2016-11-09 11:31:00

भारत के क़ैदियों में पचास प्रतिशत दलित, मुसलमान आदिवासी


नई दिल्ली, बुधवार, 9 नवम्बर 2016 (ऊका समाचार): नेशनल क्राईम रेकॉर्ड्स ब्यूरो द्वारा अक्टूबर माह में प्रकाशित सूचना के अनुसार भारत की जेलों में बन्द लगभग 50 % क़ैदी दलित, मुसलमान अथवा आदिवासी हैं।

2015 में किये गये सर्वे के अनुसार 55 प्रतिशत क़ैदी हाशिये पर जीवन यापन करनेवाले निर्धन वर्ग के लोग हैं जिनमें से 70 प्रतिशत क़ैदियों ने दसवीं कक्षा भी पास नहीं की है। चकित करनेवाला तथ्य यह है कि दलित, मुसलमान एवं आदिवासी भारत की कुल जनसंख्या का केवल 39 प्रतिशत हैं।

भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के दलित एवं जनजाति सम्बन्धी कार्यालय के फादर  देवसहाय राज ने कहा, "यह निश्चित्त है कि निर्धन लोग अपराधों में अधिक लिप्त नहीं रहते हैं क्योंकि क़ैदियों में उनकी संख्या का कारण उनकी निरक्षरता एवं निर्धनता है। इसके अतिरिक्त, कानून को समझने तथा स्वतः के बचाव के लिये वकीलों को रखने में वे असमर्थ रहते हैं।"

उन्होंने कहा कि उनकी गरीबी भी उनके विरुद्ध आसानी से आरोप दायर करने के लिये पुलिस को बल प्रदान करती है। फिर आँकड़े यह भी बताते हैं कि अधिकांश क़ैदियों को ज़मानत मिलने तक कम से कम तीन माहों की प्रतीक्षा करनी होती है तथा 65 प्रतिशत क़ैदी मुकद्दमा शुरु होने से पहले तीन माहों से लेकर पाँच साल तक कारावासों में व्यतीत करते हैं।

नई दिल्ली में शांति और मैत्री केन्द्र के अध्यक्ष मुहम्मद आरीफ़ ने कहा, "निर्धनों की सुनवाई के लिये कौन तैयार रहता है? उन्हें ईश्वर की दया पर छोड़ दिया जाता है।" उन्होंने कहा कि ऐसे भी प्रकरण हैं जिनमें पुलिस ने समाज से बहिष्कृत दलों के लोगों को अनसुलझे अपराधों के लिये गिरफ्तार किया है।

फादर राज ने कहा कि वैध सहायता न मिल पाने के कारण इस बात की अधिक सम्मभावना रहा करती है कि निर्दोष लोगों पर आरोप लगाया जाये तथा उन्हें गिरफ्तार किया जाये।

इसी बीच, सुप्रीम कोर्ट के वकील थॉमस फ्रेंकलीन सीज़र ने कहा कि पुलिस जानती है कि निर्धनों पर दोषारोपण सहज और सुरक्षित है क्योंकि वे कानूनी अदालत में किसी अधिकारी को चुनौती देने में असमर्थ रहते हैं।








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