2016-11-29 11:40:00

प्रेरक मोतीः सन्त सातुरनीनुस (निधन लगभग 257 ई.)


वाटिकन सिटीः 29 नवम्बर 2016 (विभिन्न स्रोत)

29 नवम्बर को कलीसिया टोलूज़ के धर्माध्यक्ष, शहीद सन्त सातुरनीनुस का स्मृति दिवस मनाती है। सन्त पापा फेबियन के आदेश पर सन् 245 ई. में सातुरनीनुस सुसमाचार प्रचार मिशन के लिये फ्राँस के गौल गये थे। सन् 250 ई. में, जब देसियुस एवं ग्राशियुस सलाहकार थे, जब सातुरनीनुस ने टोलूज़ को अपनी धर्माध्यक्षीय पीठ रूप में चुना था। तत्कालीन इतिहासविज्ञ फोरतुनातुस बताते हैं कि अपने प्रचाक कार्यों तथा चमत्कारों द्वारा सातुरनीनुस ने कई मूर्तिपूज़कों का मनपरिवर्तन किया।

टोलूज़ के धर्माध्यक्ष सातुरनीनुस के निधन के पचास वर्षों बाद उनके चरित के लेखर बताते हैं कि सातुरनीनुस ने एक छोटे से गिरजाघर में अपनी प्रेरिताई शुरु की थी; तथा कैपिटोल जो शहर का मुख्य मन्दिर था, वह गिरजाघर एवं सन्त सातुरनीनुस के आवास के बीच पड़ता था। इस मन्दिर में भविष्यवाणियाँ हुआ करती थीं किन्तु सन्त सातुरनीनुस की उपस्थिति के कारण शैतान बिलकुल मौन हो जाते तथा हक्के-बक्के रह जाते थे।

एक दिन मन्दिर के पुजारियों ने सन्त की जासूसी की। उन्हें पकड़ कर वे मन्दिर तक घसीट कर ले गये और उनसे कहा कि या तो वे नाराज़ देवी-देवताओं को खुश करें अन्यथा अपने अपराध के लिये खून की बलि अर्पित करें। सातुरनीनुस ने उन्हें साहसपूर्वक उत्तर दिया: "मैं केवल एक ईश्वर की आराधना करता हूँ और उन्हीं की स्तुति को तैयार हूँ। तुम्हारे देवी-देवता शैतान हैं जो तुम्हारे सांड़ों के बजाय तुम्हारी आत्मा का बलिदान लेकर खुश होते हैं। उनसे शैतानों से मैं कैसे भय खा सकता हूँ? जो, जैसा कि तुम स्वीकार करते हो, ख्रीस्तानुयायी के सामने काँपते हैं?" यह उत्तर सुनकर ग़ैरविश्वासी आग-बबूला हो उठे और उन्होंने सन्त सातुरनीनुस को गाली देना शुरु कर दिया। उन्होंने उनके साथ दुर्व्यवहार किया और उनका घोर अपमान किया तथा उनके पैरों को एक जंगली सांड के पैरों से बाँध दिया। वे सांड के साथ-साथ सातुरनीनुस को भी मन्दिर तक बलि अर्पित करने के लिये घसीटते चले गये। मन्दिर पहुँचने पर उन्होंने सांड को पहाड़ी से नीचे इस क़दर धकेला कि  सातुरनीनुस का सिर चकनाचूर हो गया तथा उनका भेजा बाहर निकल आया।

प्रभु ईश्वर के नाम पर सातुरनीनुस ने अपने अपराधियों को क्षमा किया तथा अपने प्राण त्याग दिये। शहीद सातुरनीनुस के शव को सांड तब तक घसीटता रहा जब तक उनके शरीर का एक-एक टुकड़ा टूट कर चूर-चूर न हो गया तथा उनका रक्त सर्वत्र न बिखर गया। बाद में दो पवित्र महिलाओं ने सातुरनीनुस के शव के टुकड़ों को बटोरा तथा और अधिक अपमान के भय से उन्हें एक गर्त में सुरक्षित छिपा दिया।

शहीद सन्त सातुरनीनुस के अवशेष सम्राट कॉन्सटेनटाईन महान के काल तक वहीं रहे। तदोपरान्त, टोलूज़ के धर्माध्यक्ष हिलेरी ने उसी गर्त पर एक आराधनालय का निर्माण करा दिया था। आज भी सन्त सातुरनीनुस के अवशेष यहीं सुरक्षित हैं। इतिहासकारों के अनुसार, सम्राट वालेरियन के शासनकाल में, अर्थात् लगभग 257 ई. के दौरान, सन्त सातुरनीनुस को शहादत मिली थी। उनका पर्व 29 नवम्बर को मनाया जाता है।    

चिन्तन: "जो तेरी खोज में लगे हैं, वे सभी उल्लास के साथ आनन्द मनायें। जो तेरे द्वारा मुक्ति चाहते हैं, वे निरन्तर यह कहते रहें: प्रभु महान है" (स्तोत्र ग्रन्थ, 70:5)।








All the contents on this site are copyrighted ©.