2016-11-17 11:18:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय: स्तोत्र ग्रन्थ 78 वाँ भजन (भाग-4)


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"यह इसलिये हुआ कि वे प्रभु पर भरोसा रखें, ईश्वर के महान कार्य नहीं भुलायें, उसकी आज्ञाओं का पालन करते रहें और अपने पूर्वजों जैसे नहीं बनें। वह एक हठीली और विद्रोही पीढ़ी थीः एक ऐसी पीढ़ी जिसका हृदय दृढ़ नहीं, जिसका मन ईश्वर के प्रति निष्ठावान नहीं। एफ्रईम के अनुभवी धनुर्धारी पुत्रों ने युद्ध के दिन पीठ दिखाई क्योंकि उन्होंने ईश्वर के विधान का पालन नहीं किया था, उन्होंने उसके नियमों पर चलना स्वीकार नहीं किया था।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 78 वें भजन के सात से लेकर दस तक के पद जिनकी व्याख्या  हमने विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत की थी। 78 वें भजन का  उपदेशक पूर्वजों से सुनी बातें भक्त समुदाय के समक्ष रख रहा था। वह उन्हें प्रभु ईश्वर के महान कार्यों के बारे में बता रहा था। मिस्र की दासता से ईश प्रजा को मिली मुक्ति की याद दिलाकर वह बता रहा था कि ईश्वर केवल सृष्टिकर्त्ता ही नहीं अपितु मनुष्य के उद्धारकर्त्ता भी हैं। 78 वें भजन में अतीत की घटनाओं का स्मरण दिलाकर उपदेशक चेतावनी भी देता है कि मनुष्य को किस तरह का आचरण करना चाहिये। वस्तुतः, वह अतीत का साक्षी है जो सच्चे मार्ग पर चलने हेतु लोगों का मार्गदर्शन करता है उन्हें चेतावनी देता है कि कौनसा रास्ता वे अपनायें और कौनसे रास्ते का बहिष्कार करें। वह इस तथ्य के प्रति चेतना भी जागृत करता है कि मनुष्य के जीवन में सम्पादित समस्त घटनाएँ और समस्त बातों का स्रोत प्रभु ईश्वर हैं, ईश्वर के बिना मनुष्य कुछ भी नहीं। अस्तु, मनुष्य ईश आदेशों का पालन करते हुए जीवन यापन करे जैसा कि प्राचीन व्यवस्थान के मीकाह के ग्रन्थ के छठवें अध्याय के आठवें पद में लिखा है, "मनुष्य तुमको बताया गया है कि उचित क्या है और प्रभु तुम से क्या चाहता है। यह इतना ही है – न्यायपूर्ण व्यवहार, कोमल भक्ति और ईश्वर के सामने विनयपूर्ण आचरण।"   

श्रोताओ, इस बात की ओर हमने आपका ध्यान आकर्षित कराया था कि स्तोत्र ग्रन्थ के भजन प्राचीन व्यवस्थान के युग में रचे गये थे। इन भजनों को, दाऊद के अतिरिक्त, कई लोगों ने लिखे थे और बाईबिल पंडितों का मानना है कि 78 वाँ भजन, इस्राएल के विख्यात एवं सर्वाधिक विशाल कुल, एफ्रईम के पतन के बाद, मसीह के जन्म से 720 वर्ष पूर्व, नबी इसायाह द्वारा रचा गया था। यह भजन एक लम्बी कहानी है जिसमें राजा दाऊद के काल तक ईश प्रजा का इतिहास निहित है। यह भजन दर्शाता है कि ईश्वर भले हैं तथा अपनी प्रजा के प्रति वे सदैव दयालु रहे हैं, हालाँकि, प्रजा ईश्वर के प्रति निष्ठावान नहीं रही। वह एक हठीली और विद्रोही पीढ़ी थीः एक ऐसी पीढ़ी जिसका हृदय दृढ़ नहीं, जिसका मन ईश्वर के प्रति निष्ठावान नहीं रहा। भजन के दसवें पद के अनुसार, "उन्होंने ईश्वर के विधान का पालन नहीं किया था, उन्होंने उसके नियमों पर चलना स्वीकार नहीं किया था।" और फिर "उन्होंने उसके महान कार्य, उसके दिखाये हुए चमत्कार भुला दिये थे।"

श्रोताओ, इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब मनुष्य ने ईश्वर के नियमों का उल्लंघन किया है तब-तब वह अपने पतन की ओर आगे बढ़ा है। आज हमारे अपने युग में भी यही हो रहा है। अपने स्वार्थ और अहंकार के कारण ईश नियमों पर चलने से इनकार कर रहा है और नियमों पर चलनेवालों को उत्पीड़ित कर रहा है। वह जीवन की समस्त अच्छाइयों की इच्छा करता है किन्तु उन्हें पा लेने के बाद अच्छाइयों के स्रोत को ही भूल जाता है। 78 वाँ भजन हमें ईश्वर के कार्यों पर मनन-चिन्तन के लिये आमंत्रित करता है और आग्रह करता है कि हम प्रभु पर भरोसा रखें, आपत्ति आने पर उन्हें पुकारने से न हिचकिचायें, उनके महान कार्यों को याद करें, उनकी आज्ञाओं का पालन करते रहें तथा अपने पूर्वजों जैसे हठीले एवं विद्रोही नहीं बनें।"

आगे 78 वें भजन के 11 से लेकर 17 तक के पदों में हम पढ़ते हैं: "ईश्वर ने मिस्र देश, तानिस के मैदान में उनके पूर्वजों को चमत्कार दिखाया था। उसने समुद्र विभाजित कर उन्हें पार कराया, उसने जल को बाँध की तरह खड़ा कर दिया। वह उन्हें दिन में बादल द्वारा और हर रात को अग्नि के प्रकाश द्वारा ले चलता था। उसने मरुभूमि में चट्टानें फोड़कर मानो अगाध गर्त्त में से उन्हें जल पिलाया। उसने चट्टान में से जलधाराएँ निकालीं और पानी को नदियों की तरह बहाया। फिर भी वे उसके विरुद्ध पाप करते रहे और मरुभूमि में सर्वोच्च ईश्वर के विरुद्ध विद्रोह करते रहे।"

श्रोताओ, इन पदों में भी भजनकार ईश्वर के कार्यों का बखान करना जारी रखता है। वह इस्राएली लोगों के इतिहास के पन्नों को उलटते हुए उन्हें स्मरण दिलाता है कि जब वे मिस्र से प्रतिज्ञात देश की ओर निकले थे तब यदि ईश्वर अपने चमत्कार नहीं दिखाते तो इस्राएली जाति प्रतिज्ञात देश तक कभी भी पहुँच नहीं पाती। वस्तुतः, उक्त पदों में प्राचीन व्यवस्थान के निर्गमन ग्रन्थ की कहानी निहित है जिसमें मिस्र से पारगमन की जटिल यात्रा और संकटों को पार करने में ईश्वर से मिली  मदद का विवरण मिलता है। समुद्र विभाजन के बारे में इस ग्रन्थ के 14 वें अध्याय के 21 वें पद में हम पढ़ते हैं: "तब मूसा ने सागर के ऊपर हाथ बढ़ाया और प्रभु ने रात भर पूर्व की ओर ज़ोरों की हवा भेजकर सागर को पीछे हटा दिया। सागर दो भागों में बँटकर सूख गया।" 

श्रोताओ, जिस प्रकार प्रभु ईश्वर ने उस युग में अपनी प्रजा इस्राएल की रक्षा की थी, उनका मार्गदर्शन किया था, उसी प्रकार आज भी वे हमारी रक्षा को तैयार रहते हैं। आज भी वे हमें संकटों के सागर से बचाते हैं ज़रूरत है केवल उनपर भरोसा रखने की, उनके नियमों के अनुकूल जीवन यापन की और आपत्ति के क्षण उन्हें पुकारने की।








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