2016-11-01 15:09:00

मालमो में काथलिकों के लिए संत पापा का ख्रीस्तयाग प्रवचन


मालमो, मंगलवार, 01 नवम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने स्वीडेन की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन 01 नवम्बर को मालमो से स्वीडबैंक स्टेडियम में यूखरिस्त बलिदान अर्पित करते हुए पर्वत प्रवचन पर अपना चिंतन दिया।

मिस्सा बलिदान के दौरान उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि आज माता कलीसिया सब संतों का महोत्सव मनाती है। ऐसा करते हुए हम न केवल उनकी याद करते हैं जो कलीसिया में संत घोषित किये गये हैं वरन् हमारे उन भाई बहनों की भी जो शांत भाव से अपने ख्रीस्तीय जीवन को  विश्वास की परिपूर्णता में स्नेह के साथ जीते हैं। इनमें निश्चित रुप से बहुत से हमारे अपने संबंधी मित्र और परिचित हैं।

इस तरह हमारा यह समारोह पवित्रता का समारोह है जो महान कामों और अति विशिष्ट घटनाओं के रुप में नहीं वरन् अपने रोज दिन के जीवन में बपतिस्मा के प्रति एक निष्ठा को दिखलाती है। यह पवित्रता ईश्वर और अपने भाई-बहनों के प्रेम में निर्मित हैं। यह प्रेम अपने में आत्मत्याग करने और दूसरे के प्रति समर्पित होने को प्रेरित करता है। हम उन माता-पिताओं के जीवन की याद करे जो अपने परिवार के लिए अपना जीवन, अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं और परियोजनाओं की तिलांजलि दे देते हैं जो सहज नहीं है।

संत पापा ने कहा कि फिर भी एक विशिष्ट चीज जो संतों के जीवन में हम पाते हैं और वह है सच्ची खुशी। उन्होंने अपने जीवन में सच्ची खुशी के रहस्य को पाया जो उनके हृदयों में ईश्वरीय प्रेम के कारण प्रस्फुटित हुआ है और यही कारण हैं कि हम उन्हें संतों और धन्यों की उपाधि देते हैं। धन्यताएँ उनके मार्ग, उनके लक्ष्य और उनकी जन्मभूमि है। धन्यताएँ जीवन के मार्ग हैं जिसे येसु हमें सिखलाते हैं जिससे हम उनके मार्ग पर चल सकें। आज के सुसमाचार में हम येसु को गलीलिया झील के निकट पर्वत से जनसमूह के लिए धन्यताओं को घोषित करते हुए सुनते हैं।

धन्यताएँ येसु का प्रति रूप और हर ख्रीस्तीय का प्रति रुप है। मैं यहाँ केवल एक की चर्चा करना चाहूँगा,“धन्य हैं वे जो नम्र है।” येसु अपने बारे में कहते हैं, “मुझ से सीखो क्योंकि मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ।” (मती.11.29) यह उनका आध्यात्मिक प्रकटीकरण है जो हमारे लिए उनके प्रेम की प्रचुरता को व्यक्त करता है। नम्रता जीवन जीने का एक तरीका है जो हमें येसु और अन्यों के निकट लेकर आती है। यह हमें उन चीजों को अपने से दूर रखने में मदद करती है, विशेषकर, जो हमें विभाजित और एक-दूसरे से अपरिचित बनाते हैं, इस तरह यह हमें एकता के नये मार्ग की खोज करने में मदद करती है। जैसे कि इस देश की पुत्र-पुत्रियाँ  और संत मेरी एलिजबेद हेसेलबल्द हैं जिन्हें हमने फिलहाल ही संत का दर्जा दिया संत ब्रिजिट, वादेस्तेना की ब्रिजिटा जो यूरोप की सह-संरक्षिका हैं, उन्होंने अपनी प्रार्थना और कार्य को ख्रीस्तीय एकता और बंधुत्व की स्थापना हेतु किया। इसकी एक अभूतपूर्व निशानी आपके देश में यह है कि हम एक साथ मिलकर सुधारवाद की यह 500वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं। संत अपने हृदय की नम्रता के कारण परिवर्तन की बयार लाते हैं। नम्रता में हम ईश्वर के प्रभुत्व को समझते और निष्ठापूर्ण हृदय से उनकी सेवा-पूजा करते हैं। अपने दीन मनोभाव में हम कुछ भी नहीं खोते क्योंकि हम ईश्वर को एकमात्र धन के रुप में अपने जीवन में पाते हैं।

धन्यताएँ कुछ अर्थ में ख्रीस्तीयों के लिए पहचान पत्र के समान है। वे हमें येसु के अनुयायी के रुप में एक पहचान प्रदान करते हैं। हम अपने जीवन में ईश्वर का अनुसरण करते हुए अपने जीवन की कठिनाइयों और चिंताओं का ईश्वर के प्रेम और शक्ति से सामना करने हेतु बुलाये गये हैं। इस प्रकार हम जीवन की अपनी नयी परिस्थितियों को नवीन आध्यात्मिक शक्ति से पहचाने और उनका प्रत्युत्तर देने हेतु बुलाये गये हैं। धन्य हैं वे जो अपने दुःखों और कष्टों का सामना निष्ठापूर्वक करते और अपने अत्याचारियों को दिल से क्षमा प्रदान करते हैं। धन्य हैं वे जो ग़रीबों और दीन-दुखियों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करते हैं। धन्य हैं वे जो सबों में ईश्वर के प्रतिरूप को देखते और उन्हें भी ईश्वर को देखने में मदद करते हैं। धन्य हैं वे जो हमारी सामान्य पृथ्वी की सुरक्षा और देख-रेख करते हैं। धन्य हैं वे जो दूसरों की सेवा-सुश्रूषा हेतु अपने सुख सुविधाओं का परित्याग करते हैं। धन्य हैं वे जो ख्रीस्तीय की पूर्ण एकता हेतु कार्य और प्रार्थना करते हैं। ये सभी ईश्वर की करुणा और दया के दूत हैं जो निश्चित रुप से ईश्वरीय पुरस्कार के हकदार होंगे।

संत पापा ने कहा प्रिय भाइयो एवं बहनो पवित्रता हम सबों के लिए दिया गया है जिसे हमें विश्वास की आत्मा द्वारा ग्रहण करने की जरूरत है। संत गण हमें अपने जीवन और प्रार्थनाओं के द्वारा प्रेरित करते हैं और हमें भी एक-दूसरे को अपने जीवन के द्वारा ऐसा करना है। आइए, हम एक साथ मिलकर ईश्वर की कृपा हेतु निवेदन करें जिससे हम अपने बुलावे को खुशी पूर्वक ग्रहण करते हुए उसे पराकाष्ठा तक पहुँचा सकें। हम अपने विचारों और वार्ताओं को अपनी स्वर्गीय माता, सब संतों की रानी को अर्पित करते हैं जिससे हम अपने प्रयास में धन्य हो सके और एकता में पवित्रता को प्राप्त कर सकें। 








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