2016-11-07 12:23:00

ईश्वर पर हमारी आशा हमें हतोत्साहित नहीं करती


वाटिकन सिटी, सोमवार, 07 नवम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्रांसिस ने रविवार 06 नवम्बर  को संत पेत्रुस के महागिरजाघर में कैदियों हेतु जयंती का ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

उन्होंने मिस्सा बलिदान के दौरान अपने प्रवचन में कहा कि ईश्वर का वचन आज हमारे लिए आशा का संदेश लेकर आता है जो हमें कभी हतोत्साहित नहीं करता है। मक्कबियों के द्वितीय ग्रंथ से लिये गये प्रथम पाठ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अंतियोख के राजा ने सात भाइयों को मृत्यु दण्ड की सजा सुनाई थी उनमें से एक कहता है,“हमें  ईश्वर की प्रतिज्ञा पर आशा है जो हमें पुनर्जीवित करेंगे। (2 मक्का.7.14) यह वाक्य उन शहीदों के विश्वास को दिखलाता है जो अपनी दुःख और प्रताड़ना के बावजूद अपने विश्वास में अडिग रहते हैं। ईश्वर पर उनका विश्वास जो आशा की निशानी है उन्हें नये जीवन हेतु प्रेरित करता है।

उन्होंने कहा कि सुसमाचार में हमने सुना कि येसु कैसे अपने साधारण लेकिन सम्पूर्ण उत्तर के द्वारा सदूकियों का मुँह बंद कर देते हैं। वे उनके सवाल का उत्तर देते हुए कहते हैं, “वे मृतकों के ईश्वर नहीं लेकिन जीवितों के ईश्वर हैं, क्योंकि सभी उनमें जीते हैं।” (लूका, 20.38) यह ईश्वर के सच्चे चेहरे को दिखलाता है जो अपने बच्चों को जीवन देते हैं। इस तरह यदि हम उनकी शिक्षा पर विश्वास करते हैं तो उन पर हमारी आशा नये जीवन का उपहार ले कर आती है।

संत पापा ने कहा कि आशा ईश्वर का उपहार है। हम उनसे इस उपहार हेतु निवेदन करें। यह हम प्रत्येक के हृदय में रखा गया है जिससे हम दुःख और निराश भरे क्षणों में ईश्वरीय आशा से आलोकित होते रहें। हमें अपनी गलतियों और किये गये अपराधों के बावजूद विशेषकर ईश्वर की करुणा और निकटता में अपनी आशा को मजबूत करने की जरूरत है जिससे वह फलप्रद हो सकें। हमारे जीवन का कोई भी भाग ऐसा नहीं है जो ईश्वर के प्रेम से अछूता हो। उन्होंने कहा कि जब कोई गलती करता है तो ईश्वर की करुणा अधिक गहराई से उसमें पश्चाताप, क्षमा, मेल-मिलाप और शांति के भाव जाग्रति करती है।

आज हम सब मिलकर क़ैदख़ानों में बंद आप सभों के साथ मिलकर यह जयंती दिवस मनाते हैं। यह करुणा के बारे हमें और अधिक गहरी से विचार करने हेतु निमंत्रण देता है जो हमारे जीवन में ईश्वर के प्रेम की निशानी है। नियम का उल्लंघन करना हमारे लिए सजा का कारण बनता है जहाँ हम अपनी स्वतंत्रता को खो देते हैं जो हमें बहुत अधिक प्रभावित करता है। फिर भी आशा हमारे जीवन में धूमिल न हो। हमारी गलतियों की सजा एक बात है लेकिन आशा में बने रहना दूसरी बात जिसे कोई भी हमारे जीवन में रोक नहीं सकता है। हमारा हृदय सदैव अच्छाई हेतु लालायित रहता है। संत अगुस्टीन के वचनों को उद्धत करते हुए उन्होंने कहा कि हम ईश्वर की करुणा के प्रति ऋणी हैं क्योंकि उन्होंने हमें नहीं त्यागा है। 

रोमियों के नाम संत पौलुस का पत्र हमें ईश्वर को आशा के रुप में प्रस्तुत करता है। (15.13) यह ऐसा प्रतीत होता है मानों ईश्वर सदैव आशावान हैं जिनकी करुणा का कोई अंत नहीं है। वे दृष्टान्त के उस पिता के समान हैं जो अपने बेटे के वापस लौट आने की राह देखते हैं। (लूका. 15.11-32) ईश्वर तक आराम नहीं करते जब तक वे अपनी खोई हुई भेड़ को पा नहीं लेते हैं। (लूका.15.5) अतः यदि ईश्वर अपनी ओर से आशावान हैं तो हमें भी अपनी आशा बनाये रखनी है क्योंकि आशा हमें अपने जीवन में आगे बढ़ने को मदद करती है। यह जीवन की चुनौतियों का सामना करते हुए अपने जीवन को बदलने हेतु मदद करती है। यह भविष्य को देखने हेतु हमें प्रेरित करती है जहाँ प्रेम का अनुभव हमारे जीवन में नये मार्ग को दिखलाती है। एक शब्द में हम कह सकते हैं कि आशा ईश्वर की करुणा का प्रमाण है जो हमारे दिल की गहराई में अंकित है। करुणा हमें भविष्य की ओर दृष्टि डालते हुए विश्वास के साथ जीवन की बुराइयों और पापों को छोड़ने का बल प्रदान करती है। 

संत पापा ने कहा प्रिय मित्रों यह आपकी जयंती है। आज ईश्वरीय आशा आप सभों के जीवन में एक नई आशा प्रज्वलित करे। जयंती अपने स्वभाव के अनुसार एक स्वतंत्रता को घोषित करती हैं। (लेवी. 25. 39-46)  यह मुझ में निर्भर नहीं करता कि मैं इसे आप को प्रदान करुँ लेकिन यह कलीसिया का कर्तव्य है कि वह आप में स्वतंत्रता की सच्ची भावना को उत्पन्न करे। कभी-कभी एक ढ़ोग की भावना हमें इस बात के लिए प्रेरित करती है कि गलती करने वालों की जगह सिर्फ कैदखाना ही है। मैं आप सबों के कहना चाहता हूँ, जब कभी मैं किसी कैदखाने की भेंट करता हूँ तो मेरे जेहन में एक सवाल उठता है, “क्यों वे और मैं नहीं।” हम सभी गलतियाँ कर सकते हैं,  कोई भी गलती कर सकता है, और एक तरह हमने अपने जीवन में गलतियाँ कीं हैं। लेकिन अपने ढोंग में हम यह भूल जाते हैं कि हम सभी पापी हैं और हम यह अनुभव नहीं करते कि हम भी कैदी हैं। बहुत बार हम पूर्वाग्रह और अपनी पुरानी सोच से ग्रसित रहते जिसके द्वारा हम दूसरों को हानि पहुँचाते हैं। इस तरह हम अपने को व्यक्तिगत चहारदीवारी और आत्मा-निर्भरता में कैद कर लेते हैं जो सच्चाई का दमन करती जो हमारी स्वतंत्रता का प्रतीक है। दूसरों की गलतियों की ओर हमारा उँगली उठाना हमें दोषमुक्त नहीं करता है।

हम जानते हैं ईश्वर की नज़रों में कोई अपने को न्यायी नहीं समझ सकता है। रोम, 2.1-11 लेकिन ईश्वर की क्षमाशीलता के बिना कोई भी जीवित नहीं रह सकता है। पश्चातापी डाकू जो येसु के साथ क्रूस पर टंगा था येसु के साथ स्वर्गराज्य में प्रवेश करता है। (लूका. 23.43) अतः आप अपने को अपने अतीत में कैद होने न दें क्योंकि हमारे लिए सच्चाई यही है कि यदि हम अतीत को पुनः लिखना चाहे तो भी हम इसे नहीं लिख सकते हैं। लेकिन इतिहास की शुरूआत आज से होती है जो भविष्य की ओर हमें देखने को प्रेरित करता है जहाँ हम ईश्वर की कृपा और अपने व्यक्तिगत उत्तरदायित्व से अपने नये इतिहास को लिख सकते हैं। अपने जीवन की पुरानी गलतियों से आप शिक्षा लेते हुए अपने जीवन की एक नई शुरूआत कर सकते हैं। हम अपने मैं ऐसा न सोचे की अपनी गलती के लिए हमें कभी क्षमा नहीं मिलेगी। हमारा हृदय हमें कुछ भी दोषी करार दे लेकिन ईश्वर हमारे हृदय से बड़े हैं (1यो.3.20) हमें अपने को उनकी करुणा के सुपुर्द करना है।

विश्वास जो राई के दाने-सा छोटा है लेकिन यह पर्वत को अपने स्थान से हटा सकता है।(मत्ती. 17.20) विश्वास में कितनी बार हम जीवन के मुश्किल क्षणों में भी क्षमा जैसे शब्दों को उच्चरित करने हेतु प्रेरित किये गये हैं। वे लोग जो अपने जीवन में हिंसा और दुराचार का शिकार हुए हैं उन्हें केवल ईश्वर दूसरों को क्षमा करने की शक्ति और चंगाई प्रदान करते हैं। लेकिन जब हिंसा का मिलन क्षमा से होता है तो बुरे हृदयों को प्रेम के द्वारा जीता जा सकता है। ईश्वर हमारे बीच सच्चे साक्ष्य को लाते और करुणा के कार्य करते हैं।

आज हम माता मरिया की आराधना करते हैं जो हमारे समक्ष येसु को अपनी गोद में लिये माँ के रुप में आती हैं वे हम सभों को अपनी प्रेम भरी नजरों से देखें। वे आपके लिए प्रार्थना करें जिससे आप का हृदय आशा और नये जीवन की शक्ति से प्रेरित हो और आप सच्ची स्वतंत्रता में अपने पडोसियों की सेवा कर सकें। 








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