2016-11-03 14:45:00

संत पापा का विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों से मुलाकात


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 3 अक्तूबर 2016 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 3 नवम्बर को वाटिकन स्थित क्लेमेंटीन सभागार में विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की।

करुणा पर चिंतन करने एकत्रित 200 प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर संत पापा ने कहा, ″जैसा कि आप सचेत हैं हम इस पवित्र वर्ष की समाप्ति पर पहुँच चुके हैं जिसमें काथलिक कलीसिया ने ख्रीस्तीय संदेश के केंद्र करुणा पर चिंतन किया है। हमारे लिए करुणा ईश्वर के नाम को प्रकट करता है। यह कलीसिया के जीवन का आधार है। यह मानव के रहस्य को समझने की एक कुँजी भी है उस मानवता की जिसे आज भी क्षमाशीलता एवं शांति की बड़ी आवश्यकता है।     

किन्तु मानवता के इस रहस्य को मात्र शब्दों द्वारा नहीं किन्तु सबसे बढ़कर प्रेम, भाई बहनों की सेवा एवं उदारता के कार्यों द्वारा, करुणा के सच्चे जीवन से चिह्नित होकर प्रकट किया जा सकता है। कलीसिया इस जीवन शैली को अपने कर्तव्य के रूप में अपनाने हेतु उत्सुक है ताकि लोगों के बीच एकता एवं उदारता को प्रोत्साहन दे सके।

संत पापा ने कहा कि विभिन्न धर्मानुयायी भी इसी तरह की जीवन शैली को अपनाने के लिए बुलाये गये हैं। ताकि हम खासकर, हमारे समय में शांति के संदेश वाहक एवं समाज के निर्माता बनकर, उन लोगों के विपरीत आवाज उठा सकें जो विभाजन तथा असहिष्णुता बोते हैं। अतः यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि हम मुलाकात हेतु अवसर की खोज करें, एक ऐसी मुलाकात जो सतही समन्वयता को टालता है, हमें वार्ता के लिए खोलता है ताकि हम एक-दूसरे को बेहतर पहचान सकें। हर प्रकार की बंद मानसिकता एवं निरादर की भावना को दूर कर, हिंसा एवं भेदभाव की भावना को हटा सकें। यह ईश्वर को प्रिय है जो हमारे लिए एक जरूरी कार्य सौंपता है कि हम न केवल आज की जरूरतों का प्रत्युत्तर दें किन्तु प्रेम करें जो सभी सच्चे धर्मों की आत्मा है।

संत पापा ने कहा कि करुणा की विषयवस्तु अधिकतर धार्मिक एवं सांस्कृतिक परम्पराओं के लिए परिचित हैं जहाँ सहानुभूति एवं अहिंसा मूल तत्व होते हैं। यह उन लोगों की ओर प्रेरित होना है जिन्हें हमारी मदद की आवश्यकता है, विशेषकर, बीमार, विकलांग, गरीब, अन्याय, संघर्ष एवं विस्थापन के शिकार हैं। यह सभी सच्चे धार्मिक परम्पराओं के मध्य से उठने वाली आवाज है। यह दिव्य पुकार की प्रतिध्वनि है जो प्रत्येक की अंतरात्मा से आती है। जो उन्हें स्वार्थ का त्याग करने एवं उदार बनने का आह्वान देता है। संत पापा ने करूणा का अर्थ बतलाते हुए कहा कि यह एक आह्वान है खुला होने एवं सहानुभूतिपूर्ण हृदय धारण करने का। ईश्वर नबी इसायस के मुख से कहते हैं कि क्या माता अपने दुधमुहे बच्चे को भूला सकती है यदि वह भुला भी दे परन्तु मैं तुम्हें कभी नहीं भूलाऊँगा। दुखद बात ये है कि हम बहुधा भूल जाते हैं। हमारा हृदय बेपरवाह और उदासीन हो जाता है। हम अपने को ईश्वर एवं अपने पड़ोसियों से दूर कर देते हैं और इतिहास की गलतियों एवं क्रूरता भरी घटनाओं को दुहराने तक के लिए उतारू हो जाते हैं।

उन्होंने कहा कि यही बुराई का नाटक है, गहरी खाई है जिसमें हमारी स्वतंत्रता डुबकी लगाती है जब हम बुराई के प्रलोभन में पड़ते हैं। बुराई के विशाल जाल जो सभी धार्मिक परम्पराओं की परीक्षा लेती है इसके बीच भी हम करुणावान प्रेम के अनूठे आयाम को प्राप्त करते हैं। वह प्रेम जो हमें बुराई अथवा हमारी कमजोरियों का शिकार होने नहीं देती है। हमें भूलने नहीं देती बल्कि याद दिलाती है तथा विकट परिस्थिति में पड़े लोगों की मदद हेतु उनकी ओर प्रेरित करती है।

संत पापा ने कहा कि हम दया के प्यासे हैं जिसे कोई भी तकनीकी बुझा नहीं सकती। हम उस प्रेम की खोज कर रहे हैं जो क्षणिक सुख से परे, स्थायी है। एक असीम आलिंगन जो क्षमा करता एवं मेल-मिलाप कराता है। उन्होंने कहा कि आज दुनिया में भय की स्थिति है तथा ऐसा प्रतीत होता है कि क्षमा करना, सहअस्तित्व एवं अपनी कमजोरियों से ऊपर उठना मुश्किल हो चुका है। ऐसे समय में काथलिक कलीसिया की सबसे अर्थ पूर्व धार्मिक अभ्यास है, विनम्रता एवं भरोसे के साथ पवित्र द्वार में प्रवेश करना। ताकि हम ईश्वर से पूर्ण रूप से मेल-मिलाप कर सकें। जो हमारे सारे पापों से क्षमा कर देते हैं और हमसे मांग करते हैं कि हम उन लोगों को माफ कर दें जो हमारे विरूद्ध अपराध करते हैं। क्षमाशीलता निश्चय ही दूसरों के लिए एक महान वरदान है क्योंकि यह बहुत कीमती है किन्तु यह हमें ईश्वर के समान बना देता है।

संत पापा ने कामना की कि यही हमारा रास्ता बने। हम असहमति एवं बंद मानसिकता के निरुद्देश्य रास्ता का परित्याग करें। यह कभी न हो कि धर्म का अपने कुछ अनुगामियों के द्वारा विकृत संदेश फैले जिसमें दया का अभाव हो।

संत पापा ने वर्तमान में हो रहे युद्ध की याद करते हुए कहा कि एक दिन भी ऐसा नहीं है जब हम हिंसा, संघर्ष, अपहरण, आतंकवाद, हत्या एवं विनाश की बात नहीं सुन रहे हैं। इस समय यह और भी भयावाह है जब बर्बरता को न्याय संगत ठहराने के लिए धर्म एवं ईश्वर के नाम का सहारा लिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसी परिस्थिति में ईश्वर तथा मानवता के सामने हमारी जिम्मेदारी बहुत बड़ी है। यह हमें छल किये बिना निरंतर प्रयास करने का आह्वान दे रही है। हमें चुनौती दे रही है कि हम सभी की भलाई के लिए आशा के साथ एक रास्ते पर चलें। धर्म जीवन दायिनी बने, करुणावान ईश्वर के प्रेम को धारण करे, आशा का द्वार बने तथा घमंड एवं भय द्वारा निर्मित दीवार को बेध दे।








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