के कार्यों की धर्म शिक्षा माला का समापन करने के पूर्व ईश्वर का धन्यवाद करते हैं जिन्होंने हमारे हृदयों को अपनी सांत्वना और साहचर्य से भर दिया है।

करुणा का अंतिम आध्यात्मिक कार्य हमें जीवितों और मृतकों हेतु प्रार्थना करने की माँग करते हुए मृतकों को दफनाने का आहृवान करता है। यह हमारे लिए विचित्र प्रतीत होता है यद्यपि दुनिया में बहुत से ऐसे देश हैं जो युद्ध की स्थिति से गुजर रहें हैं जहाँ कितने ही निर्दोष लोगों की मृत्यु रोज दिन होती है, जहाँ करुणा के ये कार्य पूरे किये जाते हैं। धर्मग्रन्थ में हम इसका एक अच्छा उदाहरण पाते हैं जहाँ तोबीत राजा की आज्ञा के विरूद्ध अपने जीवन को जोखिम में डाल कर युद्ध में मारे गये लोगों की दफन क्रिया करता है। (तो.1.17- 19,2,2-4) आज भी कितने ही लोग हैं जो अपने जान को जोखिम में डालकर युद्ध में मारे गये लोगों की दफन विधि समापन करते हैं। अतः करुणा का यह कार्य हमारे जीवन का अंग है जो हमें पुण्य शुक्रवार की याद दिलाती है जब माता मरिया, योहन और धर्मी नारियाँ क्रूस के नीचे खड़ी थीं। येसु के मरण उपरान्त अरिमथिया के जोसेफ, एक धनी व्यक्ति ने जो येसु का शिष्य बन गया था अपनी कब्र को येसु के मृत शरीर को दफनाने हेतु मुहैया करता है। वह व्यक्तिगत तौर से पिलातुस के पास जा कर येसु के मृत शरीर को क्रूस से उतारने की आज्ञा माँगता जो सचमुच में करुणा और साहस का एक सच्चा कार्य है। (मती.27. 57-60) दफन की धर्म विधि ख्रीस्तीयों के लिए श्रद्धा और विश्वास का एक बड़ा कार्य है। हम अपने मृत प्रियजनों को कब्र में इस विश्वास के साथ दफ़नाते हैं कि वे पुनरुत्थान के दिन में पुनर्जीवित होंगे। (1 कुरि.15.1-34) यह विधि हमारे लोगों में मुख्य रूप से व्याप्त है जब हम नवम्बर महीने के शुरु में अपने प्रियजनों की याद करते हुए उनके लिए विशेष प्रार्थना करते हैं।

मृतकों के लिए प्रार्थना करना ईश्वर के प्रति हमारे हृदय में कृतज्ञता के भाव को दिखाता है विशेष कर हमारे प्रियजनों के साक्ष्य और अच्छे कार्य जिन्हें उन्होंने हमारे लिए किया है। माता कलीसिया के साथ मिल कर हम अपने प्रियजनों के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हैं। पुरोहित अपने प्रार्थना में उन्हें याद करते हुए कहते हैं, “हे प्रभु हमारे उन भाई-बहनों की सुधि ले जो हम से पहले परलोक सिधार चुके हैं और अपने विश्वास में चैन की नींद सो रहे हैं।” हम इस अर्थ पूर्ण प्रार्थना के साथ ख्रीस्तीय आशा में ईश्वर से अपनी सहभागिता हेतु भी प्रार्थना करते हैं।

मृत विश्वासियों की यादगारी हमें जीवितों हेतु प्रार्थना करने से विमुख न करे जो हमारे जीवन के अंग हैं और जो अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हैं। हम अपने विश्वास की उद्घोषणा में इस प्रार्थना की आवश्यकता को देखते हैं, जो “धर्मियों के संघ... ” की घोषणा करता है। यह ईश्वर के करुणामय रहस्य को हमारे सामने पेश करता है जिसे येसु ने हमारे लिए प्रकट किया है। “धर्मियों के संग” वास्तव में, प्रेम में हमारे ईश्वरीय मिलन के रहस्य को प्रकट करता है। हम जीवित और मृत बपतिस्मा प्राप्त लोगों के समुदाय में एक साथ संयुक्त हैं जिन्हें येसु एक परिवार के रुप में अपने शरीर से प्रोषित करते हैं।

हमारे लिए अपनों और पड़ोसियों हेतु प्रार्थना करने के कितने प्ररूप हैं यदि हम उन्हें अपने हृदय से करें तो ईश्वर हमें स्वीकार और ग्रहण करते हैं। संत पापा ने कहा कि मैं विशेषकर उन अभिभावकों के बारे में सोचता हूँ जो रोगियों के लिए प्रार्थना करते तथा अपने जीवन की तकलीफों को अपनी शांतिमय निवेदन में ईश्वर को अर्पित करते और सुबह-शाम अपने बच्चों को आशीष देते हैं। उन्होंने कहा कि मैं उनका शुक्रिया अदा करता हूँ जो अपने मित्रों, संबंधियों और सहकर्मी की चिंता करते हैं। उन्होंने संत मार्था के प्रार्थनालय में आये एक व्यक्ति से अपने मिलन के अनुभव को साक्षा करते हुए कहा कि वह व्यक्ति अपनी छोटी फैक्टरी के बंद होने पर 50 लोगों की जीविका हेतु चिंतित था और प्रभु से अश्रु भरे नयनों से प्रार्थना की। एक सच्चे ख्रीस्तीय के रुप में वह दूसरों के लिए प्रार्थना करता है। संत पौलुस कहते हैं, “हम यह नहीं जानते कि हमें कैसी प्रार्थना करनी चाहिए, किन्तु हमारे अस्पष्ट आहों द्वारा आत्मा स्वयं हमारे लिए विनती करता है।” (रोमि.8.26) हम अपना हृदय खोलें जिससे पवित्र आत्मा हमारे हृदय की गहराई में व्याप्त प्रार्थनाओं की थाह ले सकें और उन्हें पूरा करें। हम अपना हृदय ईश्वर के लिए खोलें जिससे करुणा के कार्य हमारे जीवन के अंग बन सकें और हम उनमें ईश्वर की इच्छा को पूरा कर सकें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। 








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