2016-11-05 16:14:00

संत पापा ने हब्सबर्ग परिवार से मुलाकात की


वाटिकन सिटी, शनिवार, 5 नवम्बर 2016 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 5 नवम्बर को वाटिकन स्थित क्लेमेंटीन सभागार में, जयन्ती तीर्थयात्रा हेतु रोम आये हब्सबर्ग परिवार के 300 सदस्यों से मुलाकात की तथा उन्हें परिवार के मूल्यों की खोज करने का प्रोत्साहन दिया।

उन्हें सम्बोधित कर संत पापा ने कहा, ″मैं इस आयाम पर जोर देना चाहता हूँ क्योंकि बृहद मायने में पारिवारिक संबंध एवं बहुरूपता की समृद्धि एक मूल्य है जिसकी हमारे समय में खोज किये जाने की आवश्यकता है।″

संत पापा ने ऑस्ट्रिया-हंगरी के अंतिम सम्राट धन्य चार्स की याद करते हुए कहा कि उन्होंने सौ साल पहले राजगद्दी संभाली थी किन्तु उनकी आध्यात्मिक उपस्थिति के कारण हब्सबर्ग परिवार पहले की तरह आज उदासी की स्थिति में नहीं है बल्कि इसके विपरीत इतिहास में अपनी चुनौतियों एवं आवश्यकताओं के बावजूद आज भी सक्रिय है। 

संत पापा ने उनके उदार कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि उदारता एवं मानवीय संगठनों में तथा सांस्कृतिक विकास के कार्यों में, वे नेतृत्व की भूमिका अदा कर रहे हैं, साथ ही साथ, मानवीय एवं ख्रीस्तीय मूल्यों पर आधारित यूरोप एक आम घर की योजनाओं का समर्थन भी कर रहे हैं।   

संत पापा ने हब्सबर्ग परिवार में भी पुरोहिताई एवं समर्पित जीवन हेतु बुलाहट के प्रति खुशी जाहिर की तथा इसके लिए ईश्वर को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि वास्तव में ख्रीस्तीय परिवार ही वह प्रथम भूमि है जहाँ बुलाहट के बीज की शुरूआत विवाह के समय से ही होती है जो वास्तविक बुलाहट है और जो अंकुरित होकर विकसित हो सकता है।

ऑस्ट्रेलिया के चार्स के बारे संत पापा ने कहा कि वे एक अच्छे पारिवारिक व्यक्ति थे, जीवन एवं शांति के सेवक। प्रथम विश्वयुद्ध के समय एक साधारण सैनिक के रूप में उन्होंने युद्ध देखी थी। सन् 1916 में उन्होंने पद स्वीकार किया तथा संत पापा बेनेडिक्ट 15वें की आवाज पर हमेशा ध्यान दिया। वे हमारे लिए एक आदर्श हैं जिनकी मध्यस्थता द्वारा हम मानवता के लिए ईश्वर से शांति हेतु प्रार्थना कर सकते हैं। 

चार्स ऑस्ट्रिया के एक ऐसे सम्राट थे जिन्होंने अपनी गद्दी को ईश्वर की ओर से मिला हुआ समझा तथा प्रशासन के कार्यों में हमारे सच्चे राजकुमार ख्रीस्त का अनुसरण करने का प्रयास किया। जब निर्वासन में उनकी मृत्यु हो गयी तब उनकी उम्र मात्र 35 साल थी। उन्होंने संतों के समान जीवन यापन किया तथा मृत्यु के समय येसु की इच्छा पूरी होने के लिए प्रार्थना किया। उनकी संत घोषणा हेतु जाँच प्रक्रिया जारी है।








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