2016-11-15 10:27:00

प्रेरक मोतीः ह्यू के लिनकन (निधन 16 नवम्बर 1199 ई.)


वाटिकन सिटी, 17 नवम्बर सन् 2016:

ह्यू के लिनकन फ्राँस के आवालोन के लॉर्ड विलियम के सुपुत्र थे। बुरगुण्डी स्थित आवालोन दुर्ग में उनका जन्म हुआ था। माता के निधन के बाद आठ वर्षीय लिनकन की शिक्षा-दीक्षा विलार्ड बेनाए के एक कॉन्वेन्ट में हुई थी। 19 वर्ष की आयु में वे उपयाजक बने तथा सेन्ट मैक्सिम के मठ में भर्ती हो गये। 1160 ई. में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ तथा 1175 ई. में इंगलैण्ड के सर्वप्रथम कारथुसियन मठ के मठाध्यक्ष नियुक्त कर दिये गये। इस मठ का निर्माण थॉमस बेकेट की हत्या के पश्चाताप रूप में राजा हेनरी द्वितीय ने करवाया था।

अपनी पवित्रता के लिये ह्यू के लिनकन इंगलैण्ड में विख्यात हो गये थे जिसके कारण कई लोग मठवासी जीवन के प्रति भी आकर्षित हुए। राजा हेनरी को भी उन्होंने कई बार फटकार बताई जिन्होंने शाही खज़ाने को भरने के लिये कई जगहों को रिक्त रखा था।

1186 ई. में ह्यू के लिनकन को 18 साल से खाली लिनकन की धर्माध्यक्षीय पीठ का धर्माध्यक्ष मनोनीत कर दिया गया था। धर्माध्यक्ष अभिषिक्त होने के बाद से उन्होंने पुरोहितों में अनुशासन की बहाली की तथा धर्मप्रान्त में धर्म को प्रतिष्ठित करने का बीड़ा उठाया। उनके न्याय एवं ज्ञान  की सर्वत्र सराहना की गई।

ह्यू के लिनकन उन काथलिक नेताओं में से एक थे जिन्होंने सबसे पहले यहूदियों के उत्पीड़न की कड़ी निन्दा की थी। 1190 एवं 1191 ई. में सम्पूर्ण इंगलैण्ड में यहूदी विरोधी भावना ने तूल पकड़ लिया था जिसकी निन्दा करने से ह्यू के लिनकन कभी नहीं चूके। 1199 ई. में वे फ्राँस में एक कूटनैतिक मिशन के लिये भेजे गये थे जिसके दौरान उन्होंने चारत्रूस, क्लूनी तथा शितो शहरों की भेंट की। इस यात्रा के उपरान्त उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा तथा लन्दन में एक राष्ट्रीय बैठक में भाग लेने के दो माहों बाद 16 नवम्बर सन् 1199 में ओल्ड टेम्पल में उनका निधन हो गया। निधन के बीस वर्ष बाद, सन् 1220 ई. में, ह्यू के लिनकन को सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान कर दिया गया था। कारथुसियन धर्मसमाज के वे पहले सन्त माने जाते हैं।   

चिन्तनः "वे मुझे धक्का दे कर गिराना चाहते थे, किन्तु प्रभु ने मेरी सहायता की। प्रभु ही मेरा बल है और मेरे गीत का विषय, उसने मेरा उद्धार किया। धर्मियों के शिविरों में आनन्द और विजय के गीत गाये जाते हैं। प्रभु का दाहिना हाथ महान् कार्य करता है; प्रभु का दाहिना हाथ विजयी है, प्रभु का दाहिना हाथ महान् कार्य करता है। मैं नहीं मरूँगा, मैं जीवित रहूँगा, और प्रभु के कार्यों का बखान करूँगा।" (स्तोत्र ग्रन्थ, भजन संख्या 118: 12-17)








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