2016-10-14 16:37:00

विश्व खाद्य दिवस पर संत पापा का संदेश


रोम, शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016 (वीआर सेदोक): 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस के उपलक्ष्य में रोम में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य तथा कृषि संगठन (एफ.ए.ओ) द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों के उद्घाटन के अवसर पर 14 अक्तूबर को संत पापा फ्राँसिस ने अपने संदेश में वर्तमान जलवायु परिवर्तन के कारणों पर चिंतन करने की सलाह दी।

विश्व खाद्य दिवस की विषयवस्तु है, ″जलवायु बदल रहा है, उसके साथ खाद्य तथा कृषि भी।″  जो हमें भूख के विरूद्ध संघर्ष करने की ओर प्रेरित कर रहा है जिसे जलवायु परिवर्तन जैसे जटिल परिस्थिति में हासिल करना आसान नहीं है। मनुष्य को इन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि प्रकृति और व्यक्ति एक दूसरे पर आश्रित हैं।

संत पापा ने कहा, ″वर्तमान में जलवायु परिवर्तन का क्या कारण है? इस पर हमें अपने आप से सवाल करना चाहिए तथा सांख्यिकीय डेटा या परस्पर विरोधी विचारों के पीछे छिपने के आसान कुतर्क का सहारा लिए बिना सामूहिक जिम्मेदारियों पर ध्यान देना चाहिए। इसका अर्थ यह नहीं है कि वैज्ञानिक डेटा को छोड़ दिया जाए बल्कि उससे ऊपर जाकर परिस्थितियों का अध्ययन करना है।″

संत पापा ने स्मरण दिलाया कि मानव को प्रकृति के देखभाल की जिम्मेदारी है अतः उसका कर्तव्य है कि जो परिवर्तन हो रहा है उसके कारणों का पता लगाये एवं उसके मूल में जाये। उन्होंने कहा कि हमें सर्वप्रथम यह स्वीकार करना होगा कि जलवायु पर विभिन्न नकारात्मक प्रभाव व्यक्ति, समुदायों तथा राज्यों के दैनिक जीवन से पड़ रहा है। यदि हम इसके प्रति सचेत हो जाते हैं कि मात्र नैतिक आकलन पर्याप्त नहीं है हमें राजनीतिक रूप से कार्य करने की आवश्यकता है तथा भावी पीढ़ी के हित को ध्यान में रखते हुए विभिन्न जीवन शैली एवं व्यवहार को प्रोत्साहित अथवा हतोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है तभी केवल हम पृथ्वी की रक्षा कर सकते हैं।

संत पापा ने इसके लिए महत्वपूर्ण निर्णय लेने की सलाह देते हुए कहा कि प्रत्युत्तर किसी भावना अथवा क्षणिक अनुभव के आधार पर नहीं दिया जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने विभिन्न संस्थाओं को एक साथ काम करने की सलाह दी क्योंकि व्यक्तिगत कार्य महत्वपूर्ण होते हुए फिर भी अधिक लोगों के साथ जुड़कर ही प्रभावशाली हो सकता है। और निश्चय ही यह नेटवर्क गुमनाम नहीं हो सकता। इसका नाम है भाईचारा, जिसे एकजुटता के रूप में कार्य करना चाहिए।

संत पापा ने कृषि कार्यों से जुड़े लोगों की याद कर कहा कि जितने लोग खेतों, कृषि, छोटे पैमाने पर मछली पालन, वन, ग्रामीण क्षेत्रों आदि से जुड़े हैं वे अनुभव कर सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन के द्वारा उनका जीवन भी बदलता है। उनके दैनिक जीवन की कठिन परिस्थितियों और कभी-कभी नाटकीय स्थिति के कारण उनका भविष्य अनिश्चित होता जा रहा है जो उनमें अपना घर छोड़ देने का विचार उत्पन्न करता है। यह भावना परित्यक्त हो जाने एवं संस्थाओं द्वारा भुला दिये जाने के कारण प्रबल हो जाता है।

संत पापा ने जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए गाँव समुदायों की प्रज्ञा द्वारा प्रेरित जीवन शैली को अपनाने की सलाह दी।

उन्होंने प्राकृतिक उपायों को अपनाने का प्रोत्साहन देते हुए कहा कि उत्पादन गुणवत्ता जो प्रयोगशाला में उत्कृष्ट परिणाम देता है वह कुछ लोगों के लिए लाभदायक हो सकता है किन्तु दूसरों के लिए विनाशकारी प्रभाव लाता है। एहतियाती सिद्धांत काफी नहीं है क्योंकि यह बहुधा कुछ नहीं कर सकता है जबकि हमें संतुलन एवं ईमानदारी के साथ काम करने की आवश्यकता है।

संत पापा ने गौर किया कि आज के आदर्श उत्पादन सिद्धांत से कुछ ही लोगों को लाभ मिल रहा है तथा लाखों लोग भूखे हैं।

जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर उन्होंने सभी लोगों को एक साथ काम करने की आवश्यकता बतलायी तथा कहा कि निश्चय ही हरेक को अलग-अलग उत्तरदायित्व है किन्तु सभी देश एवं विश्व में निर्माण कर्ता हैं जो कुछेक लोगों के विकास को बढ़ावा नहीं देता। 

संत पापा ने बतलाया कि काम करने की चाह को लाभ पर नहीं बल्कि लोगों के जीवन एवं समस्त मानव परिवार की आवश्यकताओं पर आधारित होना चाहिए।

संत पापा ने पेरिस समझौते की याद दिलाते हुए कहा कि यह न केवल शब्दों में सीमित न रह जाए किन्तु साहसी निर्णय बने, एकात्मता के लिए योग्य, न केवल सदगुण किन्तु आर्थिक रूप से काम करने का एक आदर्श तथा भाईचारा की एक आकांक्षा मात्र नहीं बल्कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय शासन की कसौटी बन जाए।

संत पापा ने मानवता की सेवा के इस प्रयास पर ईश्वर के आशीष की कामना की। 








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