2016-10-25 12:12:00

येसु धर्मसमाजियों का मिशन है लोगों तक पहुँचना सन्त पापा फ्राँसिस


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016 (सेदोक):  सन्त पापा फ्राँसिस ने जेसुइट्स यानि येसु धर्मसमाज के पुरोहितों को स्मरण दिलाया कि उनका मिशन भौगोलिक सीमाओं को पार कर लोगों तक पहुँचना है।

रोम में जारी येसु धर्मसमाजियों की 36 वीं आम सभा को, सोमवार को, सम्बोधित कर सन्त पापा फ्राँसिस ने उन्हें उनके मिशन का मर्म समझाया। उन्होंने येसु धर्मसमाज के पुरोहितों से आग्रह किया कि वे उनकी 32 वीं आम सभा में प्रेषित सन्त पापा पौल षष्टम के सन्देश को याद कर येसु ख्रीस्त के प्रेम एवं ईश्वर की महिमा के लिये इस धरती पर स्वतंत्र रूप से कलीसिया के शीर्ष के प्रति आज्ञाकारी रहते हुए अपने मिशन का सम्पादन करें। 

सन् 2008 में येसु धर्मसमाजियों की 35 वीं आम सभा में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें द्वारा कहे शब्दों का स्मरण दिलाते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि कलीसिया को येसु धर्मसमाजियों की नितान्त आवश्यकता है। सन्त पापा बेनेडिक्ट के शब्दों को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा, "जैसा कि मेरे पूर्वाधिकारियों ने प्रायः आपसे कहा है, कलीसिया को आपकी ज़रूरत है, कलीसिया आप पर निर्भर है, विश्वासपूर्वक वह आपके प्रति अभिमुख होती है, विशेष रूप से, उन भौगोलिक एवं आध्यात्मिक स्थलों तक पहुँचने के लिये जहाँ अन्य लोग कठिनाई से पहुँच पाते हैं।"

सन्त पापा ने इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि एक येसु धर्मसमाजी का मिशन "विश्व के आर-पार जाना तथा उसके उन भागों में निवास के लिये तत्पर रहना है जहाँ ईश्वर एवं पड़ोसी की सेवा तथा आत्माओं की मदद की अधिकाधिक उम्मीद हो।" आरम्भिक येसु धर्मसमाजियों के प्रति अभिमुख होकर सन्त पापा ने जेरोम नादाल का उदाहरण दिया जो कहा करते थे, "येसु धर्मसमाज के लिये समस्त विश्व उसका अपना घर है।"

करुणा को समर्पित वर्ष के सन्दर्भ में सन्त पापा ने महान येसु धर्मसमाजी लोयोला के सन्त इग्नेशियस के सेवाकार्यों की ओर ध्यान आकर्षित कराया और कहा कि अस्पतालों में रोगियों की देखभाल, अनुदान एकत्र करना, बच्चों को तालीम देना तथा धैर्यपूर्वक अपमान सहना उनकी रोज़मर्रा थी। सन्त पापा ने कहा कि करुणा को समर्पित वर्ष दया के कार्यों पर चिन्तन का सुअवसर है जिसका पूर्ण लाभ उठाया जाये। उन्होंने कहा, "मैं बहुवचन में बात कर रहा हूँ क्योंकि दया कोई अमूर्त अथवा निराकार भाव नहीं है अपितु यह एक जीवन शैली है जो शब्दों के पहले ठोस कृत्यों में अभिव्यक्त होती है।"








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